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कानूनी अधिकारों के बावजूद गर्भपात का निर्णय क्यों नहीं ले पाती हैं महिलाएं

अधिकारों को लेकर महिलाओं की लड़ाई लम्बे समय से चली आ रही है। चाहे हम शिक्षा की बात करें या फिर बाहर आने-जाने की आज़ादी की। अपने अधिकारों के लिए महिलाओं के संघर्षों का इतिहास पुराना रहा है, इन संघर्षों के दौरान करोड़ों महिलाओं को सामाजिक दबाव के चलते बहुत सारी शारीरिक और मानसिक यातनाओं को सहना पड़ा है। सिर्फ भारत में नहीं बल्कि पूरे विश्व में महिलाओं के अधिकारों के लिए अभियान चलाए जाते रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है किसी एक महिला अधिकार को किसी देश में कानूनी स्वीकृति मिल गई और किसी देश में आज भी उस अधिकार के लिए लड़ाई जारी है।

अधिकारों की यह जंग सिर्फ इस बात पर खत्म नहीं हो जाती कि कानूनी रूप से स्वीकृति मिल गई, बल्कि यह जंग तब तक चलती रहती है जब तक सामाजिक रूढ़िवादी सोच नहीं बदल जाती। कानून को ज़मीनी स्तर पर लागू करने के लिए समाजिक रूढ़िवादी सोच के खिलाफ भी लड़ाई जारी रखनी पड़ती है।

आज भी महिलाओं को मातृत्व के नाम पर सिर्फ बच्चा पैदा करने की मशीन के रूप में  देखा जाता है। एक महिला कब मां बनना चाहती है या फिर मां नहीं बनाना चाहती, इन दोनों में से कोई भी निर्णय महिला अपनी मर्ज़ी से नहीं ले सकती है। पितृसत्ता के चलते प्रजनन से जुड़ी बातचीत में महिलाओं के निर्णय को कोई प्राथमिकता नहीं दी जाती है।

एक महिला को यह भी अधिकार समाजिक रूप से नहीं मिल पाता कि वह इस बात का निर्णय स्वयं ले सके कि उसे कितने बच्चे पैदा करने हैं। बेटों की चाह की वजह से महिलाओं को लिंग जांच व लिंग चयन (लिंग आधरित गर्भपात) तक से गुज़रना पड़ता है।

किसी भी तकनीक से गर्भधारण पूर्व तथा गर्भावस्था में लिंग की जानकारी करना अथवा लिंग चयन करना व करवाना PCPNDT एक्ट के तहत अपराध है। आज भी ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जिन्हें पारिवारिक और सामाजिक दबाव के चलते 10-10 बच्चों को भी जन्म देना पड़ता है। एक महिला के मानसिक और शारीरक स्वास्थ्य पर उसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है लेकिन परिवार इस बात की परवाह किये बिना महिला के शरीर को सिर्फ मशीन समझकर उनके साथ खिलवाड़ करते रहता है।

क्या एक महिला को अपने शरीर पर इतना भी अधिकार नहीं है कि वो अपने शारीरिक स्वास्थ्य के लिए निर्णय ले सके। एक तरफ तो उनपर  बेटे पैदा करने का सामाजिक दबाव है जिसके कारण उन्हें 10-10 बच्चे पैदा करने पड़ते हैं या फिर लिंग जांच व लिंग चयन (लिंग आधरित गर्भपात) से होकर गुज़रना पड़ता है जबकि कानूनी रूप से लिंग जांच व लिंग चयन (लिंग आधरित गर्भपात) एक अपराध है। सिक्के के दूसरे  पहलू को देखें तो अगर कोई महिला MTP एक्ट के तहत सुरक्षित और वैध गर्भपात करवाना भी चाहती है तो उसे बहुत सारे सामाजिक और अन्य दबावों को झेलना पड़ता है। इनमें से कुछ कारण तो जानकारी के अभाव को भी दर्शाते हैं।

आज भी PCPNDT एक्ट और MTP एक्ट के बीच बहुत सी गलत धारणाएं हैं, जिसकी वजह से संचार संदेशों में गलतियां होती चली जाती हैं।काफी बार ऐसे संदेश देखने को मिलते हैं, जहां गर्भपात को PCPNDT एक्ट से जोड़कर अपराध रूप में दिखाया जाता है। जबकि PCPNDT एक्ट कभी भी सुरक्षित और वैध गर्भपात को अपराध की श्रेणी में नहीं लाता, बल्कि लिंग जांच व लिंग चयन यानि लिंग आधरित गर्भपात को अपराध मानता है।

दूसरी तरफ MTP एक्ट कहीं भी लिंग जांच व लिंग चयन यानि लिंग आधारित गर्भपात को बढ़ावा नहीं देता बल्कि कुछ विशेष हालातों में सुरक्षित और वैध गर्भपात की बात करता है। इन दोनों एक्ट को सही से ना समझ पाने की वजह से महिलाओं को सुरक्षित और वैध गर्भपात कराने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

PCPNDT एक्ट ओर MTP एक्ट में उलझन के अलावा एक कारण और भी है, जिसके चलते महिलाएं सुरक्षित गर्भपात पर बातचीत नहीं करना चाहतीं। आज भी देश में गर्भपात को पाप से जोड़कर देखा जाता है। यही नहीं जगह-जगह पर ऐसे सन्देश लिखा होना आम बात है, जिसमें गर्भपात को पाप कहा जाता है। यही कारण है कि महिलाएं सुरक्षित गर्भपात के लिए समय से निर्णय नहीं ले पाती हैं।

एक तरफ तो सुरक्षित गर्भपात को सामाजिक कलंक से जोड़कर देखा जाता है और दूसरी तरह सुरक्षित गर्भपात के बारे में सही जानकरी का अभाव महिलाओं को जोखिम में डालता है।

इतना ही नहीं सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अस्पतालों और क्लिनिक जहां सुरक्षित और वैध गर्भपात की सुविधाएं उपलब्ध हैं, वहां पर विवाहिता महिला को उसके पति और अविवाहिता को उसके माता-पिता की अनुमति लाने के लिए मजबूर किया जाता है। जबकि MTP एक्ट कहता है की एक वयस्क महिला को सुरक्षित व वैध गर्भपात के लिए किसी की अनुमति की ज़रूरत नहीं होती।

इन सब कारणों और गलतफहमियों की वजह से महिलाएं सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अस्पतालों और क्लिनिकों की जगह झोलाछाप डॉक्टर के चक्कर में पड़ जाती हैं। वर्ल्ड बैंक, ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटेजी के अनुसार भारत में हर दो घंटो में असुरक्षित गर्भपात से एक महिला की मौत होती है। इन सभी कमियों को दूर करने के लिए बहुत ज़रूरी है कि MTP एक्ट पर खुलकर बात हो। सुरक्षित गर्भपात पर केवल महिलाओं से ही नहीं बल्कि पुरुषों से भी बातचीत होना अत्यंत ज़रूरी है तभी महिलाएं अपने शरीर और अधिकारों के प्रति सशक्त हो पाएंगी।

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