Site icon Youth Ki Awaaz

शहरों में जीवनस्तर बढ़ाने के लिए सरकार और आम जनता को उठाने होंगे ये कदम

हाल ही में भारत सरकार ने आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के माध्यम से 13 अगस्त 2018 को भारत के 111 शहरों का जीवितता सूचकांक (लिवेबिलिटी इंडेक्स) जारी किया, जिसमें पुणे 58.11 अंक के साथ भारत का सबसे रहने योग्य शहर पाया गया । इस सूचकांक के अनुसार सबसे रहने योग्य शहर होने का मतलब यह नहीं है कि वह शहर “सर्वश्रेष्ठ” है लेकिन यह सूचकांक यह दर्शाता है कि यहां जीना अन्य शहरों की तुलना में कम चुनौतीपूर्ण है।

अंक प्रणाली के विभाजन के हिसाब से पुणे सबसे रहने योग्य शहर होने के बावजूद भी “जीवितता काफी हद तक सीमित है” की श्रेणी में आता है जोकि “जीवन के अधिकांश पहलू गंभीर रूप से हैं वर्जित” श्रेणी के बाद दूसरी सबसे खराब श्रेणी है। यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम इस सूचकांक को एक अलग नज़रिये से देखें और अपने शहरों में जीवितता को बढ़ाने के लिए ज़रूरी कदमों के बारे में सोचें।

भौतिक सुविधाएं किसी भी शहर को जीने योग्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जैसे कि प्रदूषण की कमी, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, अपशिष्ट जल प्रबंधन, परिवहन और गतिशीलता, बिजली की आपूर्ति, आश्वासन जल आपूर्ति, सार्वजनिक खुली जगह आदि शामिल होते हैं। ये सब प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारे स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि शहरों के भौतिक वातावरण को सुधारा जाए जिससे कि हमारे शहर सच में रहने योग्य बन पाएं।

 

हमें ज़रूरत है कि वायु, जल एवं मिट्टी के प्रदूषण को कम किया जाए जोकि सरकार तथा जनता दोनों की भागीदारी से होगी। जहां एक तरफ सरकार उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण पर सख्ती से रोक लगाए, वहीं पर जनता को भी विचारधारा एवं जीवन शैली में बदलाव लाकर प्रदूषण का उत्सर्जन कम करना होगा।

जीवाश्म ईंधन पर चलने वाले निजी परिवहन के साधनों का प्रयोग कम करके हमें अपनी परिवहन ज़रूरतों के लिए सार्वजनिक परिवहन का, पैदल चलने का तथा साईकिल का अधिक-से-अधिक प्रयोग करना चाहिए जिससे कि ना सिर्फ हमारी गतिशीलता बढ़ेगी बल्कि प्रदूषण में कमी एवं शहर में हरियाली तथा खुली जगह में भी इज़ाफा होगा।

हमारी जीवन शैली जोकि बहुत अधिक उपभोगवाद की तरफ बढ़ती जा रही है, जिससे बहुत अधिक कचरा उत्पन्न होता है, पानी का प्रदूषण बढ़ने के साथ ही उसकी बर्बादी भी होती है तथा कोयले से बनी बिजली की खपत बढ़ती जा रही है, इन सबमें भी बदलाव की ज़रूरत है।

हमें कचरे में कमी करने के लिए 5R के सिद्धांत को सख्ती से अपनाना चाहिए, जिसमें वस्तुओं के प्रयोग को मना कर देना (refuse), उनके प्रयोग को कम करना (reduce), उनका पुनः प्रयोग करना (reuse), रिसायकल करना (recycle) एवं सड़ाना या कम्पोस्टिंग करना (rot) शामिल है।

कोयले से बनी बिजली पर अपनी निर्भरता एवं उससे उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए हमें कम बिजली खपत वाले उपकरण प्रयोग करने के साथ-साथ अपने घरों की छतों पर सौर ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए सोलर पैनल लगाने चाहिए, जिससे कोयले के रूप में जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कम किया जा सके।

इसके अतिरिक्त हमारे शहरों को अधिक जीने योग्य बनाने की लिए जनता के द्वारा इन निजी कदमों के साथ-साथ सरकार की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। सरकार को ऐसी परिस्थितियां बनानी होगी जब जनता ऊपर लिखे हुए सब बदलाव लाने के लिए प्रेरित हो जोकि सरकार द्वारा आधारित संरचना एवं संसाधनों को मुहैया करवाकर की जा सकती है।

सरकार को मौजूदा स्थिति, उसको सुधारने के लिए निर्धारित कदमों एवं निर्धारित ज़िम्मेदारियों के साथ समय-समय पर लिए गए कदमों की समीक्षा की जानकारी पारदर्शी तरीके से जनता को मुहैया करवानी चाहिए जिससे जनता बदलाव को जान सके एवं उनका सरकारी नीतियों पर भरोसा बना रहे।

भारत के कानून का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीने का अधिकार प्रदान करता है, हमें सरकार के साथ मिलकर यह प्रयास करना चाहिए कि हमारे शहरों में रहकर हम इस अधिकार का उपभोग कर पाएं और हमारे शहर वो जगह ना बने जो रहने योग्य नहीं हैं।

Exit mobile version