आधार से जुड़ी याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आ चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने आज केन्द्र की महत्वपूर्ण आधार कार्यक्रम और 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कुछ महत्वपूर्ण याचिकाओं पर फैसला सुना दिया है। अदालत ने कहा कि आधार संवैधानिक रूप से वैध है और सरकार डाटा सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए।
सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने आधार नंबरों के साथ मोबाइल फोन के जोड़े जाने के निर्णय का बचाव करते हुए कहा था कि यदि मोबाइल उपभोक्ताओं की जांच नहीं की जाती, तो उसे सुप्रीम कोर्ट अवमानना के लिए ज़िम्मेदार ठहराती।
बता दें कोर्ट ने यह भी कहा था कि सरकार ने उसके आदेश की गलत व्याख्या करते हुए उसका मोबाइल उपभोक्ताओं के लिए आधार अनिवार्य बनाने के लिए एक हथियार के तौर पर प्रयोग किया था।
पढ़िए आधार फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की अहम बातेंं –
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने आधार कार्ड की अनिवार्यता पर फैसला सुनाई। इस मामले में तीन जजों ने अलग-अलग फैसला लिखा है। आईए उन फैसलों पर डालते हैं नज़र –
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार आज लोगों की पहचान है। आधार पर हमला को संविधान के खिलाफ बताया। कहा कि आधार से गरीबों को पहचान और सम्मान मिली।
- आधार से निजता के हनन के सबूत नहीं मिले हैं
- आधार से डुप्लिकेशन का खतरा नहीं है। समाज में हाशिय पर खड़े लोगों को अधिकार देता है आधार।
- कोई भी मोबाइल या निजी कंपनी आधार नहीं मांग सकती।
- इसके अलावा शैक्षणिक संस्थानों में आधार की अनिवार्यता नहीं।
- पैन कार्ड लिंकिंग के लिए अनिवार्य है आधार। बैंक खाते के साथ आधार लिंकिंग ज़रूरी नहीं।
- कोई भी प्राइवेट संस्था यदि आधार मांगती है, तब उन्हें ब्यौरा देना पड़ेगा।
- अगर आप एडल्ट हैं और आपको लगता है कि सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले रहें हैं, ऐसी स्थिति में आधार सेवा खत्म कर सकते हैं।
- यूजीसी, निफ्ट और सीबीएसई परीक्षाओं के लिए आधार अनिवार्य है।
- नई सीम कार्ड लेने के लिए आधार होना ज़रूरी नहीं है।
- अदालत की अनुमति के बिना बायोमेट्रिक डाटा किसी भी एजेंसी के साथ साझा नहीं किया जा सकता।
- आधार डेटा को 6 महीने से अधिक नहीं रखा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार जितनी जल्दी हो सके डेटा प्रोटेक्शन लॉ लेकर आए।
- आधार कार्ड और पहचान पत्र के बीच मौलिक अंतर है, बायोमेट्रिक जानकारी एकत्रित होने के बाद यह सिस्टम में रहेगी।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार नामांकरण के लिए UIDAI द्वारा नागरिकों के न्यूनतम जनसांख्यिकीय और बॉयोमीट्रिक डेटा एकत्र किए जाते हैं। आधार ने किसी भी तरह के डुप्लिकेसी के मौके को खत्म कर दिया है।
- किसी व्यक्ति को दिया गया आधार नंबर उसका यूनीक नंबर होता है और वह किसी और को नहीं दिया जा सकता है। इसके खिलाफ आई याचिकाओं की चिंता निजता पर खतरे को लेकर थी कि सरकार सब पर नजर रखने लगेगी।
- सुप्रीम कोर्ट ने आधार अधिनियम की धार 57 को रद्द कर दिया है।
- जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, आधार प्राइवेसी और डेटा प्रोटेक्शन के अधिकारों का उल्लंघन करता है। तकनीकी गलती की वजह से संवैधानिक गारंटी से समझौता नहीं किया जा सकता है। आधार प्रोग्राम पूरी तरह असंवैधानिक है।
- उन्होंने कहा, बायोमेट्रिक डेटा के यूनीक नेचर के साथ समझौता हुआ है और इससे हमेशा समझौता होता रहेगा। आधार एक्ट के कई प्रावधान के तहत बड़े पैमाने पर बायोमेट्रिक डेटा जमा होता है। लेकिन यह पता नहीं चल पाता है कि उन बायोमेट्रिक डेटा का कहां पर प्रयोग होता है।