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क्या है एनआरसी और कितनी है इसकी विश्वसनीयता

आज-कल असम में मीडिया का जमावड़ा लगा हुआ है। हां ये बात आम नहीं है क्योंकि मीडिया चार बड़े शहरों से अमूमन कम ही बाहर निकलती है। इस बार जमावड़े की वजह है एनआरसी। अगर आप एनआरसी के बारे में नहीं जानते तो आपको इसके बारे आज जान लेना चाहिए।

क्या है राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी)

भारत में 1955 के सिटीज़नशिप एक्ट के अनुसार केंद्र सरकार पर देश के हर परिवार और व्यक्ति की जानकारी जुटाने की ज़िम्मेदारी होती है। सिटीज़नशिप एक्ट 1955 के सेक्शन 14ए में 2004 में संशोधन किया गया था, जिसके अनुसार हर नागरिक के लिए अपने आपको नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़ंस यानी एनआरसी में रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य बनाया गया था।

यह मामला 1970 के दौर में तब गरमाया जब पूर्वी पाकिस्तान यानि बांग्लादेश अपनी आज़ादी की जंग लड़ रहा था। इसी दौर में बहुत से लोग बांग्लादेश से भारत के लिए पलायन कर रहे थे। चूंकि असम अपनी सीमा बांग्लादेश के साथ साझा करता है इसलिए लोग असम में आकर बसने लगे। इससे असम में अवैध प्रवासियों की संख्या में काफी ज़्यादा इज़ाफा हुआ, जिससे असम के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

असम के लोगों ने इसके खिलाफ आंदोलन करने शुरू कर दिए। अगर आप सोच रहे हैं कि असम के लोगों को क्या दिक्कत हुई होगी तो आपको बता दें कि भारतीय नागरिकों की नौकरी के अवसर कम होने लगे थे और भारतीय संसाधनों का उपयोग भारतीय लोगों की जगह बांग्लादेशी भी करने लगे थे। असम को अपने अधिकारों पर खतरा मंडराते दिखने लगा तो बांग्लादेशियों का विरोध उच्च स्तर पर शुरू हो गया।

यह विरोध आंदोलन में परिवर्तित हो गया और इसकी कमान असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) ने संभाल ली। इस आंदोलन में काफी लोगों ने अपनी जान गंवा दी। यह आंदोलन तब रुका जब 15 अगस्त को भारत सरकार और असम स्टूडेंट यूनियन के बीच एक समझौता हुआ। इसी समझौते को असम एकॉर्ड के नाम से भी जाना जाता है।

इस समझौते के अनुसार 24  मार्च 1971 से पहले असम में रह रहे लोगों को भारतीय नागरिक मान लिया जायेगा और बाकि सभी लोगों को वापस भेजा जायेगा। अब आप सोच रहे होंगे कि यह तारिख कैसे निर्धारित की गयी? दरअसल 25 मार्च 1971 से ही बांग्लादेश में आज़ादी की लड़ाई शुरू हुई थी। समझौता तो हो गया लेकिन इससे कोई फायदा नहीं नज़र आया। असम में अवैध प्रवासी हमेशा से ही एक प्रमुख मुद्दा बना रहा। 2005 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने एनआरसी सूची को अपडेट करने की योजना बनाई लेकिन धरातल में इससे हालत और गंभीर हो गए।

अत: मामला सुप्रीम कोर्ट के पास जा पहुंचा जिसमें 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में एनआरसी को अपडेट करने का आदेश जारी कर दिया गया। एनआरसी में लगभग 3 करोड़ 29 लाख लोगों ने आवेदन किया जिसमें से लगभग 2 करोड़ 89 लाख लोगों को वैध पाया गया। यानि एनआरसी की सूची से 40 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया।

सरकार नहीं दे रही जानकारी 

अब एनआरसी के मुद्दे पर सरकार अपनी स्थिति साफ नहीं कर रही है। कुछ ऐसे बुनियादी सवाल हैं जिनसे सरकार अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती। असम अपनी सीमा बांग्लादेश के साथ साझा करता है और यही वजह है इतने सारे गैर प्रवासियों का आसानी से असम की सीमा में आ जाना। आपको जानकर हैरानी होगी कि अभी तक हमारी सीमाएं सुरक्षित नहीं हैं।

क्या सरकार का पहला कर्तव्य ये नहीं होना चाहिए कि वह सुनिक्षित करे कि अब से कोई गैर प्रवासी भारत की सीमा में बिना इजाज़त नहीं आ सकेगा? अब आपको जान लेना चाहिए कि एनआरसी की विश्वसनीयता कितनी है। असम की अकेली महिला मुख्यमंत्री रहीं सैयद अनवरा तैमूर का नाम, जो ऑस्ट्रेलिया में रह रही हैं, एनआरसी से गायब है और वह राज्य के नागरिकों के पंजीकरण में खुद और उसके परिवार को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए घर लौटने की योजना बना रही थीं। जब एक पूर्व मुख्यमंत्री का नाम छूट सकता है तो किसी आम व्यक्ति की क्या बात करें। खैर यह काम सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में हो रहा है तो ये देखना होगा कि अंत में क्या आंकड़े आते हैं।

अब बात करते हैं आंकड़े आने के बाद की स्थिति की। शुरुआती दौर में 40 लाख लोग एनआरसी की लिस्ट से बाहर रखे गए हैं अभी उनके पास एक और मौका होगा लेकिन अगर मान लिया जाए कि 40 लाख में से 35 लाख लोग अपनी नागरिकता सिद्ध कर लेते हैं पर उन 5 लाख लोगों का सरकार क्या करेगी? बांग्लादेश की सरकार इन्हें क्यों अपने देश में ले लेगी? सरकार को इस समय अपनी स्थिति साफ कर देनी चाहिए। यहां पर आपको वोट के अधिकार के बारे में भी पता होना बहुत ज़रूरी है। अगर वो पांच लोग लाख लोग (सिर्फ सोची गयी संख्या) अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाते तो ऐसे में उनसे वोट का अधिकार भी छीन लिया जायेगा क्योंकि वोट देने के लिए आपका भारतीय नागरिक होना अनिवार्य है। उन लोगों को कहां रखा जायेगा? सवाल बहुत हैं लेकिन सरकार को इनसे बचने या इन्हें टालने की जगह इन पर अपना रुख साफ करने की ज़रूरत है।

मेरा मानना है कि अवैध प्रवासी किसी भी तरह से देश के लिए और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से सही नहीं ठहराए जा सकते हैं लेकिन सरकार को भी लोगों के सामने इस समस्या पर पूरी जानकारी रखनी चाहिए।

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