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व्हाट्सएप और फेसबुक पर थक चुके जोक्स का जमावड़ा था JNU डिबेट

जेएनयू की प्रेसिडेंशियल डिबेट बहुत मज़ेदार होती है, कुछ ही देर में पूरा प्रांगण भर जाएगा।”

“पर अभी भी लाइब्रेरी में जाओ तो वो भरी मिलेगी। बहुत सारे लोगों को कोई मतलब नहीं होता, वो अपना पढ़ते रहते हैं।”

जेएनयू में इस तरह की बातें चल रही थीं, क्योंकि डिबेट अपने टाइम से शुरू नहीं हुई थी। रात के दस बज चुके थे।

चार कुत्ते प्रांगण में इधर-उधर चक्कर लगा रहे थे। लग रहा था कि वो भी डिबेट सुनने आए हैं। काफी व्यग्रता से वो कभी स्टेज की तरफ देखते, कभी जनता की तरफ। लगा उनमें से एक कह रहा था कि NSUI शर्म करो, NOTA तुमसे आगे है। दूसरे के विचार थोड़े प्रोग्रेसिव और पॉज़िटिव थे। उसका मानना था कि अगर इस बार इंडिपेंडेट कैंडिडेट जीता तो दिल्ली के संगम विहार में पानी भरने की समस्या को सुलझाया जा सकता है, क्योंकि कैंडिडेट बालों से काफी सुलझा हुआ आदमी प्रतीत हो रहा था।

फोटो क्रेडिट- JNU Voice फेसबुक वॉल

थोड़ी ही देर में मुझे एक धक्का लगा और रोमांटिसिज़्म का विग गिर गया और दिमाग में पीछे से आवाज़ आई जय जय, जय जय भीम। ये आवाज़ समर्थन वाली नहीं थी। नारा लगते ही उस व्यक्ति के पास खड़े चार लोग खिखियाकर हंस पड़े। एक ने कहा अरे यार, इन लोगों का तो… बस इतना कहते ही वो लोग फिर हंस पड़ें।

चार में से दो कुत्ते जाने पहचाने से लगे। दरअसल इन दोनों से मुलाकत गंगा ढाबा पर हुई थी। मेरे खाने की प्लेट को ललचाई आंखों से देख रहे थे। ये गांव देहात का रामलीला का मैदान नहीं है जो यहां भी लोग खाने-पीने की चीज़ें गिराएंगे और ये चट से साफ कर जाएंगे। कुत्ते सिगरेट पीते लोगों का मुंह ताकते और पूंछ हिलाते इधर-उधर हांडते रहें। ऐसा शक हुआ कि शायद सिगरेट इनके मुंह से लगाएं तो ये पी लेंगे।

तभी बाहर की तरफ से आते हुए कुछ जवान खून वाले युवकों का जत्था निकला, उनकी टी शर्ट्स पर डीयू जैसा कुछ लिखा था, किसी पर नाराज़ हनुमान की तस्वीर भी थी। उनको रास्ते पर खड़े अपने शरीर में ही अंदर की तरफ धंसे हुए एक लड़के ने ज़ोर से चिल्लाकर कहा, “बोलो बोलो भारत माता” इतने में युवकों ने मातरम चिल्ला दिया। फिर इस लड़के ने और ज़ोर से कहा, “भारत माता की…” तब बाकी युवकों को एहसास हुआ और वो भी चिल्लाये… जय। ये कार्यक्रम पांच बार हुआ और फिर उस लड़के ने इनको बाय कर कहा, “वॉव, थैंक्यू”।

वाद-विवाद स्थल पर खड़े ढोल ताशे लैस समर्थकों में से एक ने बोला, “हम लोग भी भारत माता की जय लगाते हैं। लोगों को कन्फ्यूज़ करेंगे”। ये अंत तक समझ नहीं आया कि कौन कन्फ्यूज़ होगा इससे।

कथित तौर पर 9 बजे से शुरू होने वाली डिबेट का हाल रामलीला जैसा हो चुका था। जिस तरह हनुमान की पूंछ ना मिलने पर वो घंटों तक इधर-उधर मुंह फुलाए घूमता रहता है और जनता स्टेज पर बैठे राम-लक्ष्मण की आरती सुनकर पक जाती है वैसे ही यहां भी पक चुके लोग फंक्शन से कुछ दूर पत्थरों पर बैठकर चुगलियों में मशगूल हो गए।

किसी ने आकर इत्तला दी कि एक कैंडिडेट ब्लाइंड है और उसकी स्पीच पढ़कर सुनाने का इंतज़ाम नहीं हुआ है इसलिए हैंडीकैप्ड लोग बवाल काट रहे हैं। सुनकर अच्छा लगा। कहीं तो जगह मिली है कि पता चले कि शोषितों में दलित, पिछड़ों और आदिवासियों के अलावा ये लोग भी हैं।

इतनी ही देर में माइक से ज़ोर से आवाज़ आई, साथी। एकबारगी लगा मोदी जी स्वयं बोल रहे हों लेकिन फिर ध्यान आया मोदी जी का कॉपीराइट तो मित्रों पर है। फिर ये कौन है जो मित्रों को कॉपी करके साथ बोल रहा है। सोचने का मौका नहीं मिला। वो भाई शुरू हो गया था। साथी, क ख ग, साथी, य र ल व, साथी, श स ष। मुझे डर था कि कहीं कल वेबसाइट्स इसे ही कल की मुख्य खबर की तरह ना लगा लें और साथ में एक क्विज़ भी चला दें, “यह क्विज़ खेलकर जानें कि आप जेएनयू को कितना जानते हैं”।

खैर! दस लाइनों में सौ बार साथी कहने वाले कैंडिडेट ने व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से चुराए हुए मीम्स की बातें, ट्विटर से उठाया हुआ बाल नरेंद्र और फिर साथी कहते हुए स्पीच खत्म किया। भीड़ में विरोधी पार्टी के कार्यकर्ता इसलिए खड़े किए गए थे कि स्पीच लोगों तक ना पहुंच पाए। इस कैंडिडेट ने लेफ्ट और राइट दोनों को कोसा। दोनों के बुरे कारनामों की याद दिलाई। ज्योति बसु और दंगों की भी याद दिलाई। भीड़ में से लंबे बालों वाला एक शख्स ने काफी उत्तेजित होकर कहा, “तुमने क्या किया, ये भी तो बताओ”। इससे थोड़ी दूर खड़े एक लड़के ने हंसते हुए चिल्लाया, “जय जय, जय जय भीम”। फिर लंबे बालों वाले ने गुस्से से कहा, “जय भीम तो हम भी करते हैं, इसका विरोध नहीं है”।

फिर एक और कैंडिडेट आया, उसने भी यही बातें की। लेफ्ट और राइट दोनों को गलत ठहराया। दोनों को ही नाकारा साबित किया। इस बात पर लेफ्ट और राइट दोनों के समर्थक हंस रहे थे। किसी को गुस्सा भी नहीं आ रहा था।

तब तक एक आवाज़ आई कि मैं आज ऐसी बात करूंगी, जिस पर कोई बात नहीं करता। तू इधर-उधर की बात ना कर, ये बता काफिला कहां लूटा था, सवर्ण खतरे में हैं टाइप की बातें कहते हुए महिला कैंडिडेट आईं और कुछ बातें रखकर चली गईं।

प्रतीत हुआ कि जिस प्रकार से मुस्लिम आइडेंडिटी पाकिस्तान में खतरे में है, उसी प्रकार से हिंदुस्तान में सवर्ण आइडेंडिटी खतरे में है। इनकी बातों से सवर्ण समाज का भविष्य काफी भयावह लगा। इसी बीच पेड़ों पर चढ़े कुछ लड़कों की तरफ ध्यान गया। NOTA के पोस्टर लिए वो बंदरों की भांति व्यवहार कर रहे थे जैसे समुन्द्र पर राम सेतु बनाने वाले सीन पर इन्हें ही कूदकर जाना है। वो इतने ऊपर चढ़ गये थे कि उनसे पूछा भी नहीं जा सकता था कि भाई तुझे क्या तकलीफ है, किस बात पर नोटा किए हुए है। मीडिया के लिए ये लोग कई चीज़ों की सिम्बॉलिक तस्वीर हो सकते हैं।

फोटो क्रेडिट- फेसबुक

एक नारा थोड़ा अलग रहा था। लाल, भगवा सब एक हैं, सारे कॉमरेड फेक हैं। इसके जवाब में एक नारा लग रहा था, जो कि पुराना है, “आ गया है AISA , छा गया है AISA”। एक लड़की ने हंसते-हंसते बताया कि पहले वो भी ऐसे ही नारे लगाती थी, “चंदू को दो आज़ादी, चंदू का न्याय दिलाओ।” बहुत बाद में एक दिन अखबार में पढ़ा तो पता चला कि चंदू कौन थे।

राजद से खड़े हुए जयंत जिज्ञासु ने स्पीच में कहा, “सस्ते डाटा की उतनी ज़रूरत नहीं है जितनी सस्ते आटा की है”। ये भी व्हाट्सएप पर आ चुका है पहले ही। उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक घोटाले पर मोदी सरकार के लिए “मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास” गीत भी गाया। ये भी कहा कि खेतों में पानी पटानेवाला अगर जेएनयू में जीते तो वो जेएनयू की ही जीत होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने सबको जुमलों तक पहुंचा दिया है।

ABVP के ललित पांडेय के भाषण से पहले काफी वक्त तक हंगामा होता रहा। बाकी छात्र संगठन उनके बोलने से पहले ही शोर मचाने लगे और नारेबाज़ी करने लगे। फिर जब ललित ने बोला तो उन्होंने भी गोबर ही पाथा। उनके मुताबिक वहां राष्ट्रविरोधी तत्त्व मौजूद थे। उन्होंने वादा किया कि अगर वो चुनाव जीते तो वो राष्ट्रविरोधी तत्त्वों को ठिकाने लगा देंगे। उन्होंने दंतेवाड़ा में जवानों के शहीद होने पर भी बोला। कहा जब इस शहादत पर जेएनयू में जश्न मनता है, तो हम आगे आते हैं। जब सेना को बलात्कारी कहा जाता है, तो आगे आते हैं। ये नहीं पता चला कि आगे आ के कहां जाते हैं।

प्रतीत हुआ कि इस तरह की डिबेट तो भारत में हर जगह हो रही है। ये सारी बातें व्हाट्सएप पर चलती हैं, ये सारी बातें फेसबुक पर होती हैं। हर प्रकार की जनता इस तरह के प्रश्न उठाने लगी है। अंत तक ये कन्फ्यूज़न बना रहा कि जेएनयू में मुद्दा किस बात का है, व्हाट्सएप की बातों को लेकर लड़ने का क्या मतलब है। कुछ मुद्दे तो जेएनयू के होंगे जिनके बारे में कभी-कभी कैंडिडेट बोल रहे थे कि ये लोग सिर्फ चुनाव के दौरान आते हैं, पूरे साल गायब रहते हैं। शायद ये बात जनता के बारे में हो, क्योंकि किसी भी कैंडिडेट ने इस बात को काटा नहीं।

AISA और ABVP, इन दो को छोड़कर बाकी सबने इनके ही चरित्र पर सवाल उठाया और बार-बार बताया कि ये लोग जेएनयू के लिए ज़रूरी नहीं हैं। इन दोनों पार्टियों के लोग हंसते रहें। आइसा बार-बार ये बताती रही कि ये लोग शुरू से ही सर्वश्रेष्ठ हैं। वहीं एबीवीपी भारत माता की जय के आगे नहीं बढ़ पा रही थी। इनके नारेबाज़ों में एक व्यक्ति प्रॉपर चुटिया रख के आया था। भारतीय संस्कृति ऐसे ही जवानों के बल पर टिकी हुई है। एक व्यक्ति ने शंख भी बजाया। ये शायद किसी नारे का जवाब था।

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फीचर्ड इमेज क्रेडिट- JNU Voice फेसबुक वॉल

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