भारतीय टीम के इंग्लैंड दौरे पर चौथा टेस्ट मैच हाल ही में भारत की हार के साथ समाप्त हो गया। सीरीज़ की खास बात ये रही कि यह अपने नतीजों से हटकर बात कर रही है। भले ही भारत 1-3 से पिछड़कर सीरीज़ हार गया लेकिन लॉर्ड्स को छोड़कर बाकी तीनों मैच बेहद करीबी रहें। यह टेस्ट श्रृंखला अपने नतीजों से इतर विशुद्ध टेस्ट मैच रोमांच के लिए जानी जाएगी लेकिन क्या ऐसी श्रृंखलाएं ये गारंटी भी देती हैं कि इससे टेस्ट क्रिकेट का क्लासिक दौर फिर से वापस आ सकेगा?
140 साल से भी ज़्यादा पुराने क्रिकेट के इस सबसे लंबे संस्करण ने 90 के दशक तक अपना जलवा बरकरार रखा। बाद में टी-20 नाम के धमाके ने क्रिकेट का बुनियादी ढांचा ही बदलकर रख दिया। शायद इस दौरान क्रिकेट के अलावा कोई और खेल इतना बदला हो। कोई भी खेल उसको खेलने वाले और उसको देखने वाले, इन दो लोगों के बीच चलता है और आज के समय में ये दोनों ही लोग बदल गए हैं।
90 का दशक गुज़रे कोई सदियां नहीं बीती हैं और तब हर टीम में एक-से-एक ऐसे आइकन खिलाड़ी हुआ करते थे, जिनके बूते ही लोग मैच देखने मैदान में आते थे या टीवी की दुकानों पर खड़े होकर टेस्ट मैचों में शामें गुज़ार दिया करते थे लेकिन, तब से अब तक एक पीढ़ी का बदलाव ज़रूर हो चुका है और यह बदलाव भारत जैसे देशों में तो जीवन के हर क्षेत्र में हुआ है। ना तो खिलाड़ियों का रूटीन अब पहले जैसा रहा है ना ही दर्शकों का।
दर्शकों और खिलाड़ियों के बीच के रिश्तों में बाज़ार पहले से कहीं ज़्यादा बिचौलियापन में आ गया है। फिलहाल यह बिचौलिया टी-20 क्रिकेट में तो एक तरह से कर्ता-धर्ता बन गया है। भारत-इंग्लैंड जैसे शानदार टेस्ट मैच विशुद्ध क्रिकेट प्रेमी और खिलाड़ियों को तो लुभाते हैं लेकिन इनमें निरंतरता की कमी होने से बाज़ार को इतना नहीं लुभा पाते। ऐसा नहीं है आज आइकन खिलाड़ियों का दौर खत्म हो गया है, ये दौर तो खेल के साथ-साथ चलता है लेकिन इसमें तब्दीली ये आई है कि ये आइकन प्लेयर अब टी-20 में मिलने लगे हैं, ना कि 90 के दशक की तरह टेस्ट मैचों में।
ये खेल में आया एक बड़ा बदलाव है। आइकन खिलाड़ियों की कमी से जूझ रहा कोई भी खेल दर्शकों को लंबे समय तक खींच नहीं सकता है। ज़रा याद कीजिए वो दिन जब सामने सचिन तेंदुलकर बल्लेबाज़ी करते थे तो दूसरे छोर से वसीम अकरम, वकार यूनुस जैसे गेंदबाज़ एशियन पिचों पर ही वो कमाल अक्सर दिखाया करते थे, जिसको दिखाने के लिए आज के तेज़ गेदबाज़ों को मददगार विदेशी पिचों की ज़रूरत होती है।
तब एक ही टीम में सचिन, राहुल, लक्ष्मण जैसे धुरंधर हुआ करते थे तो आज पूरी दुनिया भर से सिर्फ चार बल्लेबाज़ों की बात होती है-विराट कोहली, स्टीव स्मिथ, केन विलियमसन और जो रूट। ये वो दौर था जब टेस्ट मैच अपने उफान पर होते थे और हर खिलाड़ी टेस्ट मैच खेलना चाहते थे, शायद तभी हर टीम में उस समय ऐसे दो चार खिलाड़ी मिल ही जाते थे जिनको आज हम खेल के सर्वकालिक महानों में शामिल करते हैं। ब्रायन लारा, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, कर्टनी वाल्श, एम्ब्रोज, शॉन पोलाक, एलन डोनाल्ड, जैक कैलिस, वसीम, वकार, इंजमाम, मुरलीधरन, चामिंडा वास, ग्लेन मैकग्रा, शेन वॉर्न, एडम गिलक्रिस्ट, रिकी पोंटिंग नामों की ये फेहरिस्त बहुत लंबी है।
आज अगर देखें तो सब इतनी तेज़ी से बदल चुका है। टी-20 जैसे फटाफट क्रिकेट ने टेस्ट क्रिकेट को समय से पहले ही बूढ़ा कर दिया है। क्रिकेट इसलिए इतना बदला क्योंकि खिलाड़ी, दर्शक और बाज़ार तीनों का मिजाज़ मिलकर टी-20 में हो गया। इसका नतीजा यह हुआ कि टेस्ट स्तर पर महान खिलाड़ियों का आज ऐसा अकाल है कि हम आज की पीढ़ी के अकेले तेज़ गेंदबाजी योद्धा डेल स्टेन से बेपनाह मोहब्बत करते हैं, विराट कोहली और स्टीव स्मिथ जैसे बल्लेबाज़ आज हमारी जान हैं। ये बताता है कि खेल के किसी भी काल में आइकॉनिक प्लेयर्स को देखने लोग हमेशा आते हैं।
खिलाड़ी सारा साल टेस्ट मैचों के अलावा विभिन्न किस्म की टी-20 लीग में उलझे हुए हैं। इन लीगों में पैसा इतना है कि इनसे दूर रहना मूर्खता भरा लगता है। ज़्यादा खेलना और फिर शरीर को फिट रखना भी एक बड़ी चुनौती है। यही कारण है महेंद्र सिंह धोनी जैसे आइकन असमय ही टेस्ट मैच को तब अलविदा कह देते हैं जब उनसे उम्मीद की जा रही थी कि वे बाकी के सभी प्रारूप छोड़कर अब अपने टेस्ट मैच करियर को गंभीरता से लेंगे।
वहीं व्यस्त हो चुके दर्शक के पास भी अब इतना समय और धैर्य नहीं बचा कि वह पांच दिन तक लगातार एक ही मैच को देखता रहे। इसके बजाए वो दो-तीन घंटे के लिए अपने परिवार के साथ टी-20 जैसे खेल को देखना पसंद कर रहा है, जिसमें उसको भरपूर मनोरंजन मिल जाता है। टी-20 की एक अच्छी बात यह भी है कि उसको समझने के लिए ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। बच्चे भी चौके-छक्के लगते देखकर तालियां पीट लेते हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि टी-20 क्रिकेट का भविष्य है लेकिन इस भविष्य की कीमत अगर टेस्ट क्रिकेट को चुकानी होगी, तो यह बहुत भारी कीमत है। सारी दिक्कतों के बाद भी टेस्ट क्रिकेट की अहमियत नजरअंदाज़ नहीं की जा सकती है। बड़े-बड़े सूरमा क्रिकेटरों की कलई खोलने वाले क्रिकेट का ये क्लासिक संस्करण ना केवल खिलाड़ियों का टेस्ट लेता रहा है, बल्कि दर्शकों की खेल के प्रति समझ की भी खूब परीक्षा लेता है। वैसे जाते-जाते बता दें कि टेस्ट के बचे कुछ चुनिंदा हीरों में से एक एलिस्टर कुक ने भी अपनी विदाई की घोषणा कर दी है।