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महिलाओं के लिए फ्री पब्लिक टॉयलेट की मुहिम चलाने वाली मुमताज़ शेख

स्वच्छ भारत मिशन के तहत देशभर के ग्रमीण और शहरी इलाकों में सरकार द्वारा बनवाए जा रहे शौचालयों की गुणवत्ता और भ्रष्टाचार की खबरों के बीच Youth Ki Awaaz सम्मिट 2018 के दूसरे दिन ‘राइट टू पी कैंपेन’ की सांचालिका और सैनिटेशन पर लंबे वक्त से काम कर रहीं मुमताज़ शेख ने महिलाओं के लिए पब्लिक यूरिनल्स की उपलब्धता पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। मुंबई से आईं मुमताज़ ने अक्षय कुमार की फिल्म ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ का ज़िक्र करते हुए बताया कि क्यों टॉयलेट एक प्रेम कथा नहीं है।

सम्मिट में अपने सेशन के दौरान मुमताज़ एक ऐसा मुद्दा लेकर आई थीं जिसका ज़िक्र आमतौर पर इस समाज में नहीं किया जाता है। उन्होंने इस देश में महिलाओं के लिए पब्लिक यूरिनल्स ना होने पर खेद प्रकट करते हुए कहा कि इस देश में मर्दों के लिए तो फ्री यूरिनल्स की सुविधा है लेकिन जब बात महिलाओं की आती है तब उन्हें पैसे देकर यूरिनल्स का इस्तेमाल करना पड़ता है। यूरिनल्स संचालकों द्वारा दलीलें पेश की जाती हैं कि पुरुष तो खड़े होकर पेशाब कर लेते हैं लेकिन महिलाएं बैठकर पेशाब करती हैं जिनके लिए हमें अलग सेट-अप लगाने होते हैं और उसके लिए पैसे चाहिए होते हैं।

उन्होंने बताया कि मुंबई में औरतों को पेशाब करने के लिए 2 रुपये से लेकर 30 रुपये तक देने पड़ जाते हैं, बस इसी वजह से हमने अपनी कैंपन ‘राइट टू पी’ की शुरुआत की। मैं जिस संस्था से जुड़ी हुई हूं उसका नाम है CORO INDIA , हमारे अलग-अलग कार्यक्रम चलते हैं जिनमे ग्रास रूट लीडरशिप का एक प्रोग्राम है और उससे ही उभरकर आई थी ‘राइट टू पी कैंपेन’।

उल्लेखनीय है कि राइइ टू पी कैंपेन के तहत पिछले सात वर्षों से मुमताज़ की संस्था देशभर में महिलाओं के लिए फ्री टॉयलेट की व्यवस्था के लिए सक्रिय होकर काम करती है। सरकारी आंकड़ों का ज़िक्र करते हुए मुमताज़ बताती हैं कि 50-60 लोगों को एक टॉयलेट शीट्स यूज़ करने चाहिए लेकिन एक शोध के मुताबिक 1200 से 1500 लोग रोज़ाना एक टॉयलेट सीट यूज़ करते हैं। ऐसे में गंदगी और पर्याप्त पानी का ना होना भी संकट की बड़ी वजह बन जाती है।

जब हमने साल 2011 में अपनी मुहिम की शुरुआत मुंबई में की थी तब 2849 फ्री यूरिनल्स मर्दों के लिए थे, जबकि महिलाओं के लिए आंकड़ा शून्य था। मुमताज़ यूथ की आवाज़ सम्मिट के दूसरे दिन जोश से लबरेज़ युवाओं की भारी भीड़ के बीच मुखरता से अपनी बात रखते हुए कहती हैं कि हमें कहा जाता है कि औरतों को अलग से यूरिनल्स मांगने की आखिर ज़रूरत क्या है? उन्होंने यूरिन्लस को मराठी भाषा में बोली जाने वाली शब्द ‘मुताड़ी’ का प्रयोग करते हुए कहा कि हमें यहां तक कहा जाता है कि ये महिलाएं अब वीमन एम्पॉवरमेंट के नाम पर कुछ भी मांगने चली हैं।

जब मैं मुताड़ी शब्द का प्रयोग करती हूं तब लोग कहते हैं कि कितना गंदा साउंड करता है ये शब्द। आप स्वच्छता गृह कहो, प्रसाधन कक्ष कह लो, टॉयलेट कह लो लेकिन मुताड़ी ना बोलो। एक कहावत है ना, “हम जा तो रहे हैं छाछ मांगने, लेकिन बरतन को छिपा रहे हैं।”

वो कहती हैं, “एक औरत होने की वजह से उनकी बॉडी से रिलेटेड जो चीज़ें हैं उसको अगर समझना है, तो उनके लिए बैठकर पेशाब करने की व्यवस्था होनी चाहिए। महाराष्ट्र सरकार और मुंबई महा-नगरपालिका के साथ हमारा एक आंदोलन चल रहा है जिसके अंदर हमारी रणनीति ये होती है कि जहां पर हम मिलकर काम कर सकते हैं, हम कर लेते हैं और जहां पर उनका विरोध करना होता है, हम विरोध भी प्रकट करते हैं।

इसी कड़ी में मुमताज़ ने महाराष्ट्र सरकार को घेरते हुए कहा कि महाराष्ट्र सरकार पूरे जोश के साथ हर साल ‘वर्ल्ड टॉयलेट डे’ मनाती है। दिल्ली में आकर उन्होंने दो बार ‘हगंधारी मुक्त महाराष्ट्र हुआ’ के लिए सर्टिफिकेट प्राप्त किया लेकिन आपको अंदाज़ा है कि अब भी असंख्य लोग सड़कों के किनारे बैठकर शौच करते हैं।

मुमताज़ शेख के सेशन को सुन रहे युवाओं में ‘राइइ टू पी कैंपेन’ को लेकर गज़ब की दिलचस्पी दिखी। मुमताज़ के सेशन के दौरान महिलाओं के लिए यूरिनल्स होने की आवश्यकता वाली बातों ने कहीं ना कहीं वहां मौजूद युवाओं के दिलों में सर चढ़कर दस्तक दी, जो आने वाले वक्त में एक क्रांतिकारी परिवर्तन के तौर पर उभरकर सामने आएगी।

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