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दुनियाभर में 100 से ज़्यादा जंगल लगाने वाले शुभेंदु

आज हम तकनीक की दिशा में काफी प्रगति कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो बहुत पीछे छूटती जा रही हैं। हम अपने निजी स्वार्थ को साधने के लिए हर रोज़ धड़ल्ले से पेड़ों की कटाई कर रहे हैं। लिहाज़ा पेड़ों के कटने और तेज़ी से तबाह होते जंगलों के कारण आज ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है और बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से मौसम में अजीबो-गरीब परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने अपना जीवन ही पर्यावरण संरक्षण के नाम कर दिया है। इस सूची में सबसे शीर्ष पर नाम आता है ई-फॉरेस्ट के फाउंडर शुभेंदु शर्मा का जिन्होंने इंडस्ट्रियल इंजीनियर की नौकरी छोड़ जंगलों की रक्षा के लिए खुद को समर्पित कर दिया है।

Youth Ki Awaaz सम्मिट 2018 में बतौर वक्ता आए शुभेंदु देश और दुनिया में जंगलों को लगाने के अनुभवों को साझा करते हुए बताते हैं कि नौकरी छोड़ने के बाद से लेकर अब तक का उनका संघर्ष कैसा रहा। दिल्ली के डॉक्टर अंबेडकर इंटरनैशनल सेंटर में युवाओं की भारी भीड़ और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच शुभेंदु बताते हैं कि वो पेशे से इंजीनियर रहे हैं और कुछ साल पहले तक टोयोटा के लिए गाड़ियां बनाने का काम करते थे।

ऐसे मिली जंगल बनाने की प्रेरणा–

शुभेंदु कहते हैं कि टोयोटा कंपनी में काम करने के दौरान मेरी मुलाकात एक जापानी वैज्ञानिक डॉक्टर अकिरा से हुई। वो हमारी फैक्ट्री को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए वहां पर एक जंगल लगाने आए थे। उन्होंने ढ़ाई एकड़ में 20 हज़ार वृक्षों का एक घना जंगल बनाया। वे आगे कहते हैं कि जंगल लगाने के डेढ़ साल बाद मैंने इसे तेज़ी से बढ़ते देखा और मुझे ऐसा लगने लगा कि कहीं ऐसा ना हो कि जंगल लगाने का ये तरीका हमारी फैक्ट्री तक ही सीमित रह जाए। फिर मुझे लगा कि क्यों ना इस आइडिया को बाहर ले जाकर कहीं और भी जंगल लगाया चाहिए।

इसी कड़ी में शुभेंदु बताते हैं कि अपनी कंपनी में जंगल लगते हुए देख वो इतने प्रेरित हुए कि सबसे पहले अपने घर से ही जंगल लगाने की शुरूआत कर दी। वे बताते हैं, “उत्तराखंड में हमने एक छोटा सा जंगल लगाया और छोटी सी जगह में हमने पहले 224 पेड़ लगाए। तीन साल बाद जब हमने देखा तब मेरे द्वारा लगाए गए पेड़ अब जंगल का रूप ले चुके थे। इस घर में जंगल लगाने के बाद मैंने गाड़ियां बनाने का काम बंद किया और जंगल बनाने का काम शुरू किया। जंगल वृक्षों से भरी एक ऐसी जगह है जिसमें घुसना भी असंभव हो। चाहे वो हज़ारों एकड़ में फैले हो या किसी छोटे से घर में लगे हो।

बड़ी शिद्दत से होता है जंगल लगाने का काम-

शुभेंदु की एक पूरी टीम है जो जंगल लगाने से पहले स्पॉट पर जाकर जाएज़ा लेती है और फिर ये तय किया जाता है कि यहां पर कैसे-कैसे पेड़ लगाए जा सकते हैं। वे बताते हैं कि उन्होंने ई-फॉरेस्ट नामक कंपनी की शुरूआत साल 2011 में की और तब से लेकर अब तक दुनिया के नौ देशों में 100 से ज्यादा जंगल लगा चुके हैं।

शुभेंदु आगे कहते हैं कि अपने घर में जंगल लगाने के बाद हमने देखा कि ज़मीन का पानी गर्मियों में सूख जाया करता था और जंगल लगाने के बाद सुखना बिल्कुल बंद हो गया। उस जंगल से हर सीज़न में हमें फल मिलते हैं। देखते ही देखते अब ऐसा हो गया है कि वहां पर एक अलग छोटा सा माइक्रो क्लाइमेट बन गया है। ऐसा लगता नहीं है कि हम एक घर में और शहर के बीच में हैं। ऐसा लगता है कि हम दूर कहीं छोटे से हिल स्टेशन में हैं।

बकौल शुभेंदु, देखा जाए तो आमतौर पर हम किसी हरी चीज़ को देखकर समझ लेते हैं कि बहुत हरियाली है, हम मान लेते हैं कि यह जगह बिल्कुल जंगल जैसी बन गई है। आमतौर पर किए गए वृक्षारोपण की तुलना में इन जंगलों में तीस गुना ज़्यादा वृक्ष होते हैं। यानी कि तीस गुना ज्यादा ऑक्सिजन और कार्बन डाइऑक्साइड इनसे आपको मिलते हैं। ग्रीन सर्फेस एरिया, जो इनकी पत्तियों से मिलकर बनता है, वो इन जंगलों में 30 गुना ज्यादा पाया जाता है। ज़मीन से टॉप तक की जगह हम हरियाली से भर देते हैं। ये जंगल इतने घने होते हैं कि आप इनमें चलकर जा भी नहीं सकते हैं। यहां तक कि आप आर-पार देख भी नहीं सकते हैं।

जंगल बनाने से पहले ऐसी होती है सर्वे-

शुभेंदु बताते हैं किसी भी नई जगह पर इन जंगलों को बनाने के लिए हम वहां पर मिलने वाले पेड़ों की एक सूची तैयार करते हैं। जो वहां की देशी प्रजातियां हैं, वहां पर सदियों से उगती आ रही हैं। उन्हें कोई मेंटेंन नहीं कर रहा है, कोई पानी नहीं दे रहा है। अपने आप ही ये वहां पर कई सालों से उग रहे हैं। हम पहले उन पेड़ों का सर्वे करते हैं और इस सर्वेक्षण में जो भी प्रजातियां हमें प्राप्त होती हैं हम उनकी एक सूची बना लेते हैं और उसके बाद इनको चार अलग-अलग वर्गों में बांट देते हैं। ऐसा करने से हम एक मल्टीलेयर्ड फॉरेस्ट (बहुस्तरीय जंलग) लगा सकते हैं। जिसमें झाड़ियां और छोटे वृक्ष भी होते हैं। ऐसे में बहुत बड़े पेड़ भी होते हैं जो छत की तरह जंगल को ढककर रखते हैं।

शुभेंदु आगे कहते हैं कि फॉरेस्ट को अलग-अलग तरीकों से लगाने के लिए सबसे पहले उनका बेस बनाना होता है। उसकी मिट्टी तैयार करनी होती है। किसी भी प्राकृतिक जंगल की मिट्टी नमी, न्यूट्रीशियस तो होती ही है साथ ही साथ उनमें सॉफ्टनेस भी होता है। उनमें बहुत सारे माइक्रो-ऑर्गेनिज़्म होते हैं। ऐसी मिट्टी बनाने के लिए बंजर भूमि को कई सारी चीज़ों से मिलाना पड़ता है। मिट्टी को एक मीटर तक खोदकर ये चीज़ें मिलाते हैं और उन्हें वापस ढक देते हैं। इस तरीके से हम इस मिट्टी को तैयार कर लेते हैं। इससे होता ये है कि जब आप मिट्टी पर पानी डालेंगे तो यह पानी को सोख सकती है और फिर इसमें माइक्रो-ऑर्गेनिज़्म पैदा होने शुरू हो जाते हैं।

बंजर भूमि को वापस कैसे जागृत करेंगे इसके लिए हम जीव-अमृत नामक एक चीज़ का प्रयोग करते हैं। इसको मिट्टी में मिलाने से मिट्टी में वो माइक्रो-ऑर्गेनिज़्म वापस आ जाते हैं जो आमतौर पर एक घने और हरे भरे जंगल में स्वत: ही मिलते हैं। उसके बाद हम पौधों को काफी पास-पास लगा देते हैं।

जैसे-स्क्वायर मीटर में तीन से पांच पौधे, ये वो पौधे होते हैं जिनका हमने पहले ही सर्वे किया हुआ था। जिनको हमने अलग-अलग वर्गों में बांटा था। इसको हम इस तरीके से लगाते हैं कि हर लेयर का पौधा मिलजुलकर लगे। ऐसा ना हो कि किसी एक हिस्से में सिर्फ झाड़ियां आ जाएं या किसी एक हिस्से में सिर्फ बड़े पेड़ आ जाए। ऐसा करने से ही हम बहुस्तरीय जंगल लगा पाता हैं और ज़मीन के उपर की सारी जगह हम हरियाली से भर देते हैं।

इन पौधों को लगाने के बाद हम घास की एक मोटी सी चादर लगा देते हैं। इसकी वजह से सूर्य की रोशनी ज़मीन तक नहीं पहुंचती। और वो इवैपोरेशन को रोकती है, पानी वास्प में नहीं बदलता। यहां तक कि पानी भी हमें कम ही देना पड़ता है।

इसके बाद हम समय-समय पर पेड़ों को पानी देते रहते हैं। पानी देकर हम उस मिट्टी की नमी को बरकरार रखते हैं। हम इन पेड़ों को कभी काटते-छांटते नहीं हैं, क्योंकि हम एक जंगल बना रहे होते हैं। डेढ़ से दो साल के अंदर ये पौधे इतने बड़े हो जाते हैं कि सूरज की रोशनी अब ज़मीन तक नहीं पहुंच पाती। आप यदि हमारे द्वारा बनाए गए जंगलों को देखेंगे तो नीचे काफी अंधेरा होता है।

शुभेंदु जंगल लगाने की दास्तानों को बयान करते हुए आगे कहते हैं कि लगभग दो सालों में ये जंगल पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाती है। सभी पेड़ एक दूसरे का साथ देते हुए परिवार की तरह बढ़ते हैं। आप ऐसा न समझे कि ये सौ पेड़ हैं और ये सारे अलग-अलग बढ़ रहे होते हैं। 10 सालों में ये जंगल ऐसा हो जाता है जैसे बहुत पुरानी हो। 100 स्क्वायर मीटर जैसी जगह में आप लगभग 350 पेड़ों का जंगल बना सकते हैं। 350 पेड़ों का जंगल सिर्फ एक i-phone के खर्चे में बन सकता है।

गौरतलब है कि कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और गुजरात जैसी जगहों में शुभेंदु अपनी टीम के साथ मिलकर जंगल बना चुके हैं। राजस्थान के कुछ ऐसे इलाकों में जहां घास तक उगना नदारत होता है वहां भी शुभेंदु जंगल बना चुके हैं।

आज ज़रूरत है इस देश के युवाओं को शुभेंदु से प्रेरणा लेते हुए धड़ल्ले से हो रही पेड़ों की कटाई को ना सिर्फ रोकने की दिशा में किसी सकारात्मक प्रयास के साथ सामने आने की, बल्कि जंगल बनाने वाली शुभेंदु की इस नायाब तकनीक से कुछ सीखते हुए भी अपने आस-पास ही सही मगर जंगल लगाने की दिशा में थोड़ी सार्थकता तो दिखानी ही चाहिए।

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