प्रसिद्ध बाल विशेषज्ञ और लेखक शैलजा सेन Youth Ki Awaaz सम्मिट 2018 में बेहद ज़रूरी सवाल उठा रही थीं। उन्होंने कहा कि इस देश में जहां एक लड़का या एक लड़की हर घंटे आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं, वहां कौन इसकी ज़िम्मेदारी लेगा?
क्या बतौर एक समाज हम इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है? क्या एक माँ या बाप या अभिभावक के रूप में ये हमारी असफलता नहीं है? क्या ऐसी घटनाओं से हमें फर्क नहीं पड़ना चाहिए?
उन्होंने कहा, “हमारे बच्चे हर रोज़ हार रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि वे बच्चे हार रहे हैं बल्कि हम हार रहे हैं। हम उन्हें हारने के लिए मजबूर कर रहे हैं। हमने उनपर दबाव डाल दिया है। उन्हें सफल होना है, उन्हें ज़िंदगी में कोई मुकाम पाना है लेकिन हम उन्हें वे जैसे हैं वैसे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। जाति, क्षेत्र, धर्म, करियर, कांटैक्ट और ना जाने किस किस चीज़ में हम उन्हें फंसा रहे हैं।”
युवाओं की अपार भीड़ के बीच उन्होंने कहा कि हम बच्चों से जैसे बात करते हैं, हम उन्हें एक अजीब से अंधेरे में धकेल देते हैं। हमें बच्चों को समझना होगा। उनके जीवन के करीब जाना होगा।
अपने संबोधन के अंतिम पड़ाव में उन्होंने कहा, “हम बच्चों के मानसिक उलझनों को समझने में नाकाम हो रहे हैं। मैं पिछले कई दशक से बच्चों पर, उनके अवसाद पर काम कर रही हूं, सैकड़ों बच्चों को देखा है और आधार पर कह सकती हूं कि हमारे बच्चे नहीं हार रहे हैं बल्कि हम उन्हें हरा रहे हैं।”
हमको एक ऐसा समाज बनाना होगा जहां बच्चों को इमोशनल सपोर्ट दिया जा सके। वो स्पेस जहां बच्चे खुद को अभिव्यक्त कर सकें। उसके बिना एक बेहतर भविष्य की उम्मीद नहीं की जा सकती है।