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#YKASummit: “केंद्र, राज्यों की ऑटोनोमी पर लगातार कर रही है हमला”

YKA सम्मिट के दूसरे दिन के पांचवे सत्र में #DemocracyAdda के बैनर तले बहस का मुद्दा था Can The Centre Hold? जो कि केंद्र द्वारा राज्यों की ऑटोनोमी को कम करने के सवाल पर केंद्रित था। इस बहस के मॉडरेटर थे कॉंग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद शशि थरूर और इस बहस में हिस्सा लेने वाले पैनल का हिस्सा थे राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी, कॉंग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी और झामुमो के विधायक कुणाल सारंगी। इस सत्र में सत्ता के विकेंद्रीकरण, नीति आयोग की भूमिका और वन नेशन, वन इलेक्शन की संभावनाओं पर बात हुई।

सत्र की शुरुआत करते हुए शशि थरूर ने पैनल के सामने ये सवाल रखा कि क्या केंद्र को राज्यों के ऊपर अपना नियंत्रण कम करने की ज़रूरत है?

इसके जवाब में प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “केंद्र द्वारा राज्यों की ऑटोनोमी पर हमला किया जा रहा है जो कि देश के उन मूल्यों के खिलाफ है जिसपर इसकी नींव पड़ी है। तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा लगातार ये कोशिश की जा रही है कि वो राज्यों के अधिकारों का हनन करते हुए उनके फैसलों पर असर डाले। इस बात की ज़रूरत है कि हम राज्यों की ऑटोनोमी को सुरक्षित करें और संविधान द्वारा राज्यों को प्रदान की गयी आज़ादी का सम्मान करें।”

मथुरा से पूर्व सांसद जयंत चौधरी का कहना था, “राज्यों को सम्मान एवं स्वतंत्रता दिए जाने की ज़रूरत है। हमारे देश के निर्माताओं का भी यही मानना था कि राजनीतिक ढांचे में ताकत किसी एक पार्टी या किसी एक नेता तक ही सिमट कर नहीं रहनी चाहिए। हां ये सही है कि हमारी शासन व्यवस्था बहुमत पर काम करती है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम इस व्यवस्था में असहमति को जगह ही ना दें। डॉक्टर अम्बेडकर का भी कहना था कि हमें किसी एक व्यक्ति विशेष के प्रति श्रद्धा या भक्ति का भाव नहीं रखना चाहिए।”

झारखंड के बहरागोड़ा से विधायक कुणाल सारंगी ने अपने राज्य के राजनीतिक हालात का उदाहरण देते हुए कहा, “पिछले दो सालों में झारखंड की विधानसभा नहीं चली है इसकी वजह से सत्तारूढ़ दल बिना किसी बहस के बजट भी पास कर रही है। विपक्ष को जो अपनी बात कहने का अधिकार मिलना चाहिए था वो नहीं मिला है।”

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इसी सवाल पर बहस को आगे बढ़ाते हुए जयंत चौधरी ने कहा, “NDC जैसी संस्थाएं जो राज्यों के हितों की रक्षा के लिए बनी हुई हैं उनको अभी की सरकार द्वारा कमज़ोर या ठप्प किया जा है।” इसके आगे उन्होंने मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई नीति आयोग को “नीति अयोग्य” की संज्ञा देते हुए कहा, “अब नीति आयोग बजाय राज्यों को सुझाव देने के उन्हें नीतिगत मामलों पर आदेश दे रहा है क्योंकि ये एक तरह से प्रधानमंत्री मोदी के निर्देशों पर काम करता है।”

शशि थरूर ने फिर तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य में होने वाले आइडेंटिटी पॉलिटिक्स पर पैनल से सवाल करते हुए जानना चाहा कि आज क्यों वोटर या खुद नेता की स्ट्रॉन्ग आइडेंटिटी चुनाव का एक बड़ा पहलू बन गयी है।

इस सवाल पर जयंत चौधरी ने कहा, “आइडेंटिटी दरअसल राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि इसके ज़रिये ही हम मतदाताओं से जुड़ पाते हैं।”

कुणाल का कहना था, “सिर्फ आइडेंटिटी के हिसाब से अपनी स्ट्रैटेजी तय करना सही नहीं है। आइडेंटिटी के नाम पर यह सरकार शिवाजी या सरदार पटेल की मूर्तियों पर इतने पैसा खर्च कर रही है। केरल की बाढ़ में ये सरकार 500 करोड़ की मदद देती है वहीं मूर्तियों के लिए 4000 करोड़ खर्च करने को तैयार है। तो ये तय करना होगा कि सरकार की प्राथमिकता क्या है।”

शशि थरूर का अगला सवाल दक्षिण के राज्यों के राजस्व में योगदान पर था। अपने राज्य का हवाला देते हुए उन्होंने पूछा, “केरल जैसे दक्षिण भारत के समृद्ध राज्यों पर अक्सर दूसरे कम विकसित राज्यों का भार पड़ता है तो इस वजह से दक्षिण भारत के राज्यों में व्याप्त असंतोष को कैसे कम किया जा सकता है?”

इसके जवाब में प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “राज्यों में इस तरह का पोलराइजेशन नहीं होना चाहिए।”

वन नेशन वन इलेक्शन पर होती चर्चा के बारे में जयंत चौधरी का कहना था, “अगर इस व्यवस्था की तकनीकी चुनौतियों की बात ना भी करें तो इस व्यवस्था में कई खामियां हैं। जैसे कि हर सरकार पांच साल तक टिकती नहीं है तो उस हालत में क्या होगा जब किसी राज्य की सरकार का कार्यकाल पांच साल तक नहीं चलता। वैसी हालत में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगेगा जो कि बिल्कुल भी सही नहीं है।”

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