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“प्रिया के बदन पर चोट के निशान इस देश के पतियों की हैवानियत को बयान करते हैं”

पोस्ट ग्रेजुएशन का अंतिम रोज़ था। हम सब सहेलियां एक दूसरे से ना जाने फिर कब मिल पाएंगी। कौन कहां आगे पढ़ने जाएगी, कौन किस करियर में अपना हाथ आजमाएगी, कौन कब शादी कर रही है और तो और आज कितने लड़कों के दिल टूट रहे हैं, जैसी बातों से पूरा क्लासरूम गूंज रहा था। इन सबके बीच हम सहेलियों का झुंड गोला बनाए एक कोने में अपनी एक सहेली को घेर कर बैठे थे। समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उसकी परेशानी और हमारी एक दूसरे से बिछरने की परेशानी में अंतर क्या है। उदास तो  हम सभी थे, लेकिन आगे की ज़िन्दगी को लेकर एक उत्साह था जो सभी के चेहरे से प्रतित हो रहा था।

पिछले कई दिनों से हमने देखा कि जैसे-जैसे ये दिन करीब आ रहा था, हम सभी को एक अलग किस्म की परेशानी का एहसास हो रहा था।मगर उसका मन हल्का करने के लिए एक सहेली अटखेली करते हुए बोली  ‘अरे तू क्यों इतनी गुमसुम है’, ‘तेरी लाइफ तो सेट है’, ‘जीजू के साथ कहीं की ट्रिप मार कर आ’, दूसरी उसे कोहनी से टोह करती हुई बोली, ‘वैसे भी जीजू तो बड़े रोमांटिक हैं, शिमला मनाली कहीं के नज़ारे देख कर आ’,  इसी बात पर सारी सहेलियां ज़ोर से ठहाके मार कर हंसने लग गईं।

तभी पीछे से किसी जूनियर की आवाज़ आई कि हम सब का कॉमन रूम में फेयरवेल फंक्शन के लिए इंतज़ार हो रहा है। सारी क्लास एक-एक कर खाली होने लगी और हम सब अपने फूल और गिफ्ट्स बटोरते हुए चलने लगे, “अरे चल ना प्रिया, हंस भी दे। कॉलेज खत्म हुआ है, दोस्ती थोड़े ही ना खत्म हुई है। चल आजा फटा-फट। आज तो डांस भी जम कर करेंगे। इसी बीच जब मेरी नज़र उस पर गई तब उसके चेहरे के शून्य भाव को देखकर मन में एक अजीब सी परेशानी दौड़ पड़ी।

फेयरवेल फंक्शन लगभग समाप्त हो गया और हमारे सामने मानो पिछले दो सालों का चलचित्र सा घूम गया। मेरी नज़रें लगातार प्रिया को तलाश रही थी। पिछले साल की कई तस्वीरों को पर्दे पर दिखाए जा रहे थे और उन्हीं तस्वीरों में से एक मेरी और प्रिया की भी थी। हमेशा किसी ना किसी ऊट-पटांग हरकत को प्लान करने वाली प्रिया की वो तस्वीर उसकी शादी से पांच रोज़ पहले ली गई थी। उस रोज़ हमने उसके लिए प्री-वेडिंग फंक्शन रखा था। खैर, शादी की शॉपिंग में पैदल चला-चला कर थका दिया था उसने हम सबको। मन में चल रहे कोलाहल ने इस फंक्शन को पहले ही बैकग्राउंड में धकेल दिया था।

पूरी बिल्डिंग का चक्कर लगाने के बाद एक क्लासरूम में प्रिया दिख गई। चाय की एक कप पकड़ाते हुए जब वास्ता देकर पूछा तब वो मेरे गले लग कर फूट-फूट कर रोने लगी। वो इस बात को लेकर परेशान थी कि जो कुछ वक्त हमारा उसके साथ यूनिवर्सिटी में बीत जाया करता था, वो भी अब घर में घुटन की तरह बीतेगा। दिक्कत तो ज़रूर कुछ बड़ी थी, लेकिन मेरी पक्की सहेली नहीं होने की वजह से मैं ज़बरन उससे नहीं पूछ सकती थी और उसे इस हालत में छोड़ देना भी मेरी मन की आवाज़ के खिलाफ था।

फिर मैंने कुछ देर और इधर-उधर की बातें करके उससे पूछ ही लिया, “घर पर सब ठीक है? तेरा घर पर झगड़ा हुआ है क्या? आंटी से बात कर कुछ तसल्ली होगी? ” वो फिर काफी ज़ोर-ज़ोर से रो पड़ी और क्लासरूम का दरवाज़ा बंद कर दिया। ये सब देखकर मैं दंग रह गई। हालात ऐसे हो गए कि पहले तो उसके दर्द की कल्पना करने लग गई और फिर उसकी ओर बस देखती ही रह गई। उसके शरीर के उन तमाम निशानों को बस मैं देखती ही रह गई। क्या आप जानते हैं नीले रंग के कितने किस्म होते हैं? हर किस्म के नीले रंग प्रिया के बदन पर देखने को मिल रहे थे।

मेरे भय और अचरज को देख कर वो बोली “ज़िन्दगी में तुम कुछ भी करना, लेकिन कभी किसी और के भरोसे मत रहना। अपने पैरों पर खड़ा होना। मेरी तरह ज़िन्दगी मत जीना”।  शायद मुझे समझ में आ गया था कि वो क्या कहना चाह रही है। वो चोट व दांतो के निशान जिनके चारो ओर नीला हो चुका था। बहुत कुछ कह रहे थे चोट के वो निशान। मैंने उसे गले लगा लिया और वो जैसे एक बच्चे की तरह मेरे सीने में छुप गई । मेरे आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे और दिल व दिमाग में एक अजीब सी आंधी चल रही थी।

मैंने पूछा “तुमने अपने मम्मी पापा को या पुलिस को इस बारे में बताया” ? फिर वो बोली, किसको क्या बताऊं यार, सब ना जाने कैसे-कैसे सवाल पूछेंगे। लोगों के लिए ये मेरे ज़ख्म नहीं शायद एक मनोरंजक कहानी का अंश भर बन कर रह जाएंगे। जिस समाज में तू और मैं रहते हैं, वहां बस पावर या गॉसिप ही चलती है।

जब वो कुछ देर और मेरे गले लगी रही तब मुझे उसकी  वेदनाओं का अंदाज़ा हुआ। उसके लंबे-चौड़े, हैंडसम, पढ़े लिखे, वेल सेटल्ड, अफसर पति के चेहरे से मेरी सहेली के इन ज़ख्मों का ताल मेल बैठाने में मैं कामयाब हुई।

संयुक्त राष्ट्र के सर्वे के हिसाब से आपके और हमारे बीच हर 3 लड़कियों में 1 ऐसी प्रिया मौजूद है। मेरी मम्मी भी आज कल ज़ोर-शोर से मेरे लिए एक पढ़ा लिखा और वेल सेटल्ड लड़का तलाश रही है।

नोट: नाम बदला गया है।

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