Site icon Youth Ki Awaaz

इंजीनियर से संन्यासी बने दिशांत के मां-बाप की ISKCON से गुहार, हमें हमारा बेटा लौटा दो

आपको लग रहा होगा कि इस टाइटल का क्या मतलब है? आपके मन में कई तरह के सवाल आ रहे होंगे लेकिन उन तमाम सवालों से पहले मैं आपको एक घटना बताना चाहता हूं। घटना बहुत छोटी सी है लेकिन सच्ची है। मैं YouTube देख रहा था, देखते-देखते मैं एक न्यूज़ चैनल के प्रोग्राम पर पहुंचता हूं। उस पर क्लिक करता हूं, क्लिक करने की वजह ये थी कि इस खबर के बारे में पढ़ा तो था लेकिन मैं थोड़ी और बारीकी से इसे जानना चाहता था।

खबर थी कि अहमदाबाद के दिशांत अपने परिवार का त्याग करके संन्यासी बन चुके हैं। वो हरे कृष्णा संस्था के साथ जुड़े हैं। बीते 3 सालों परिवार अपने इकलौते बेटे को वापस चाहता है। परिवार इस्कॉन का चक्कर लगा-लगाकर थक चुका है। न्यूज़ चैनल ने दिशांत और उनके मां-बाप को सामने बिठाया। दोनों पक्षों में बात शुरू हुई, मां बाप का कहना है कि संस्था ने बेटे का ब्रेनवॉश कर दिया है।

बेटा आईआईटी पास आउट है, पिता सरकारी नौकरी करते हैं, इकलौता बेटा है। उस मां के आंसू और पिता का कपकपाता शरीर किसी भी संवेदनशील इंसान को भावुक करने के लिए काफी थी। वो पिता अपने हाथों को जोड़कर बेटे के सामने खड़ा था, गिड़गिड़ा रहा था, कि मेरा कोई भी सहारा नहीं है। तुम मेरे बुढ़ापे की लाठी हो, मां लगातार रो रही थी, लेकिन बेटा टस से मस नहीं हो रहा था।

https://www.youtube.com/watch?v=e9cHVh7FvvA

न्यूज़ एंकर लगातार कोशिश कर रहे थे कि सारी बातें साफ-साफ हो जाएं लेकिन बेटा अपने मां बाप से कह रहा था कि आप मुझे फोर्स नहीं कर सकते, ये मेरी निजी स्वतंत्रता है। बस यही वो लाइन थी जो मुझे परेशान कर गई। ठीक है, सभी को निजी स्वतंत्रता का अधिकार है लेकिन फिर रिश्ते कहां हैं ? भावनाएं कहां हैं? संवेदनाएं कहां हैं? दिशांत ने संन्यास अपने मन से लिया या उनका ब्रेन वॉश किया ये बहस का विषय है। इतना तो तय है कि अगर दिशांत आज इस तरह अपनी बातों को रखने के काबिल हुए हैं तो यह संन्यास से नहीं बल्कि उनके मां बाप के खून पसीने की कमाई से कराई गई पढ़ाई से है।

हमारा समाज ऐसा ही है, एक वक्त के बाद मां-बाप अपने बेटों पर आश्रित हो जाते हैं। बेटा चाहे एक हो या चार, ये समस्याएं हर जगह हैं। मैं भी इकलौता बेटा हूं। विचारों को लेकर मेरी भी अपने पिता से असहमति होती है लेकिन आज के इस पूरे वीडियो ने मेरे रौंगटे खड़े कर दिए। मैं शब्दों में बता नहीं सकता कि उस वक्त मेरी मन:स्थिति क्या थी। एक पिता अपने बेटे के सामने हाथ जोड़कर कह रहा है कि मैं तुम्हारे लिए अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दूंगा और जहां तुम कहोगे उस शहर में हम सभी रहेंगे।

यानि रिटायरमेंट से पहले ही इस्तीफा, यानि कोई पेंशन नहीं अब आप सोचिए पिता किस हद तक त्याग के लिए तैयार है, लेकिन बेटा टस से मस नहीं हो रहा है। फिर मैंने सोचा कि एक वक्त ऐसा आएगा जब मैं भी पिता बनूंगा। मेरी भी उंगली को पकड़कर मेरा बेटा या मेरी बेटी चलना सीखेंगे। मैं उनकी तोतली सी आवाज़ सुनकर कितना खुश हो जाया करूंगा। फिर जब वो बड़े होंगे और वो मेरे विचारों से असहमति जताएंगे, विरोध करेंगे, जो कि लाज़मी है क्योंकि वक्त अपनी रफ्तार से बदलता ही रहता है।

क्या उनकी सारी ज़िद मैं उसी तरह पूरी कर दूंगा जैसे मेरे माता-पिता ने मेरी की हैं? दो दिन पहले की बात है, घर में मैंने इतना भर कहा कि सिर में दर्द है और लेट गया। उन 10 मिनट में ऐसा कोई जतन ना रहा होगा, जो मेरे मम्मी पापा ने किया ना हो जिससे मेरा सिर दर्द दूर किया जा सके। क्या मैं कर पाऊंगा अपने बच्चे के लिए इतना? कई बार विरोध के दौरान मेरी आवाज़ तेज़ हो जाती है। क्या अपने बच्चे के विरोध को मैं सुन पाऊंगा? शायद नहीं!

मैं जानता हूं कि मैं आपको कुछ भी नया नहीं बता रहा हूं। वक्त मिले तो YouTube पर ये वीडियोज़ देखकर एक बार सोचिए। यकीनन आप हैरान होंगे, परेशान होंगे। जब मेरी बेटी या बेटा सामने होंगे, जब मेरे ऊपर ज़िम्मेदारियां होंगी, मुझे नहीं लगता कि मैं अपने पिता जितना बेहतर पिता बन पाऊंगा। कई बार हम अपनी ज़िद को मां-बाप की इच्छाओं पर लाद देते हैं, और वही मां बाप हंसते-हंसते अपनी इच्छाओं को दबा देते हैं। हो सकता है मैं अपनी इच्छाओं को अपनी औलाद की ज़िद के सामने ना दबा सकूं, मैं बेहतर पिता ना बन सकूं! आज कोशिश तो यह है कि मैं एक बेहतर बेटा बन जाऊं, आज के इस शो ने मुझे अंदर तक झकझोरा है। आज मुझे यह महसूस हुआ कि पिता बनना आसान नहीं होता।

Exit mobile version