ये #Metoo जब तक बॉलीवुड या मीडिया में हैं या ऐसी किसी भी जगह है जहाँ पीड़ित/पीड़िता और आरोपी में कोई निजी रिश्तेदारी नहीं है तब इसपे खूब हो हल्ला किया जा सकता है। फांसी की मांग की जा सकती है, लेकिन इस #Metoo को घर की चारदीवारी के भीतर नहीं आने दिया जाता और जब किसी तरह ये घर मे आ जाये और दोस्त, रिश्तेदार और परिवार वाले आरोपी होने लगे तो अभी जो लोग चिल्ला चिल्ला कर आसमान सर पर उठाए हुए है वो अचानक चुप होकर सर रेत में गाड़ लेते हैं। क्योंकि अभी जो लोग क्रांतिकारी तेवर दिखा रहे है घरेलू तौर पर उनमें से खुद कई इसके आरोपी होंगे। अगर सच मे घरेलू दायरों में #Metoo के मामले उजागर होने लगे और उनकी वास्तविकता से पड़ताल करके न्यायालय से सजा होने लगे तो कई सारे बाप, भाई, चाचा, फूफा, मौसा, ताऊ, पारिवारिक दोस्त जेल में होंगे और भारत मे सार्वजनिक में जीवन पुरुष अल्पसंख्यक हो जाएंगे क्योंकि अधिकांश को तो जेल जाना पड़ेगा।
असल बात तो ये है कि हम बलात्कार, यौन हिंसा/अपराध/उत्पीड़न के मामलों में बहुत ज्यादा सेलेक्टिव हैं, और कार्यस्थल या घर से बाहर होने वाले महिला विरोधी अपराधों पर जब आरोपी पीड़ित/पीड़िता के पहचान का न हो या औपचारिक सम्बंध हो तो खूब हल्ला करते है अचानक से आंदोलनकारी बन जाते है मगर जब ये सारे अपराध घर मे बंद दरवाजो के पीछे होते है तो सारी क्रांति और आंदोलन हवा हो जाती है। इज़्ज़त का वास्ता देकर मामले को दबाने की और पीड़ित/पीड़िता का और ज्यादा उत्पीड़न करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती।
NCRB के आंकड़ों के अनुसार बलात्कार या यौन उत्पीड़न के मामलों के एक बड़े भाग में अपराधी पीड़ित/पीड़िता के घर पहचान वाले ही होते हैं।
अगर इन घरेलू दायरों में होने वाले बलात्कारों, यौन उत्पीड़नों मैरिटल रेप को #Metoo में शामिल और उजागर नहीं किया जाएगा तो ये #Metoo भारतीय समाज की हिप्पोक्रेसी की भेंट चढ़ जाएगा और जो खुद भी गुनहगार है वो दुसरो के गुनहगार होने पर कड़ी सजा को मांग करते फिरेंगे।