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चुनाव त्यौहार की तरह है और ईवीएम घातक यंत्र

आगामी पांच राज्यों के बाद देश में अगले वर्ष आम चुनाव है.ऐसे में सबसे ज़्यादा सोच-विचार जिस पर किया जाना चाहिए वह है ईवीएम.जी हाँ,ईवीएम के बारे में देश मे इतना अविश्वास बढ़ गया है कि अब हर जगह हार या जीत का कारण ईवीएम को ही बताया जाने लगा है.ऐसे हालात में जबकि देश की जनता के अधिकतर लोग ईवीएम को शक की नज़र से देखते है तो

ईवीएम को हटा क्यों नही देते है?
लोकमत में विश्वसनीयता ही लोकतंत्र की आत्मा है. ईवीएम तो केवल लोकमत जानने का साधन मात्र(इंस्ट्रूमेंट) अथवा यंत्र है, यह यंत्र लोकतंत्र से बड़ी चीज तो कभी नही हो सकता. इसलिए ईवीएम की बजाय लोकतंत्र की रक्षा किया जाना ही सबसे ज़्यादा जरूरी है.
आप क्या सोचते है क्या चुनाव आयोग को इस मामले में लोकमत को सुनना नही चाहिए? सुन्ना तो अवश्य चाहिए क्योंकि सवाल केवल ईवीएम पर ही नही बल्कि चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर भी उठना शुरू हो गए है. अब अपनी साख के साथ-साथ चुनाव आयोग को चाहिए कि वह भारत के लोकतंत्र एवं लोकमत की भी रक्षा करें. जिससे कि लोगों का विश्वास चुनाव अर्थात चुने जाने एवं चुनने की प्रवृत्ति में बना रहे. ईवीएम को हटाना इसलिए भी उचित है कि अति आधुनिक टेक्नोलॉजी वाले देशों में भी बेलट से चुनाव होता है, तो क्या भारत ईवीएम का जनक है जो ईवीएम को दरकिनार नही कर सकता?
इस मुद्दे पर चुनाव आयोग को गंभीरता दिखानी ही चाहिए क्योंकि यह निष्पक्षता के साथ-साथ देश की उस आस्था का मुद्दा है,जो कि चुनाव को भी किसी पर्व की तरह ही मानती है.और ऐसे में चुनाव आयोग को चाहिए कि वह पर्व को ईवीएम जैसे घातक यंत्र से दूर ही रखें न कि वीवीपेट जैसे तरीकों को आज़माये.

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