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स्वामी सानंद ने चंद मिनटों में छुड़वा दी थी मास्टर जी के नशे की लत

बात एक दशक पुरानी है जब मैं मध्य प्रदेश के अनूपपुर ज़िले के पुष्पराजगढ़ ब्लॉक में सहजीवन समिति द्वारा चलायी जा रही जलग्रहण परियोजना में सामुदायिक कार्यकर्ता के तौर पर कार्यरत था। उन दिनों सरई पंचायत के तरंग गांव में ग्रामीण जन और बच्चे प्राइमरी स्कूल के गुरूजी के नशे की लत से बहुत परेशान थे। गुरूजी अक्सर शराब के नशे में स्कूल आते थे। ग्रामीणों ने उन्हें समझाने की पूरी कोशिश की लेकिन आदत में कोई सुधार नहीं हुआ।

इसी बीच शिक्षक दिवस के मौके पर प्रख्यात पर्यावरणविद् व प्रोफेसर गुरुदास अग्रवाल जो कि अब स्वामी सानंद हो चुके थे का गांव में आना हुआ। वे यहां ग्रामीणों द्वारा किये जा रहे जल संरक्षण के कार्य को देखने पहुंचे थे। आते ही उन्होंने किसी स्कूल में गुरू वंदना कार्यक्रम आयोजित करने की इच्छा जतायी। इससे हम सभी बड़े असमंजस में पड़ गये कि कहीं आज भी मास्टर साहब ने पी तो नहीं रखी है। खैर, आनन-फानन में स्कूल तक सूचना भेजकर शिक्षक सम्मान कार्यक्रम की तैयारी करायी गई।

अपने तय समय पर श्री अग्रवाल जल संरक्षण समिति सदस्यों के साथ हाथ में फूल और गीता की पुस्तक लिये स्कूल में दाखिल हुए। स्थानीय जन उनके अतिथि सत्कार के बारे में सोच ही रहे थे कि आते ही उन्होंने गेंदा फूल और गीता की पुस्तिका गुरूजी के हाथ में देते हुए उनके चरण छू लिये। यह एकदम ही अप्रत्याशित हुआ, ग्रामीणों और गुरूजी को ऐसे किसी सम्मान का अंदाज़ा भी नहीं था। आगे बढ़ते हुए गुरुदास जी ने बाकी फूल टेबल पर रखा और सरस्वती मां की तस्वीर पर चढ़ा दी।

उनके इस सहज हृदयता को देखकर स्कूल के बच्चों ने भी एक-एक करके अपने गुरूजी के पैर छूने शुरू कर दिए। ग्रामीणों और बच्चों ने अतिथि सहित गुरूजी के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिए। उस समय का भावनात्मक दृश्य आज भी आंखों में उतर आता है। इस घटना से तरंग स्कूल के कुछ-कुछ नशे में रहे गुरूजी तो मानों काठ से हो गए थे। इतने वरिष्ठ जन से मिले सम्मान को पाकर उनका नशा अश्रुओं के साथ जाता रहा।

इस घटना के बाद ग्रामीणों ने पर्यावरण प्रेमी गुरुदास अग्रवाल का सामूहिक अभिनंदन किया और स्वयं भी नशा मुक्त होने का संकल्प लिया। इस अवसर पर बच्चों ने कविताएं सुनायी तो तरंग के निवासियों ने कबीर भजन गाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। गुरुदास जी ने सभी बच्चों को रोज़ाना माता-पिता और अपने गुरूजी के चरण स्पर्श करने और नित्य ध्यान से पढ़ाई करने की सीख दी।

इस छोटी सी गुरू वंदना का ग्रामीणों पर असर यह हुआ कि उन्होंने जन भागीदारी से स्कूल की क्षतिग्रस्त छत को अगले कुछ दिनों में ही श्रमदान से दुरुस्त कर दिया। इधर सरई, तरंग, पयारी गांव में ग्रामीणों द्वारा किये गए जलसंरक्षण कार्य को देखते हुए श्री अग्रवाल ने इस काम को लोक शिक्षा बताया और ग्रामीणों को इसे सहेजने और फैलाने की बात कही।

आज की शिक्षा व्यवस्था में जहां गुरू की यह सहज सीख और लोकशिक्षा का बोध कम हुआ है वहीं एक दशक पूर्व सच्चे गुरू से मिली इस सीख ने मेरे मन में सेवा व सम्मान से भरे संस्कारों को अंकुरित होने का अवसर दिया।

उस दिन के बाद से तरंग गांव और वहां के प्राइमरी स्कूल और उस गुरूजी के अंदर बहुत कुछ सुधार और बदलाव हुए हैं। प्रख्यात क्षेत्र अमरकंटक के कुछ ही दूर पर बसे सरई पयारी और तरंग गांव में जलसंरक्षण से जुड़ी लोक शिक्षा की यह पहचान आज भी बरकरार है।

इस घटना के कुछ वर्षों बाद मीडिया से गुरुदास जी के स्वामी सानंद हो जाने का पता चला और फिर गंगा मैया में बढ़ रहे प्रदूषण के खिलाफ उनके संघर्ष की खबरें निरंतर आती रहीं।

प्रोफेसर गुरुदास अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद गंगा मैया को बचाने और गंगा एक्ट की लड़ाई लड़ते-लड़ते प्रकृति में विलीन हो गए हैं। देश की सरकार ने उनकी बातों को कितना सुना यह तो वो ही जाने पर अब जब हम स्वामी सानंद  हम सबको छोड़कर इस दुनिया से विदा हो गये हैं तब गंगा नदी जैसी पवित्र प्राकृतिक धरोहरों को सहेजने की ज़िम्मेदारी हम सभी पर आ गई है। आइये इन गंगापुत्र “गुरुदास” को नमन कर कुछ ऐसा करें कि गंगा मैया को बचाने की उनकी पुकार अनसुनी ना रह जाये।

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