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“ब्रेस्ट कैंसर से बचने के लिए महिलाओं को खत्म करनी होगा शर्म और झिझक”

ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस मंथ

ब्रेस्ट कैंसर

महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूक करने के लिए 1 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस मंथ (BCAM) चलाया जाता है। जिसका उद्देश्य महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है। फेफड़ों में होने वाले कैंसर के बाद महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर दूसरा सबसे  बड़ा कैंसर है।

गौरतलब है कि ब्रेस्ट कैंसर में 25% महिलाओं की मृत्यु जागरूक नहीं रहने के कारण हो जाती है। अगर शुरुआती दिनों में ही कैंसर का पता लगा लिया जाए तो यह पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

ब्रेस्ट की कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने की वजह से बाद में ट्यूमर का रूप धारण कर लेती है। उनमें दर्द और सूजन होना शुरू हो जाता है। निप्पल को दबाने पर एक गाढ़े द्रव्य का रिसाव होना शुरू हो जाता है। इसके अलावा निप्पल में खिंचाव महसूस करने पर भी ब्रेस्ट कैंसर के शुरूआती लक्षण का अनुमान लगाया जा सकता है।

अंडर आर्म्स और कॉलर बोन के आस-पास अगर छोटी गांठें बनना शुरू हो जाए, तब भी महिलाओं को सतर्क हो जाना चाहिए। ऐसे में शर्म और लापरवाही को छोड़कर तुरंत डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।

महिलाएं अपने ब्रेस्ट की जांच खुद भी कर सकती हैं जिसे ‘सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिन’ कहा जाता है। इसे महावारी के चार-पांच दिनों के बाद किया जाता है। इसमे हथेली से थोड़ा दवाब देकर पूरे स्तन का परीक्षण किया जाता है। साथ ही बगल या कांख का परीक्षण भी अनिवार्य है। आईने में भी महिलाएं अपने स्तनों की जांच कर सकती हैं। इससे किसी भी तरह के खिंचाव या त्वचा के रंग में परिवर्तन आदि का पता चलता है लेकिन ज़रूरी नहीं कि हर गांठ या दर्द कैंसर हो। ऐसे में डाक्टरी सलाह बेहद जरूरी होती है।

कैंसर साबित होने पर इसके स्टेज के अनुसार इलाज निर्धारित किया जाता है। सर्जरी के साथ ही कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और हार्मोनलथेरेपी दी जाती है। ब्रेस्ट के एक्स-रे को मैमोग्राम कहा जाता है। कभी-कभी जब कैंसर पूरे स्तन में फैल जाता है, तब डॉक्टर मेस्टेकटॉमी की सलाह देते हैं। जिसमें सर्जरी करके पूरे स्तन को हटा दिया जाता है। जब कैंसर स्तन के कुछ भागों में फैला हो, तब उसे लुमपेकटामी के ज़रिए निकाल दिया जाता है। इसके साथ ही अब स्तन को पुनः सर्जरी के माध्यम से गठित कर दिया जाता है।

ग्रामीण, अत्यंत पिछड़े और शहरी इलाकों में आज भी महिलाएं शर्म और लापरवाही के कारण अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ करती हैं। आज भी कई जगहों पर महिलाएं अपने अंतःवस्त्र बाहर नहीं सुखा सकतीं, क्योंकि समाज असहज हो जाता है। महिलाओं को लंबा घूंघट रखना पड़ता है, जिससे उन्हें सूर्य की रोशनी तक नहीं मिल पाती। महिलाओं को खुद इन सब ख्यालातों को तोड़ना होगा। शर्म  या लापरवाही खुद के साथ खिलवाड़ करने के बराबर है। परिवारवालों की भी ज़िम्मेदारी होती है कि वे उन्हें अवसाद में जाने से बचाएं, मानसिक तौर पर महिलाओं को हिम्मत दें और समय पर डॉक्टर से इलाज कराएं। याद रहे, शुरुआत तो खुद ही करनी होगी।

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