Site icon Youth Ki Awaaz

गलत आंकड़ों वाला 2011 का जनगणना ‘आयुष्मान भारत योजना’ के लिए मानक कैसे हो सकता है?

Ayushman Bharat Yojna

Ayushman Bharat Yojna 2018

23 सितंबर को देश भर में मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘आयुष्मान भारत योजना’ को लागू कर दिया गया है। इसके तहत 10 करोड़ बीपीएल परिवारों को सालाना 5 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराने के दावे पेश किए जा रहे हैं। इस योजना के माध्यम से सरकार का मानना है कि गरीब, उपेक्षित और शहरी लोगों को गंभीर बीमारियों से निज़ाद पाने में काफी मदद मिलेगी। कहा यह भी जा रहा है कि ज़मीनी स्तर पर इस योजना के क्रियान्वयन को लेकर कोई ठोस पहल नहीं की गई है।

एक वेबसाइट के मुताबिक लाभुकों के चयन को लेकर कहा जा रहा है कि प्राथमिकता के तौर पर साल 2011 में हुई सामाजिक, आर्थिक और जाति आधारित जनगणना को आधार माना जाएगा। इसके अलावा आधार नंबरों से भी परिवारों की सूची तैयार की जा रही है। जब यह सूची पूरी तरह से तैयार हो जाएगी तब लाभुकों को किसी भी प्रकार की पहचान पत्र दिखाने की आवश्यकता नहीं होगी।

आपको बता दें आयुष्मान भारत योजना की लिस्ट में आपका नाम है या नहीं इस बात का पता लगाने के लिए 14555 पर फोन करके या अपने नज़दीकी कॉमन सर्विस सेंटर से भी जान सकते हैं।

अब बड़ा सवाल यह है कि साल 2011 में हुई जनगणना को यदि आयुष्मान भारत योजना के लिए मानक समझा जाएगा, तब वाकई में इस योजना पर संकट के काले बादल मंडराने के आसार नज़र आ रहे हैं। उदहारण के तौर पर हमें समझना होगा कि साल 2011 की जनगणना किस तरीके से पूरी की गई थी और ग्रामीण व शहरी इलाकों से जो आंकड़े लाए गए थे, उनकी जांच ठीक से की गई थी या नहीं। इन्हीं चीज़ों को समझने के लिए मैं अपना एक निजी अनुभव साझा करने जा रहा हूं कि जब ग्रामीण इलाकों में जाकर साल 2011 में मैंने जनगणना के आंकड़े लाए थे।

साल 2011 में जब सामाजिक, आर्थिक और जाति आधारित जनगणना की शुरुआत हुई थी, उस वक्त बड़ी आसानी से कोई भी युवा ज़िले या प्रखंड कार्यालय में जाकर बतौर ऑपरेटर अपना नाम दर्ज करा सकता था। युवाओं के लिए वह एक मौका था जहां वे ग्रामीण इलाकों में जाकर ज़मीनी स्तर के कामों को सीखने के साथ-साथ कुछ पैसे भी कमा सकते थे। स्थानीय युवाओं ने जमकर इस मौका का लाभ उठाया। मुझे भी जब जानकारी मिली कि मेरे शहर में जनगणना शुरू होने वाली है, तब मैं भी प्रखंड कार्यालय जाकर एक घंटे की ट्रेनिंग लेकर इस काम में जुट गया।

मेरे निजी अनुभवों से यह तो स्पष्ट है कि आयुष्मान भारत योजना के मापदंडों को तय करने के लिए साल 2011 में हुई सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना को आधार नहीं माना जा सकता।

निजी कंपनी के हाथ थी जनगणना की कमान – साल 2011 की आर्थिक, सामाजिक और जाति जनगणना संपन्न कराने की ज़िम्मेदारी कई एनजीओ/कंपनी को दी गई थी। इन एनजीओ/कंपनी को ज़िला या प्रखंड कार्यालयों में सरकार के द्वारा जगह दी जाती थी जहां से ये अपना काम कर सकें। ज़िले में ऑपरेटरों की नियुक्ति की कमान District Coordinator के हाथ में होती थी। राज्य सरकारों ने आधिकारिक तौर पर शिक्षकों को डेटा कलेक्ट करने का काम सौंपा था, जहां उनके साथ एक ऑपरेटर भी ग्रामीण इलाकों में जाया करते थे। कंपनी के साथ कई समस्याएं उत्पन्न होती थीं, जैसे कि शिक्षक या ऑपरेटर द्वारा कलेक्ट किया गया डेटा डिलीट हो जाता था। ऐसे में कंपनी कहती थी कि वोटर लिस्ट देखकर फिर से डेटा को सर्वर पर अपलोड कर दीजिए।

साल 2011 की सामाजिक, आर्थिक और जाति आधारित जनगणना के आंकड़े संग्रह करने के लिए प्रयोग की गई टैबलेट कम्प्यूटर

इस काम में चुनौती ये आती थी कि डेटा कलेक्ट करने के लिए ग्रामीण इलाकों में गए शिक्षक या ऑपरेटर को अपनी मर्ज़ी से ही जनगणना के आंकड़े अपडेट करने होते थे। जैसे कि, यदि वोटर लिस्ट में किसी महिला को पुरुष कर दिया गया है, तब उसे बगैर संशोधन किए ही अपडेट कर दिया जाता था। परिवार में यदि किसी नए बच्चे का जन्म हुआ है या फिर कोई नई बहू आई है, तब उसकी एंट्री छूट जाती थी। काम जल्दी निपटा कर सरकार से पैसे लेने के होड़ में ये कंपनियां शिक्षकों के डेटा का बगैर पुष्टि किए ही अपडेट कर देते थे।

गलत आंकड़े लाए जाते थे – इसे ऐसे समझिए कि यदि जांच करने के लिए आप ग्रामीण इलाकों में जाएंगे ही नहीं, तब सही आंकड़ा आएगा कहां से ? जी हां, ऐसा ही होता था। एक तो सरकार स्कूल टीचर्स को इस काम में लगाती थी जिनके पास पहले से ही और भी काम होते थे। उन टीचर्स के साथ जो ऑपरेटर ग्रामीण इलाकों में जाते थे, उन्हें यह दिशा निर्देश दिया जाता था कि टीचर जो बोले वहीं करना है। फिर तो ऑपरेटर की ज़िम्मेदारी खत्म ही हो गई।

साल 2011 में हुई जनगणना की बात करें तो वह इस लिहाज से भी खास था क्योंकि उनमें लोगों की गिनती के अलावा भी कई सारे कॉलम थे जिन्हें सही-सही सबमिट करना था, जैसे – घर का प्रकार, राशन कार्ड है या नहीं, रोज़गार करने वालों की संख्या वगैरह वगैरह।

तस्वीर प्रतीकात्मक है। सौजन्य : The Caravan

औसत शिक्षक तपती धूप में ग्रामीण इलाकों में जाने से बचने के लिए कई नायाब तरकीब अपना लेते थे। वे घर या किसी जगह पर ऑपरेटर को बुलाकर बताते थे कि इस आदमी का खपड़े और इसका मिट्टी का घर है। किसी ग्रामीण के घर पर यदि कोई सदस्य रोज़गार करता भी था तब कई दफा ऑपरेटर्स और शिक्षक घूस लेकर लिख देते थे कि इसके घर में कोई भी व्यक्ति रोज़गार नहीं करता। ग्रामीणों को लगता था कि अगर हम सरकार को अपनी निजी जानकारियां दे देंगे तब हमें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलेगी। ऐसे में सरकार के पास ना सिर्फ जनगणना को लेकर गलत आंकड़ा चला जाता था बल्कि रोज़गार करने वालों के लिए भी एक भ्रम पैदा होती थी।

प्रमाण के तौर पर मैं स्वंय कई शिक्षकों के साथ बतौर ऑपरेटर जनगणना कार्य में शामिल था। झारखंड के दुमका ज़िला अंतर्गत रानेश्वर प्रखंड के एक शिक्षक के साथ मिलकर मुझे उनके पंचायत से आंकड़े लाने थे। उन्हें रानीबहाल पंचायत के कुछ गांवों में जाकर जनगणना के आंकड़े लाने के लिए कहा गया था और मैं पूरी तरह से तैयार था कि उनके साथ मैं फील्ड में जाने वाला हूं। इसी बीच मुझे ज़िले से कॉल करके कहा जाता है कि प्रिंस आप रानीबहाल वाले टीचर का सहयोग कीजिए और घर बैठे ही जनगणना के आंकडे सबमिट कर दीजिए। मेरे द्वारा सवाल-जवाब किए जाने पर मुझे फटकारते हुए उन्होंने कहा कि जितना कहा जाए उतना ही कीजिए और इस प्रकार वह शिक्षक मुझे मेरे घर पर आंकड़े लाकर देते चले गए। उन्हें ये चीजें पता ही नहीं थी कि टैबलेट पीसी में कौन-कौन से कॉलम हैं जिसकी जानकारी गांव से लानी है।

वे मेरे घर पर आकर मुझसे बोले, प्रिंस आपको बॉस ने तो समझा ही दिया होगा कि आपको मेरा सहयोग करना है। बस आप मेरा साथ देते जाईए। उन्होंने एक फटी हुई कॉपी मुझे देते हुए कहा कि इनमें आंकड़े हैं जिन्हें मैेंने एक ही दिन में जाकर कलेक्ट किया है। तो आप कर लीजिए।

आयुष्मान भारत योजना के तहत लाभार्थियों की चयन प्रकिया के लिए यदि साल 2011 की जनगणना को मापदंड माना जाएगा, तब ज़ाहिर है गलत आंकड़े परेशानी का सबब बन सकते हैं।

इकॉनोमिक टाइम्स की वेबसाइट में प्रकाशित खबर की माने तो सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) 2011 के हिसाब से ग्रामीण इलाके के 8.03 करोड़ परिवार और शहरी इलाके के 2.33 करोड़ परिवार आयुष्मान भारत योजना (ABY) के दायरे में आएंगे। इस तरह PM-JAY के दायरे में 50 करोड़ लोग आएंगे।

इन आंकड़ों से आयुष्मान भारत योजना की बुनियादी कमी को बखूबी समझा जा सकता है। इन्हीं चीजों पर अपना अनुभव साझा करते हुए मेरे साथी ऑपरेटर सुबोध कुमार बताते हैं कि मैं तो फील्ड जाता भी नहीं था, घर बैठकर ही धड़ल्ले से एंट्री कर देता था।

ऐसे में आप सोच सकते हैं सिर्फ झारखंड में यदि से इस तरह की बात निकलकर सामने आ रही है, फिर अन्य राज्यों की हालत क्या हो सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि औसत गरीब परिवारों को आयुष्मान भारत योजना का लाभ ज़रूर मिलेगा, लेकिन वे लोग भी इस सेवा का फायदा उठा पाएंगे जिनके आलीशान घरों के सर्वे के दौरान कच्चा घर दिखा दिया गया था। कुछ ऐसे परिवार वंचित भी रह सकते हैं जिनके खपड़ैल घर को पक्के का घर कर दिया गया था।

दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में गुजर बसर करने वाले लोगों के लिए सरकार के द्वारा कुछ मापदंड तय किए गए हैं, जिनकी कसौटी पर खड़ा उतरने के बाद लोग इस योजना का लाभ ले पाएंगे। जैसे, जिन परिवारों के पास केवल एक कमरे का कच्चा मकान है, जिन परिवारों में 16 से 59 वर्ष का कोई व्यस्क नहीं है, महिला प्रधान परिवार जहां कोई व्यस्क पुरुष नहीं है, दिव्यांग सदस्य जिनके परिवार में कोई सक्षम व्यस्क नहीं है, एसटी या एससी परिवार और भूमिहीन।

तस्वीर प्रतीकात्मक है।

भूमिहीन परिवार से मुझे एक बात याद आती है कि जब किसी खास रोज़ कोई शिक्षक फील्ड जाकर सर्वे कर रहा होता था, तब ग्रामीण भी उन्हें कहते थे कि प्लीज़ मेरी भूमि मत दिखाईए। आपको मुर्गा खिला देंगे। मैंने जिन भी पंचायत में बतौर ऑपरेटर काम किया है वहां तो औसत इलाकों में शिक्षक द्वारा सभी को भूमिहीन दिखा दिया गया। बेशक इस चीज़ के लिए ग्रामीण भी ज़िद्द करते थे।

घासीपुर पंचायत में जब मैं रोजगार सेवक उज्जल के साथ बतौर ऑपरेटर कार्य कर रहा था तब वे अपने कार्यक्षेत्र वाले ग्रामीण इलाकों में यह ऐलान ही कर देते थे कि प्रिंस किसी की भूमि का डेटा सरकार के पास नहीं जाना चाहिए।

गलत आंकड़ों के हिसाब से दर्ज की गई साल 2011 की जनगणना को यदि आयुष्मान भारत योजना के लिए एकमात्र मानक के तौर पर प्रयोग किया जाता है, तब सरकार की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। ज़रुरत है सरकार 2019 लोकसभा चुनाव के लिए आयुष्मान भारत योजना को भुनाने के बजाए इसके बुनियाद ढ़ांचे पर काम करे।

Exit mobile version