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मनरेगा: झारखंड में टारगेट पूरा करने के नाम पर मज़दूरों के पुराने स्मार्ट कार्ड्स तोड़े गए

मनरेगा के तहत मज़दूरी करते ग्रामीण

मनरेगा के तहत मज़दूरी करते ग्रामीण

जब से देश में मनरेगा लागू हुई तब से लेकर अब तक इस योजना के संदर्भ में बहुत सारी बातें कही गई। सरकारें जहां गरीबी और बेरोज़गारी को कम करने के लिए मनरेगा को सबसे कारगर बताती आई है वहीं समय-समय पर मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार की संलिप्तता होने से यह योजना सवालों के घेरे में भी रही है। 100 दिन रोज़गार की गारंटी का फेल होना, मज़दूरों को विलम्ब से मेहनताना मिलना और ग्रामीण स्तर पर बढ़ती दलाली इस योजना की विफलताओं का बखान करती है।

मनरेगा योजना के संदर्भ में एक तरफ जहां भ्रष्टाचार के अनेकों मामले प्रकाश में आए, वहीं दूसरी ओर कई ऐसे मामले हैं जिन्हें दबा दिए गए। एक ऐसा ही वाक्या साल 2011 का है जब मज़दूरों को कैश में भुगतान से निज़ाद दिलाने के लिए सरकार ने उन्हें स्मार्ट कार्ड देने का फैसला किया। इसके तहत देश भर में पंचायत और ग्रामीण स्तर पर कैंप लगाए गए और धड़ल्ले से स्मार्ट कार्ड एनरोलमेंट की प्रक्रिया शुरू की गई। झारखंड राज्य के दुमका ज़िला समेत कई ज़िलों में “फिनो” नामक कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया।

ये वो वक्त था जब ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए कॉलेज में दाखिला लेकर मैं किसी पार्ट टाइम जॉब की तलाश कर रहा था। एक जानकार के माध्यम से मुझे खबर मिली कि फिनो कंपनी में पार्ट टाइम जॉब है, जहां मनरेगा योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में जाकर स्मार्ट कार्ड की एनरोलमेंट करनी है। ज्वाइनिंग के बाद कंपनी के द्वारा ना कोई ट्रेनिंग और ना ही कोई ऑफर लेटर दिया गया, पहले ही दिन फील्ड पर भेज दिया गया।

फील्ड जाने के दौरान सुपरवाइज़र द्वारा कुछ दिशा निर्देश दिए गए कि जॉब कार्ड देखकर ही मज़दूरों का स्मार्ट कार्ड बनाना है। यदि किसी मज़दूर के पास जॉब कार्ड नहीं है, ऐसी स्थिति में उसका स्मार्ट कार्ड नहीं बनेगा।

पहले दिन नए ऑपरेटर्स को पुराने ऑपरेटर्स के साथ फील्ड पर उतारा गया और एक ही दिन में सभी नए ऑपरेटर्स एक्सपर्ट बन गए। इतने एक्सपर्ट कि अगले दिन आत्मविश्वास से लबरेज़ दिखाई पड़ रहे थे।

शुरुआती कुछ दिनों तक कंपनी ने एनरोलमेंट के दौरान नियम-कानूनों का पूरी तरह से पालन किया। सभी ऑपरेटर्स को टारगेट दिए जाते थे कि एक दिन में कम से कम 100 कार्ड्स की एंट्री करनी है। इसी बीच लगातार कुछ दिन ऐसे भी हुए जब औसत ऑपरेटर्स 50 से अधिक एनरोलमेंट नहीं कर पाए। इन हालातों को देखते हुए कंपनी की ओर से निर्देश आया कि किसी भी कीमत पर एक ऑपरेटर द्वारा 100 से कम एनरोलमेंट नहीं होनी चाहिए। यहीं से मनरेगा योजना के तहत उस भ्रष्टाचार का आगाज़ हुआ जो अब तक उजागर ना हो पाया।

ऑपरेटर्स द्वारा तोड़े गए स्मार्ट कार्ड्रस के कुछ सेंपल

“प्राप्त निर्देशों के मुताबिक ऑपरेटर्स को कहा गया कि यदि ग्रामीणों के पास पहले से स्मार्ट कार्ड मौजूद होंगे तब उन्हें तोड़कर पुन: कार्ड जारी किया जाए। आदेश प्राप्त होते ही ऑपरेटर्स ने ग्रामीणों के पुराने स्मार्ट कार्ड्स को यह कहकर तोड़ना शुरू कर दिया कि इसमें खराबी आ गई है और इस प्रकार से उनके नाम पर नए कार्ड जारी कर दिए गए। ये सिलसिला बदस्तूर जारी रहा और मेरी ज्वाइनिंग के महज़ 15 दिनों में खबर आई कि टारगेट पूरा हो गया है, अब काम बंद हो जाएगा। कुछ ही दिनों में इसी कंपनी को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY) का काम मिल गया और पूरी टीम बिहार के लिए रवाना हो गई।”

डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर द्वारा हमें जानकारी मिली कि सरकार से आदेश प्राप्त होने के बाद कंपनी पुन: यहां कैंप लगाकर भुगतान की प्रकिशा शुरू करेगी जिसके तहत मज़दूरों को उनका मेहनताना दिया जाएगा।

इन बिन्दुओं से फिनो कंपनी के कारनामें समझे जा सकते हैं-

आपको बता दें कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक यह दावा किया गया है कि मज़दूरों के काम खत्म होने के हर तीसरे दिन कंपनी द्वारा उन्हें भुगतान कराया जाता है। जबकि ये दावे पूरी तरह से गलत हैं।

उस दौरान मनरेगा योजना के लिए फिनो कंपनी में काम कर चुके कुछ ऑपरेटर्स से जब हमने बात की तब उन्होंने भी कई अहम खुलासे किए। गोड्डा ज़िले के महगामा प्रखंड स्थित गांव सरभंगा के जितेन्द्र दास ने साल 2011 में 15 दिन बतौर ऑपरेटर फिनो कंपनी के लिए काम किया था। जितेन्द्र बताते हैं कि कंपनी ने ना सिर्फ गरीब ग्रामीणों के साथ ठगी की, बल्कि हम जैसे ऑपरेटर्स को भी धोखा दिया। कंपनी हमे एक दिन के 100 रूपये देती थी, जबकि हम ऑपरेटर्स के लिए 300-350 रूपये आते थे।

वे आगे बताते हैं, हर रोज़ सुबह कंपनी की गाड़ी मुझे ग्रामीण इलाकों में ड्रॉप कर देती थी और हमे स्मार्ट कार्ड एनरोलमेंट करना होता था। जब कंपनी टारगेट हांसिल करने में विफल होने लगी तब हमे कहा जाने लगा कि ग्रामीणों के पास पहले से जो स्मार्ट कार्ड्स बने हैं उन्हें तोड़कर पुण: कार्ड जारी किया जाए। इस प्रक्रिया के तहत ना सिर्फ लाखों के स्मार्ट कार्ड्स की बरबादी हुई बल्कि पूरी की पूरी योजना ही फेल हो गई।

मनरेगा योजना के तहत मज़दूरी करते ग्रामीण। तस्वीर प्रतीकात्मक है।

दुमका ज़िले के नंद कुमार बैध कहते हैं कि फिनो कंपनी के साथ जब मैं जुड़ा था तब वो मेरी पहली नौकरी थी। मैं जोश से लबरेज़ रहा करता था। ऐसा लग रहा था कि यहां एक-दो साल काम करने का मौका मिलेगा लेकिन फिनो कंपनी तो 15 दिन में ही भाग गई। जब ग्रामीणों को जानकारी मिलती थी कि ऑपरेटर्स उन्हें बेवकूफ बनाकर उनके कार्ड्स को तोड़ रहे हैं तब उनमें आक्रोश उत्पन्न हो जाता था। कई बार तो मेरे साथी ऑपरेटर को गांव वालों ने पेड़ से बांध दिया था।

इस योजना के तहत ना सिर्फ सरकारी खज़ाने की लूट हुई बल्कि गरीब मज़दूरों को ठगकर तमाम ऑपरेटर्स ने भी खूब वसूली की। प्रति एनरोलमेंट 50 से 500 तक रूपये लिए गए। ग्रामीण इस हद तक ठगा हुआ महसूस करने लगे कि सरकारी योजनाओं और सरकार के प्रति उनका विश्वास भी टूट गया। परिणाम यह हुआ कि उन ग्रामीण इलाकों में बाद में किसी अन्य योजना के सिलसिले से जब हम गए तब हमें ग्रामीणों के आक्रोश का सामना करना पड़ा।

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