देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई में वरिष्ठ स्तर पर भ्रष्ट्राचार को लेकर जो दाग लगे हैं क्या वो सीवीसी की जांच में सामने आएंगे या सीवीसी द्वारा भी जांच की हीलाहवाली कर दी जाएगी। सीबीआई को हमेशा से बंद पिंजरे का तोता कहा जाता रहा है। केंद्र में जिसकी सरकार रहती है, उसी का मिठ्ठू मियां सीबीआई बनती है।
दो वरिष्ठ अधिकारियों अलोक शर्मा और राकेश अस्थाना में आपसी विवाद के कारण केंद्र सरकार ने दोनों को छुट्टी पर भेज दिया और कार्यवाहक सीबीआई चीफ के तौर पर नागेश्वर राव की नियुक्ति कर दी। इसके बाद प्रमुख चीफ आलोक शर्मा सुप्रीम कोर्ट चले गए। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दो सप्ताह में जांच पूरी करने का आदेश दिया व साथ ही सभी दस्तावेज़ों को कोर्ट में प्रस्तुत करने को कहा है।
सीबीआई की स्थापना देश में 1962 में की गई थी। जिसका मकसद देश में अपराध और भ्रष्ट्राचार के मामलों की जांच करना था। लेकिन समय बीतने के साथ सीबीआई खुद भ्रष्ट्राचार में संलिप्त हो गई। जिसका परिणाम जनता के सामने है। देश की जनता का सीबीआई से भरोसा उठ चुका है। जैसे–जैसे मामले की जांच हो रही है, वैसे–वैसे भष्ट्राचार की परत खुलती जा रही है।
सीबीआई के इस हालत के जिम्मेदार वर्तमान व पूर्व सरकारें भी हैं। अगर अपने लाभ के लिए सरकारें सीबीआई का प्रयोग नहीं करती तो सीबीआई की ये दुर्दशा नहीं होती। इस प्रकरण से केंद्र सरकार पर भी कई सवाल उठ रहे हैं। खबरें ये भी हैं कि केंद्र सरकार द्वारा सीबीआई प्रमुख अलोक शर्मा को इसलिए बर्खास्त कर छुट्टी पर भेजा गया क्योंकि वे राफेल डील व कई अन्य प्रमुख प्रकरणों की जांच करने वाले थे। इस जांच से वर्तमान सरकार प्रभावित हो सकती थी इसलिए उन्हें प्रमुख पद से हटा दिया गया।