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“अतिक्रमण के नाम पर पूरी सब्ज़ी मंडी को उजाड़ा जा रहा मगर मंदिर पर कोई आंच नहीं”

मैं पटना की रहने वाली हूं और कुछ दिनों से शहर में प्रशासन की ओर से चल रही बदलाव की एक हवा को आप सभी से साझा करने जा रही हूं। लगभग सप्ताह भर पहले की बात है, मैं कदमकुंआ सब्ज़ी मंडी की तरफ कुछ काम से गई थी, जहां सैंकड़ों फल एवं सब्ज़ियों की दुकान होती थी वहां आज सन्नाटा था। पहले तो हमने झट से घड़ी में टाइम देखा कि कहीं बहुत रात तो नहीं हो गई, जो दुकानें बंद हो गई हैं लेकिन तब सिर्फ साढे़ आठ ही बज रहे थे।

हमने खुद ही जाकर पूछना ज़रूरी समझा कि आखिर बात क्या है। सब्ज़ी का मोल-भाव करते हुए हाल-चाल पूछने के अंदाज़ में हमने पूछा, “आज एतना जल्दी सब लोगन बंद करके केने निकल गए हैं?”

जवाब देने से पहले उस औरत की आंखों में आंसू आ गए। हम बचपन से इस मंडी में जाते रहे हैं इसलिए अधिकतर लोगों से दंड-प्रणाम जितनी जान-पहचान रही है इसलिए सब्ज़ी बेच रही उस औरत से दोबारा पूछ लिया, “बतावा ना चाची का होलई है ऐजा?”

फिर उन्होंने बताया,

आज कुछ लोग सरकारी कार्यालयों से आए थे, कल सुबह तक मंडी को खाली करने का ऑर्डर देकर गए हैं।

यह बात चौंकाने वाली थी। फिर हमने मंडी के कुछ बुजुर्गों से बात की तो मालूम हुआ कि वहां लगभग 200 सब्ज़ी एवं फल की दुकानें लगती हैं और लगभग हज़ार लोग वहां रहते हैं। 1997 में उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने बेघर सब्ज़ी बेचने वालों को वो जगह बाज़ार के रूप में बनवाकर आवंटित किया था, तब से अब तक वहां बाज़ार लगते रहे हैं लेकिन अभी की सरकार का ऑर्डर है कि उसे तोड़ा जाए।

आपको बताते चले कि हाई कोर्ट के आदेश पर अपने शहर में अतिक्रमण हटाने की मुहिम चल रही है, इस मुहिम में अब वो मंडी को भी हटाने वाले हैं। हालांकि डी. एम. ने सब्ज़ी मंडी के लोगों को भरोसा दिलाया है कि उस जगह पर बढ़िया मार्केट बनेगा तब सरकार तुम लोगों को वहां दुकानें देगी।

हमने फिर जानने की कोशिश की कि क्या आप लोगों को इस बात से संबंधित कोई पेपर या डॉक्यूमेन्ट्स दिए गए हैं? तो जवाब था, “नहीं बउआ हमनी के आज आकर इ सब कह के चल गए हैं, कागज-पत्तर का कुछो नहीं बोले हैं”। मामला स्पष्ट है कि सरकार बाज़ार खाली कराने के लिए झुनझुना टाइप वादा कर रही है।

मेरी बातचीत के दौरान लगभग बीस-पचीस लोग जुट गए थे, उनमें से एक अंकल अपनी गाड़ी का दरवाज़ा खोलते हुए बुदबुदाते हुए बोल पड़े कि तुम लोग नगर-निगम को रेंट नहीं देते थे इसलिए यह कार्यवाही सरकार कर रही है तुम लोगों पर और ठीक ही तो हो रहा है। उस अल्ट्रा मॉडर्निज़्म के शिकार अंकल की बात सुनकर ऐसा लगा जैसे जले पर कोई नमक छिड़क रहा हो।

उस महाशय के चुप होते ही आस-पास खड़े लोग फिर बोलने लगे कि अब तक उनसे निगम या कहीं से कोई पैसा लेने नहीं आया है और अगर आया होता तो वे लोग ज़रूर देते। तब ही एक और लड़का बोल पड़ा,

हम टैक्स का चोरी करेंगे, जितना टैक्स महिनाभर में देंगे उतना से ज़्यादा कीमत के सब्ज़ी और फल तो लोकल थाना और लोकल गुंडे जबरन उठाकर ले जाते हैं।

इतने लोगों के ना तो रहने का कोई इंतज़ाम सरकार की ओर से किया गया है और ना ही इनके सब्ज़ी बाज़ार लगाने का इंतज़ाम किया गया है। ये छोटी पूंजी के व्यापारी हैं, जो रोज़ की कमाई से ही अपना और परिवार का पेट पालते हैं। ऐसे में दुकान और घर छीन जाने पर ये बिलकुल असहाय हो गए हैं। ज़्यादातर लोगों की वहां ज़ुबान की जगह आंखें दर्द बयां कर रही थीं।

सब्ज़ी मंडी को हटाया जा रहा मगर अवैध निर्माण के तहत बने दो मंदिर पर कोई कार्यवाही नहीं

सब्ज़ी मंडी को अवैध निमार्ण कहकर 1997 से रह रहे लोगों को बेघर तो कर दिया गया लेकिन वहां अवैध तरीके से बने दो मंदिर आज भी वैसे ही प्रशासन को मुंह चिढ़ा रहे हैं। मुझे मंदिर-मस्जिद या किसी भी धार्मिक-स्थल से बैर नहीं है लेकिन अपने शहर में कुकुरमुत्तों की तरह तेज़ी से ये धार्मिक-स्थल उग आये हैं, इनमें से ज़्यादातर अवैध तरीके से ज़मीन कब्ज़ा करके निर्माण किए गए हैं। पटना के कई हिस्सों में सड़क, गली, नालों, हॉस्पीटल और यूनिवर्सिटी तक की ज़मीन पर कब्ज़ा करके इनका निर्माण किया गया है।

धर्म के नाम पर इससे होने वाली मोटी कमाई कब्ज़ा करने वालों की पॉकेट में जाता है लेकिन स्मार्ट सिटी बनाने वाली ये प्रशासन हाड़-मांस वाले उस संघर्षशील वर्ग की झोपड़ियों को आसानी से उजाड़ देती है जो सब्ज़ी बेचकर जीवनयापन कर रहा था। पत्थर के भगवान और मज़ार के आगे ना इनका बुलडोज़र चलता है और ना जेसीबी मशीन चलती है।

मुझे किसी धर्म से शिकायत नहीं है लेकिन धर्म के नाम पर जो प्रोपेगंडा और बिजनेस कर रहे हैं उनसे शिकायत है। इन लोगों को ना प्रशासन का डर है ना उस भगवान का जिसके नाम की खेती करके ये अपनी गाढ़ी कमाई करने में लगे हैं और इन सब में प्रशासन के साथ-साथ सरकार का भी समर्थन इन्हें प्राप्त होता है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण सामने है कि हज़ारों लोगों के रहने-खाने की जगह छिनते वक्त समय नहीं लगा लेकिन मंदिर वहीं है।

हां, मैं मानती हूं कि कई बार सड़क तक दुकानें पहुंच जाती थीं, जिससे शाम के वक्त अक्सर ट्रैफिक जाम हो जाता था लेकिन इस बात को आधार बनाकर उन सभी के घरों और दुकानों को उजाड़ना सही है क्या? क्या इसका कोई वैकल्पिक समाधान निकाले जाने की ज़रूरत नहीं थी?

कौन सी स्मार्ट सिटी की दौड़ में हैं हम सब, जहां मलिन दिखने वाली गरीब बस्तियों को उजाड़ा तो जाता है लेकिन उनके रहने और रोज़गार के मुकम्मल इंतज़ाम तक नहीं किए जाते हैं। पटना में यह पहली घटना नहीं है, पहले भी कुर्जी और कई इलाकों में ऐसी ही दमनकारी गतिविधियां घटित होती रही हैं। ये कैसी प्रगति की ओर हम अग्रसर हो रहें जहां इंसानियत ही मर जाती है।

चलते-चलते यह भी बताते चलें कि इस मंडी के एक किमी के अंदर कई बड़े नेता और विधायकों का घर है, जिनमें सुशील कुमार मोदी, नीतिन नवीण, बिक्रम से जीते हुए सिद्धार्थ कुमार के साथ शत्रुघ्न सिन्हा का पैत्रिक आवास भी शामिल है। इतने नामों को तो मैं लिख रही हूं लेकिन अनेक बड़े नामों को नज़रअंदाज़ भी कर रही हूं।

मुमकिन है इन सबों के घरों की रसोई में सब्ज़ियां भी इसी मंडी से जाती होंगी लेकिन बड़े लोगों को कहां परवाह है गरीबों की।

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