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मोदी जी पहले खाने के बारे में सोचिए पखाने के बारे में बाद में

स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनवाए गए शौचालय

स्वच्छ भारत मिशन

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने देश भर में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ चलाया। अपने आस-पास के माहौल को स्वच्छ बनाए रखने के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी लोगों से अपील की गई कि वे खुले में शोच ना करें। चाहे कुछ हो या ना हो लेकिन स्वच्छता को लेकर लोगों ने एक-दूसरे को टोकना शुरू किया। सड़क किनारे खुले में शौच करने वालों पर जुर्माना भी लगाया गया।

वैसे सवाल यह भी है कि प्रदूषण के अनेकों प्रकार के बीच सिर्फ खुले में शौच करने वालों को ही क्यों दोषी बताया जा रहा है। मैं इसके पक्ष में नहीं हूं कि लोग खुले में शौच करें लेकिन प्रदूषण का हवाला देकर लोगों को अपराधी बनाना कितना सही है? जबकि दुनिया के सामने ग्लोबल वॉर्मिंग एक बड़ी चुनौती है।

ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या लोगों के खुले में शौच जाने की वजह से नहीं बल्कि मुनाफे के लिए फ्रैक्ट्रियों का विस्तार और अत्यधिक उत्पादन के कराण  निकलने वाली ज़हरीली गैसों की वजह से हो रही है। यहां तक कि सरकार ने नदियों और तालाबों में जाने वाले कारखानों के कचड़ों के निष्पादन के लिए कोई विशेष काम नहीं किया है। गंगा को प्रदूषण मुक्त ना कर पाना सरकार की सबसे बड़ी नाकामी को बयान करती है।

खैर, जब बात शौच की हो रही हो तब हमें एक बात समझना होगा कि लोगों की खुले में शौच करने वाली आदत इतनी आसानी से कैसे जाएगी। प्रधानमंत्री ने ग्रामीण और शहरी इलाकों के लोगों के लिए शौचालय बनवाकर सोचा कि इसका तोड़ निकल जाएगा लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि गरीब लोगों को अगर ठीक से भोजन ही नहीं मिले तब सुबह पेट से निकलेगा क्या। गरीबों को शौचालय नहीं चाहिए, उन्हें दो वक्त की रोटी तो ठीक से दीजिए पहले।

इस चीज़ को समझने के लिए हमें भूखमरी पर ग्लोबल हंगर इंडेक्स द्वारा पेश की गई रिपोर्ट पर ध्यान देने की ज़रुरत है। रिपोर्ट के मुताबिक 119 देशों की सूची में भारत को 103वां स्थान प्राप्त हुआ है। जबकि पिछले साल भारत 100वें पायदान पर था।मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते साल 2013 में ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ में भारत 55वें स्थान पर था।

अब सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार को इस बात की भनक नहीं थी कि गरीबी कम करने के लिए ज़मीनी स्तर पर चलाए जा रहे कार्यक्रम समाज के अंतिम पंक्ति तक नहीं पहुंच रहे। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आंकड़े वाकई में हैरान करने वाले हैं, क्योंकि भूखमरी के मामले में बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी मुल्कों की हालत भारत से काफी अच्छी है।

वक्त आ गया है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुवानी भाषणों और झूठे वादों से बाहर निकलकर ज़मीनी स्तर के कार्यक्रमों की पड़ताल करनी  होगी। जिस देश में भूखमरी से लड़ने के लिए इतनी योजनाएं हों, वहां जीएचआई का निराशाजनक रिपोर्टकार्ड प्रधानमंत्री की कार्यशैली को सवालों के घेरे में खड़ा करता है।

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