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वर्कप्लेस को यौन हिंसा मुक्त कैसे बनाए?

हाल ही में अभिनेत्री तनुश्री दत्ता द्वारा अनुभवी अभिनेता नाना पाटेकर पर लगाए गए आरोपों ने देश में एक अलग किस्म की जागरूकता की शुरुआत कर दी है। इस संदर्भ ने हमें इस बात पर संजीदगी से गौर करने के लिए मजबूर कर दिया है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए स्वस्थ और सुरक्षित माहौल का निर्माण आखिर किस तरह से किया जा सकता है।

दूसरी बात, यदि वास्तव में कामकाजी महिलाओं के लिए देश में कोई ठोस नियम-कानून मौजूद हैं तो आखिर कहां समस्याएं हैं कि कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन शोषण की घटनाओं में कमी नहीं आ रही है।

इन सब पहलुओं पर बात करने के साथ हम यह भी समझ पाएंगे कि अगर कार्यस्थलों का माहौल महिलाओं के लिए सुधरता है तो उसका फायदा पूरे समाज काे होता है क्योंकि जहां महिलाओं के विकास का माहौल होगा वहां सभी के विकास का माहौल स्वतः ही बन जाता है।

ध्यान देने वाली बात है कि भारत में कामकाजी जगहों पर हर चौथी कर्मचारी महिला होती है। चाहे सार्वजनिक क्षेत्र हो या निजी, दोनों ही जगहों पर महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है।

नारी सशक्तिकरण के लिए सबसे पहले सुरक्षित और अनुकूल माहौल देने की ज़रूरत है। इस तरह के माहौल को प्रेरित किए बिना केवल महिला सुरक्षा कानून बनाने से ही बात नहीं बनने वाली है। कामकाजी महिलाओं के लिए उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निदान) 2013 जैसे कानून के बावजूद भी ऑफिस में महिलाओं के यौन शोषण जैसी घटनाएं इस बात की पुष्टी करती है। सही माहौल के बनने का सिलसिला घर, समाज से शुरू होता है जो अपना असर ऑफिस तक दिखाता है।

आज के डिजिटल समय में जनसंचार सबसे उपयुक्त माध्यम बनकर उभरा है। डिजिटल मीडिया के उभार और सोशल मीडिया की मुखरता ने समाज में अलग-थलग पड़ी वंचित महिलाओं को भी मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया है। यहां वंचित का आशय केवल आर्थिक आधार ही नहीं है बल्कि अच्छी कमाई करने वाली सम्पन्न महिलाओं की कार्यस्थलों पर निम्न स्थिति भी उनको वंचितों की श्रेणी में डाल देती है।

यही कारण है कि तनुश्री दत्ता के केस के बाद भारत में अपने तरह का ‘मी टू’ मूवमेंट शुरू होने के आसार बन गए हैं। इसके चलते देश के कोने-कोने से महिलाओं ने अपने साथ हुए शोषण के खिलाफ खुलकर बोलना शुरू कर दिया है। ज़रूरत इस सामाजिक चेतना को जन-जीवन की मुख्यधारा से बांध देने की है। 

परिवार के बालकों, लड़कों और पुरुषों को घर में महिलाओं के काम में सहयोग देने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने से वे ऑफिसों में भी महिलाओं के साथ सहयोग देने के प्रति अधिक संवेदनशील बनेंगे। इससे ऑफिस में महिलाओं को महत्वपूर्ण भूमिका ना दिए जाने जैसे मामले भी कम होंगे। इसके अतिरिक्त सरकार की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाओं को भी जनसंचार से जोड़कर अधिक व्यापक बनाना होगा। अगर लोगों को अखबारों, मैग्ज़ीनों या रेडियो पर चीज़ें समझने में दिलचस्पी नहीं है तो फेसबुक, ट्विटर जैसे रोचक प्लैटफॉर्म्स पर इन चीज़ों को लाना होगा।

जब विभिन्न राजनीतिक दल प्रचार-दुष्प्रचार के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल बड़े ही ज़ोर-शोर से कर रहे हैं तो महिला सुरक्षा को लेकर इस तरह के व्यापक प्रचार से परहेज कैसा?

इसके अलावा कामकाजी महिलाओं को अधिक-से-अधिक डिजिटल गवर्नेंस से जोड़ने की यथासंभव कोशिशें होनी चाहिए। ‘शी-बॉक्स ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन प्रणाली’ भी एक ऐसा सरकारी पोर्टल है जो कार्य-स्थलों में महिलाओं के लिए एक सुरक्षित माहौल का होना सुनिश्चित करता है। शी-बॉक्स पोर्टल पर सरकारी और निजी कर्मचारियों सहित देश की सभी महिलाकर्मियों के लिये कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की सुविधा प्रदान की गई है। इस पोर्टल की कार्यप्रणाली प्रभावी है लेकिन देश में काफी कम महिलाओं और उनके सहकर्मियों को इसके बारे में जानकारी है।

इसके अलावा वन स्टॉप सेंटर भी एक ऐसी योजना है जिसके बारे में ना केवल महिलाओं बल्कि पुरुषों को भी शिक्षित करने की ज़रूरत है। यह सेंटर निजी या सार्वजनिक, दोनों स्थानों पर हिंसा से पीड़ित महिलाओं को सभी प्रकार की एकीकृत सहायता एक ही स्थान पर प्रदान करने के मकसद से बनाए गए हैं। यह योजना अभी विकास के चरण में ही है लेकिन पुरुषप्रधान समाज को भी महिलाओं के अधिकारों के लिए बने नियम कानूनों के बारे में जागरूक करवाने का समय आ गया है।

यह तो सच है ही कि कार्यस्थल पर महिलाएं अपने पूरे अधिकारों को जाने बिना चुपचाप प्रताड़ना सह लेती हैं लेकिन उतना ही बड़ा सच यह भी है कि उनको प्रताड़ित करने वाले कई पुरुष भी महिलाओं के अधिकारों के बारे में अनजान होते हैं।

#MeToo जैसे अभियान बताते हैं कि समाज बदलाव के तौर तरीकों को अपनाने के लिए पहले से कहीं ज़्यादा खुला है। इसके अलावा तकनीकी युग में स्मार्टफोन जैसी सर्वसुलभ चीज़ों का इस्तेमाल जानकारी और जागरूकता देने में किया जा सकता है।

बच्चों की शिक्षा में भी लचीलापन इस तरह से हो कि देश में चल रहे बड़े सामाजिक मुद्दों को अस्थायी विषय बनाकर कक्षाओं में पढ़ाया जा सके, जिससे बच्चों में स्कूली स्तर पर ही ‘क्या सही है या गलत’ के बारे में एक निर्णायक सोच विकसित होना शुरू हो जाए। यही बच्चे आगे देश के युवा होंगे।

कुल मिलाकर कार्यस्थल पर यौन शोषण केवल कार्यस्थलों की कार्यप्रणाली को बदलने से नहीं बल्कि समग्र सामाजिक चेतना से बदलेगी, वैसे भी यह समस्या केवल कार्यस्थलों की नहीं, पूरे समाज की है।

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