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वर्कप्लेस में यौन शोषण की शिकायत के लिए क्या है कानून, कैसे करें इसका इस्तेमाल

Indian Law Against Sexual Harassment at Workplace

देश में नवरात्री के समय महिलाओं के दो संदर्भ एक साथ सतह पर संघर्ष कर रहे हैं, एक तरफ केरल (जहांं शिक्षित महिलाओं का अनुपात अन्य राज्यों से अधिक है) में महिलाएं सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के लिए सर्वोच्च अदालत से अधिकार मिलने के बाद अब सामाजिक स्तर पर उस अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं तो दूसरी तरफ सदियों से दबा हुआ एक तूफान #MeToo के ज़रिए बाहर आ रहा है।

कार्यस्थल पर कामकाजी महिलाओं के यौन शोषण के विषय पर #MeToo अभियान ने नई तरह की गतिशीलता ला दी है। महिलाएं सामने आ रही हैं और अपने अनुभवों को बयां कर रही हैं, जो आज से पहले वह नहीं कर पा रही थीं। वे अब एक प्लैटफॉर्म मिलने पर अपने साथ हुए शोषण को दुनिया के सामने ला रही हैं।

#MeToo सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित नहीं रहना चाहिए, दोषियों को सज़ा दिलाने के लिए कानूनी सहारा भी लिया जाना ज़रूरी है। किसी भी महिला के साथ अगर कुछ गलत हुआ है, तो उसे न्याय मिलना चाहिए और आरोपी को सज़ा।

क्या #MeToo अभियान केवल महिलाओं के यौन शोषण की खुदमुख्तारी करता है, या इसके दायरे में अन्य लिंगों के भी यौन शोषण पर चर्चा की जा सकती है? क्या यह सिर्फ शक्ति और सेक्स की जंग है? क्योंकि कुछ अनुभव यह भी बता रहे हैं कि हमेशा पुरुष ही गलत नहीं होते हैं, कुछ मामले ऐसे भी हैं जो बताते हैं कि महिलाएं अपनी मर्ज़ी से रिश्ते के टूटने के बाद आक्रामक हो गई हैं। मामले की सच्चाई जाने बिना किसी के चरित्र को सोशल मीडिया पर गलीज़ करना #MeToo अभियान की आंच को कमज़ोर कर सकता है।

ज़ाहिर है, कार्यस्थल में यौन शोषण को लेकर कई तरह की दुविधाएं हैं, जिनकी बारिकियों को समझना ज़रूरी है। कार्यस्थल में काम करते हुए हमें इस बात की जानकारी ही नहीं होती है कि किसी भी कार्यस्थल या सार्वजनिक जगहों पर हमारा सामाजिक व्यवहार कैसा होना चाहिए? सामाजिक समाजीकरण में पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रह इस कदर हावी है कि शोषण करता हुआ व्यक्ति इस संवेदना से कोसों दूर रहता है कि वह गलत कर रहा है। कई सामाजिक संस्थाएं इसकी जानकारी वर्कशॉप के ज़रिए देती हैं, तो कई जगहों पर इसको लेकर कोई चर्चा ही नहीं होती है।

यौन शोषण एक्ट क्या है?

तो सबसे पहले कानून की बात, 2013 में कार्यस्थल में यौन शोषण के खिलाफ कानून बना। 1997 में विशाखा बनाम स्टेट राजस्थान के मामले में गाइडलाइंस जारी की गई थी, जो 2013 में वर्कप्लेस में यौन शोषण कानून का आधार बनी। जिसके अनुसार, किसी कार्यस्थल पर किसी महिला को उसकी सहमति के बिना छूना या किसी भी तरह का गैरज़रूरी संपर्क जैसे कि किस करने की कोशिश करना, सेक्स की मांग करना (सीधे या मैसेज या मेल के ज़रिए) यौन शोषण कहलाएगा।

इसके साथ ही अश्लील बातें करना, अश्लील जोक्स शेयर करना, महिला सहयोगी से पॉर्न शेयर करना, अश्लील व्यवहार, महिलाओं के लिए अश्लीलता का माहौल बनाना, महिला सहयोगी की सहमति के बगैर उससे फ्लर्ट करना, लगातार घूरना, जिससे महिला असहज हो रही हो, महिला सहकर्मी की इजाज़त के बिना उसे गले लगाना, कमर या कंधे पर हाथ रखना, यौन उत्पीड़न माना जाएगा। कई बार इस तरह की मांग इस आशय के साथ की जाती है कि ऐसा नहीं करने से महिला कर्मचारी के करियर को नुकसान हो सकता है।

किन हालातों में की जा सकती है शिकायत-

महिलाएं जिस भी जगह पर काम करती हैं उसको वर्क प्लेस के दायरे में रखा जाता है, एक घरेलू कामगार महिला के लिए घर भी उसका वर्क प्लेस माना जाता है। इसी तरह अगर आप अपने काम के कारण ऑफिस के बाहर भी जाती हैं और वहां आपके साथ यौन उत्पीड़न होता है, वह जगह आपके ऑफिस से कितनी भी दूर हो उसको वर्क प्लेस ही माना जाएगा।

यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराने के लिए किसी का परमानेंट एम्प्लॉई होना ज़रूरी नहीं है, आप इंटर्न, ट्रेनी या एड-हॉक पर काम कर रही हों तब भी शिकायत दर्ज की जा सकती है। मसलन, अगर आप किसी काम से किसी दफ्तर जाती हैं और वहां किसी तरह की वारदात होती है तो आप शिकायत दर्ज करा सकती हैं। यानी, स्टूडेंट्स टीचर के खिलाफ और मरीज डॉक्टर के खिलाफ आसानी से शिकायत दर्ज करवा सकता है।

आप अपनी मर्ज़ी से किसी सहकर्मी के साथ रिलेशनशीप में हैं तो यह किसी तरह का ज़ुर्म नहीं है मगर रिश्ते में होते हुए अगर कुछ ऐसा होता है जो आपकी मर्ज़ी के खिलाफ है, तो वह भी यौन-उत्पीड़न के दायरे में आता है। आपका संबंध किसी कारण से टूट गया है और आपका सहकर्मी ज़बरदस्ती आपको फिर से साथ आने के लिए मजबूर करता है तो वह भी यौन उत्पीड़न कहलाएगा। उसके ऐसा करने पर आप शिकायत दर्ज करवा सकती हैं।

वर्क प्लेस में सिर्फ महिलाओं के साथ हुए यौन अपराधों के खिलाफ है कानून-

मौजूदा दौर में इस कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाए जाने को लेकर बातें हो रही हैं। वैसे कई संस्थाएं हैं, जहां पुरुषों को भी यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराने की सुविधा होती है लेकिन पुरुषों की तरफ से दर्ज करवाई जाने वाली शिकायतें यौन शोषण एक्ट के तहत नहीं आती हैं। संस्थाएं अपनी पॉलिसी के तहत इस तरह की शिकायत पर सुनवाई करती हैं।

कहां करें यौन उत्पीड़न की शिकायत?

यौन उत्पीड़न एक्ट के अनुसार, हर संस्था जहां दस या दस से ज़्यादा कर्मचारी काम करते हैं वहां इंटरनल कमेटी बनाना ज़रूरी है, जहां शिकायत दर्ज कराने के लिए किसी भी अधिकारी से पूछने की ज़रूरत नहीं होती है, सीधे कमेटी के सामने अपनी शिकायत रखी जा सकती है।

जहां दस से कम कर्मचारी काम करते हैं, वहां एक्ट के अनुसार ज़िला स्तर पर एक कमेटी के गठन का प्रावधान है। महिला और बाल विकास मंत्रालय वर्क प्लेस पर यौन उत्पीड़न की जांच करने के लिए हैंडबुक जारी करता है, जिसमें इन मामलों की सुनवाई के निष्पक्ष जांच के लिए निर्देश लिखे हुए हैं।

कमेटी में कम-से-कम चार सदस्य होने चाहिए, वरिष्ठ महिला कर्मचारी जो प्रेज़ाइडिंग ऑफिसर होंगी, साथ में दो महिला कर्मचारी जिनको महिलाओं और यौन शोषण से जुड़े मुद्दों और कानूनों की अच्छी समझ हो और एक बाहरी सदस्य, जो महिलाओं के मुद्दों पर अच्छी समझ रखता हो। ये सदस्य महिलाओं पर काम करने वाले किसी एनजीओ के सदस्य हो सकते हैं या फिर कोई वकील, जिसे यौन शोषण से जुड़े कानूनों की अच्छी समझ हो।

इस कमेटी के सदस्य कर्मचारियों द्वारा चुने जाते हैं, जिनका कार्यकाल तीन साल का होता है। हर संस्थान की नोटिस-बोर्ड में इंटरनल कमेटी के सदस्यों के नाम और संपर्क नंबर दर्ज होने चाहिए।

यौन उत्पीड़न की शिकायत कैसे करें-

अगर किसी को शिकायत करनी हो तो सादे कागज़ पर घटना का पूरा ब्यौरा, घटना का वक्त, तारीख, जगह, आरोपी के साथ आपके संबंध का ब्यौरा, के साथ इसकी छह कॉपी बनाकर प्रेज़ाइडिंग ऑफिसर को देनी होती है, नहीं तो कमेटी के किसी सदस्य को भी अपनी शिकायत सौंपी जा सकती है।

यदि इसमें दिक्कत आ रही तो आप ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा सकती हैं। महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करवाने के लिए She-box की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है, इसके ज़रिए आप ऑनलाइन अपनी शिकायत दर्ज करवा सकती हैं। She-box के ज़रिए दर्ज करवाई गई शिकायत का स्टेट्स आप ट्रैक भी कर सकती हैं।

जिस तरह रोज़ खुलासे हो रहे हैं, उससे लग रहा है कि अभी तो बस शुरुआत भर है, अभी तो और आवाज़ें उठनी हैं, इन आवाज़ों के ज़रिए ही इस अभियान की दिशा तय होगी और अंजाम भी, इसके लिए महिलाओं को अधिनियम और प्रावधानों को जानना बेहद ज़रूरी है।

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