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#MeToo आन्दोलन से असहज होता पितृसत्तात्मक समाज

काफी दिन से मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिए #MeToo आन्दोलन से जुड़ी नयी नयी खबरें आ रही हैं |रोज़ रोज़ नए चेहरे आ रहे हैं पीड़ितों के भी और आरोपियों के भी| रोज़ एक नया चेहरा आता और उसको देखकर हम लोग अचंभित हो जाते हैं कि ये व्यक्ति तो ऐसा नहीं कर सकता|शायद ये लड़की ही झूठ बोल रही हैं|हाँ सही है हम ऐसे समाज मे ही रह रहे जहाँ लड़कियों को उनके साथ हुई छेड़छाड़ यहाँ तक कि बलात्कार पर भी चुप करा दिया जाता, तो ऐसे पितृसत्तात्मक समाज से क्या ही उम्मीद क्या की जा सकती है| अब ऐसे माहौल में कोई लड़की अपने माँ बाप को बताने की हिम्मत नहीं करती और लड़कियां अपने साथ हुई छेड़छाड़ के किस्सों को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रही हैं तो कुछ पितृसत्तात्मक लोगों को इससे भी शक हो रहा है और वे औरतों के चरित्र पर सवाल उठाएंगे |या फिर इन लोगों इस कारण इस आन्दोलन से डर लगने लगा है कि आज उनकी हक़ीक़त सामने आ रही है तो कल हमारी ना आ जाए|

हम मर्द रोज़ तेज़ तेज़ चिल्लाए कि लड़कियों को क्या कपड़े पहनने चाहिए रात मे 8 बजे से पहले घर लौट आना चाहिए लेकिन जब वो हम मर्दों को हमारी असलियत का आईना दिखाती हैं तो मानो हम अंधे हो जाते हैं उस सच्चाई को ना सुनने के लिए कानों को अपने हाथों से बंद कर लेते हैं|आज एक लड़की लड़की सामने सामने आ रही है जिसका उसके काम के दौरान यौन शोषण या उसके साथ छेड़छाड़ हुई है|

हम लोग इस आन्दोलन के फायदे देखने के बजाए ये कह रहे हैं हैं कि काफी लड़कियाँ और औरतें इसका दुरुपयोग कर रहीं है|लेकिन हम 99% फायदे नही देख पा रहें हैं |देश me कई कानून हैं जिनका 1 या 2 प्रतिशत दुरुपयोग होता है लेकिन उसके महत्व को देखते हुए कानून को बर्खास्त न किया जाता तो इससे हमलोग इतना क्यूँ डर रहें हैं |हर एक इज़्ज़तदार ओहदों पर बैठे लोग जो शराफ़त का चोला ओढ़े हैं उनकी असलियत सामने आ रही हैं जो अपने शोहरत का फायदा उठा कर उन कमज़ोर लड़कियों का फायदा उठा रहे थे जो आर्थिक रूप से या ओहदे में उनसे कमज़ोर थी|

एक लड़की को पहले तो घर से उच्च शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति मुश्किल से मिलती है और नौकरी करने की तो और मुश्किल से और अगर नौकरी लगने के बाद अगर किसी लड़की का यौन शोषण होता है तो उसमे इतनी हिम्मत नही रहती की वो घर पर इस बारे मे तो वो चुप ही रह जाती है | और अगर कोई लड़की बोलने की कोशिश करती है तो उसे यही डर रहता है कि अगर नौकरी गयी तो दूसरी पता नही मिलेगी भी या नही और परिवार वालों को क्या जवाब देगी| उनकी इसी कमज़ोरी का फायदा ये नीच मानसिकता के लोग उठा लेते हैं|अब सवाल ये उठता है कि ऐसे लोगों मे अपनी ताकत के दुरुपयोग की इतनी हिम्मत कैसे आती है? कैसे वो बेखौफ होकर इतनी आसानी किसी लड़की का शोषण कैसे कर लेते हैं | क्या साथ में काम कर रहे लोग भी जान पाते कि मेरे सहकर्मचारी के साथ शोषण हो रहा दरअसल लोग बस नज़रअंदाज़ करते हैं इस बात को बिना सोचे कि मेरे साथ भी ऐसा हो सकता है|सारी बात घूम फिर कर वही आ जाती है कि माँ-बाप अपने अपनी लड़कियों को ये शिक्षा देना ही भूल जाते हैं कि अगर कोई सीनियर या बॉस ऐसी हरकत करे तो उसको बिल्कुल सहन नहीं करें उस नौकरी को खुद ही छोड़ दे और अपने बच्चों को ये भी बताएं कि हमारी प्राथमिकता पैसा नहीं तुम हो|हम ऐसे समाज में रहते हैं लिंग को अंग्रेजी में Sex नहीं Gender बोलते हैं |जहाँ लड़के और लड़कियों की सारी सेक्स एजुकेशन शादी की रात को ही घर वाले देते हैं|इससे पहले ना घर वाले उनको बताते हैं कि यौन शोषण क्या होता है और ना बुरे स्पर्श के बारे मे बताया जाता है|

हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं ऐसे समाज से की वो औरतों का साथ देगा|समाज की बात बहुत दूर घरवाले भी साथ नहीं देते |

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