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धर्म के रखवाले आपके नसीब को ईश्वर का चमत्कार क्यों कहते हैं?

मंदिर की घंटी

मंदिर

जब से मैंने तर्कों का रास्ता अख्तियार किया है तब से कुछ सवाल मेरे मन मे बार-बार उभर कर आ जाते हैं जिनका उत्तर खोजने के लिए मैं व्याकुल हूं। मैं नास्तिक होते हुए भी आस्तिक लोगो द्वारा ईश्वर के अस्तित्व के संदर्भ में दिये गए तर्कों पर विचार करने के लिए हमेशा तैयार रहता हूं। उनका पहला तर्क तो यही होता है कि ईश्वर के अस्तित्व की व्याख्या गीता, वेद, कुरान व बाइबिल जैसे पवित्र ग्रन्थ करते हैं।

मेरा सवाल यह है कि अगर वास्तव में ईश्वर है, तब इतने धर्म क्यों हैं? क्योंकि ऐसा तो है नहीं कि वह ग्रह जहां ईश्वर रहता होगा वहां धर्म के अनुसार विभाग होंगे, जहां मृत्यु के पश्चात गई आत्मा को उसके धर्म के विभाग में भेजा जाता होगा और अगर वास्तव में ये धर्म ग्रन्थ ईश्वर का प्रतिनिधित्व करते हैं, तब इनको ईश्वर द्वारा लिखा होना चाहिए था ना कि मनुष्यों द्वारा। मनुष्यों ने इनको अपनी ज़रूरतों के हिसाब से खुद लिखा है। इसलिए अगर ध्यान से देखा जाए तो ये ग्रन्थ ईश्वर का नहीं, मनुष्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

दूसरा प्रश्न मेरा यह है कि अगर एक पल के लिए मान लिया जाए कि इस ब्रह्मांड व मनुष्य प्रजाति की रचना उस ईश्वर ने ही की है, तब उसने लोगों के अंदर बुराई को क्यों डाली। अगर यह भी मान भी लिया जाए कि ईश्वर ने तो एक सीधा-साधा इंसान बनाया था, बुराई का जन्म तो मनुष्य ने खुद किया है, तो उस बुराई से लड़ने के लिए ईश्वर खुद क्यों नहीं राजा बनकर अपने द्वारा बनाए मनुष्यों पर शासन करता है? क्यों वह छुपकर बैठा हुआ है?

अब अगर यह भी मान लिया जाए कि ईश्वर ने मनुष्य को बनाकर यह बोल दिया कि अपनी ज़िन्दगी खुद जियो और कर्म के आधार पर उनका न्याय किया जाएगा। फिर मौलवी व पुजारी लोंगो को यह क्यों बोलते हैं कि ईश्वर की भक्ति कीजिए, आपके बुरे कर्म मिट जाएंगे, आपकी हर समस्या का समाधान हो जाएगा, क्यों वे बोलते हैं कि अगर आप  किसी मंदिर, मठ या मस्जिद पर जाएंगे तो आपका कष्ट दूर हो जाएगा? अगर ईश्वर ने मनुष्यों को कर्म के न्याय पर अलग ही छोड़ रखा है, तब वह क्यों अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करता है? और अगर हस्तक्षेप करना ही है तो अप्रत्यक्ष रूप से क्यों, वह तो भगवान है उसे प्रत्यक्ष रूप में हस्तक्षेप करने से कौन रोक सकता है। प्रत्यक्ष रूप से आने का एक फायदा यह भी हो जाएगा कि नास्तिक लोंगो को अपना मत बदलने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

एक प्रश्न मेरा यह भी है कि अधिकतर धर्म का मानना है, भूत-प्रेत का अस्तित्व होता है व अच्छे लोग देवता बन जाते है। अगर ऐसा है तो मरने का क्या फायदा हुआ। अगर मरने के बाद भी भूत-प्रेत या देवता के रूप में अस्तित्व रहेगा, फिर तो यही अच्छा रहता कि प्रत्यक्ष रूप से ही जीवित रहते। अगर यह मान भी लिया कि भूत-प्रेत या देवता कुछ भी कर सकते हैं व कहीं भी जा सकते है, फिर लोग जीवित ही क्यों हैं, क्योंकि अगर मरने के बाद हमें दैविक शक्ति की प्राप्ति होती है तब सबका मरना ही बेहतर है। कोई भी इस संसार में गरीबी से अपना जीवन नही गुजारना चाहेगा जहां वह भूखे पेट को भरने के लिए दिन-रात मेहनत करने के लिए मजबूर है।

अंत में निष्कर्ष यह निकलकर आता है कि इस  बहस का कोई अंत नहीं है। यह खिंचती जाएगी और आखिर में इसका निचोड़ कुछ भी नही निकलेगा लेकिन इतना अवश्य है कि कुछ बातें हमारी समझ से परे होती हैं और कई बार तो आपके नसीब को धर्म के रखवाले ईश्वर के चमत्कार की संज्ञा दे देते हैं, जबकि वह विज्ञान ही होता है जिसको अभी हम समझ नही पाए है और जिसकी गुत्थी सुलझाना अभी बाकी है। 500 साल पहले का व्यक्ति अगर आज के मनुष्य की जीवनचर्या को देख ले तो उसको बहुत आश्चर्य होगा। जिनको वह असम्भव मानता था और बोलता था कि ऐसा तो केवल ईश्वर ही कर सकते हैं, वह सब आज विज्ञान के चमत्कारिक अविष्कारों की बदौलत एक सामान्य मनुष्य भी कर सकता है। अतः अगर हमें कुछ चमत्कारिक लगे तो वह वास्तव में चमत्कार नहीं, बल्कि उस विषय को समझने में हमारी नाकामी है।

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