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#MeToo ने नकली भारतीय फेमिनिस्ट पुरुषों का चोला उतार दिया है

हाल में शुरू हुए भारत के अपने ‘मी टू मूवमेंट’ में एक अनोखी बात पता चली है। जिन लोगों ने फेमिनिज़्म को अपने कंधों पर ले लिया था, उन्हीं का नाम तरह-तरह के यौन शोषण में आ रहा है। जो लोग महिलाओं के प्रति अपने कामुक उद्देश्य को लेकर क्लियर रहते हैं, उनके बारे में तो महिलाओं को पता ही रहता है, पर जो लोग महिलाओं की आज़ादी को लेकर मुखर रहते हैं, उनको पहचानना मुश्किल होता है। इसी की आड़ में ये लिबरल पुरुष फेमिनिज़्म का बहाना लेकर औरतों को तंग कर रहे हैं।

महाभारत में इंद्र ने जैसे कर्ण का कवच कुंडल उतरवा लिया था वैसे पितृसत्ता के खिलाफ युद्ध में ‘फेमिनिस्ट पुरुषों’ ने महिलाओं का कवच कुंडल उतरवा लिया है। हाल फिलहाल में भारतीय मीडिया द्वारा किए गए #MeToo कैम्पेन में ज़्यादातर ‘फेमिनिस्ट पुरुषों’ के ही नाम आए हैं। सोशल मीडिया पर एक के बाद एक कई नाम धराशायी होते गए।

‘द क्विंट’ के मेघनाद बोस पिछले तीन दिन से महिलाओं को “और खुल के बोलो” एवं “छोरी धाकड़ है, धाकड़ है” प्रकार के शब्दों से उत्साहित कर रहे थे। परसों से वो स्वयं लंबे फेसबुक पोस्ट लिखकर दो दर्जन महिलाओं से माफी मांग रहे हैं। द क्विंट ने उनपर ही स्टोरी भी की है। उनके पोस्ट के नीचे लोग कमेंट कर पूछ रहे हैं- भाई तू माफी के बहाने भी हैरेस करेगा क्या? मेघनाद को “Inside Haryana’s Rape Culture” की वीडियो स्टोरी के लिए दो अवॉर्ड मिले हैं। क्विंट ने मेघनाद को फेमिनिज़्म का फेस बनाकर बेचना भी शुरू कर दिया था।

ऐसी स्थिति के पीछे एक वजह है, जो भी कलाकार, पत्रकार, प्रोफेसर, फिल्ममेकर इत्यादि अपने काम में “महिलाओं का सम्मान” बेचते हैं, उन्हें आपरूपी लिबरल पुरुष का तमगा मिल जाता है। जैसे विकास बहल अपनी फिल्म ‘क्वीन’ के बाद हर जगह महिलाओं पर ही भाषण दे रहे थे।

अमिताभ बच्चन ने फिल्म ‘पिंक’ के दौरान खूब हंगामा काटा था। चिट्ठियां लिखीं, ट्वीट किए, ऐसा लगा जैसे भीष्म पितामाह अम्बा-अम्बालिका की रक्षा के लिए युद्धोन्मत्त हो रहा हो। हालांकि तनुश्री दत्ता के मामले के पहले तीर में ही इन्होंने संन्यास धारण कर लिया। ऐसा लगा मेरु पर्वत ढह गया हो।

तब तक ट्विटर पर भारतीय मीडिया के वरिष्ठों के नाम पुच्छल तारों की तरह इधर से उधर गिरने लगे। अच्छी बात यह रही कि ज़्यादातर ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। हालांकि गौतम अधिकारी जैसे ताकतवर लोग अभी भी इन चीज़ों से बचकर निकलते हुए प्रतीत हो रहे हैं।

अगर भारतीय फेमिनिस्ट पुरुषों की बात करें तो इनको पहचानने के कई तरीके हैं। सबसे फेमिनिस्ट पुरुषों के द्वारा बोली गई कुछ प्रसिद्ध लाइनें जानते हैं-
1. तुम्हारा बॉयफ्रेंड है क्या? नहीं? क्यों नहीं है? सिर्फ दो ही बना पाईं?
2. तुम शराब नहीं पीती? च..च..
3. प्लीज़ मुझे सर मत कहो, सिर्फ अमर
4. प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती
5. लड़की को एक खूंटे से बंधकर नहीं रहना चाहिए
6. चलो मेरे घर पार्टी करने चलते हैं

ये लोग ऐसी लाइनें सिर्फ लड़कियों के सामने इस्तेमाल करते हैं। लड़कों के सामने इनका दूसरा रूप होता है, ये अपनी पत्नियों को ‘पसंद’ तो नहीं करते हैं लेकिन उसकी खूब ‘इज़्ज़त’ करते हैं। और इस प्रकार ये आपके साथ क्वालिटी टाइम बिताना चाहते हैं। कुल मिलाकर ये कहते हैं कि फेमिनिस्ट पुरुष एक भ्रमर की तरह है और स्त्रियां रंग बिरंगे पुष्प।

फेमिनिस्ट पुरुष बनने का कोई मार्ग नहीं है। चार बातें कहीं से पढ़ लीं और तुरंत फेमिनिस्ट हो गये। चाहे अपने गांव या शहर में लड़कियों पर फिकरेबाज़ी ही की हो। नौकरी करनेवाले कह रहे हैं कि वो तो कॉलेज टाइम की बात थी, नौकरी में तो नहीं किया. अचानक से हुए फेमिनिस्ट अपने घरों में या आस-पास की लड़कियों के अधिकारों के लिए नहीं लड़ते, वो बस शराब और सेक्स पर बात करने के लिए फेमिनिस्ट हो जाते हैं। ये पुरुष ‘भावनाएं’ शेयर करने में यकीन रखते हैं। उनको लगता है कि ऐसा कर वो महिलाओं के नज़दीक आसानी से आ सकते हैं।

हास्यास्पद लगने वाली ये बातें तब भयावह हो जाती हैं जब आपके बार-बार मना करने के बाद भी आपके नज़दीक आने की कोशिश करते हैं, आपको छूने की कोशिश करते हैं। जबकि महिलाएं ऐसे पुरुषों के साथ होती हैं तो सबसे ज़्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं। क्योंकि इन्होंने ये भरोसा दिलाया होता है कि ये लिबरल पुरुष हैं जो महिलाओं का उत्थान करेंगे। जिस तरीके से ये भरोसा तोड़ते हैं, महिलायें इतनी स्तब्ध रहती हैं कि कुछ बोल नहीं पातीं। फिर अपने उद्देश्य में कामयाब ना हो पाने पर ये पुरुष चरित्र हनन भी करते हैं और धमकाते भी हैं।

लेकिन इस #MeToo आंदोलन ने ऐसे फेमिनिस्ट पुरुषों का चोला उतार दिया है। अब औरतों की बारी है कि वो पहचान कर सकें कि कौन बहुरूपिए हैं और किनसे बचना है।

चाहे छोटी से छोटी गलती की हो किसी ने, इन्हें अहसास कराने और माफी मंगवाने की ज़रूरत है ताकि ये अपराध किसी और के साथ ना कर सकें। माफ करने लायक अपराधों में इन्हें माफ करना भी ज़रूरी है। ताकि ये खुद आगे अपराध करने से रुकें और दूसरों को भी रोकें। हालांकि रेप और मॉलेस्टेशन जैसे केसों में कानूनी लड़ाई लड़ी जाए और इन्हें सज़ा दिलाई जाए।

इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण है इनके तरीकों को समझना और इन्हें अपने उद्देश्यों में कामयाब ना होने देना। चाहे ये कितना भी चरित्र हनन करें या खुद को निर्दोष बतायें, इन्हें आईना दिखाना ज़रूरी है।


फोटो-  फेसबुक

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