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“क्या शिवपाल उत्तर प्रदेश में महज़ भाजपा की छोड़ी हुई एक मृग मरीचिका हैं?”

शिवपाल यादव

शिवपाल यादव

शिवपाल सिंह यादव खुद भी स्वतंत्र रूप से राजनीति में अपने पैर जमा पाने को लेकर आश्वस्त नहीं रहे होगें। शायद अपनी राजनैतिक पारी में वे लोगों के अंदर श्रद्धा जगाने में असफल रहे होंगे या बतौर वक्ता भी वे उतने अच्छे नहीं माने जाते हैं। कई बार उनके भाषणों के दौरान लोग बीच में उठकर जाते दिखे हैं। इसलिए उन्होंने समाजवादी पार्टी में भारी रूसवाई के बाद भी अखिलेश यादव के पसीजने का लंबा इंतज़ार किया।

बता दें, अभी हाल ही में शिवपाल यादव ने कहा कि उनकी पार्टी का पंजीयन हो गया है और उसे ‘प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया’ नाम मिला है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सपा अध्यक्ष बनने के बाद हाशिये पर पहुंचे शिवपाल ने उपेक्षा से नाराज़ होकर पिछले अगस्त में समाजवादी सेक्युलर मोर्चे का गठन किया था।

अब ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे राजनीति के पहले कदम में ही उनके धमाके की ऐसी गूंज सुनाई पड़ी कि प्रेक्षक भी भौंचक्के हो गए हैं। प्रेक्षक क्या, इतने ज़ोरदार आगाज़ से खुद शिवपाल भी अपनी क्षमता को लेकर अंदर-ही-अंदर विस्मित हो रहे होगें। राजनीति में उनके तूफानी पदार्पण के पीछे सचमुच उनका कोई करिश्माई व्यक्तित्व है या फिर वे भाजपा के छोड़े हुए स्वर्ण मृग मात्र हो सकते हैं।

यह तो स्पष्ट है कि ऊपरी तौर पर शिवपाल के विष बुझे शब्दबाण को नज़रअंदाज कर बंगला आवंटन प्रकरण से भाजपा ने ज़ाहिर कर दिया है कि उनकी शाबाशी के लिए वह कितने आतुर हैं। बिना किसी मतलब के तो ये चीज़ें संभव नहीं हैं।

शुरू में शिवपाल सिंह के बड़े भाई मुलायम सिंह यादव जब अलग पार्टी बनाने के उनके ऐलान के बाद दिल्ली पहुंचकर अपने बेटे अखिलेश यादव के साथ खड़े हो गये थे, तब वे बहुत मायुस दिखाई पड़ रहे थे। अब ऐसा लगता है कि एक समय किसी की ना मानने वाले नेताजी की चाबी भी आजकल कोई और भरने लगा है। जिसकी वजह से कुछ ही दिनों में गुलाट खाकर वे सार्वजनिक तौर पर शिवपाल यादव को आशीर्वाद देते नज़र आये। यही नहीं, मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव भी खुलकर शिवपाल के साथ आ गई हैं। नेताजी के इशारे के बिना यह संभव नहीं था। इसके बाद से शिवपाल मीडिया में काफी सुर्खियों में हैं। ऐसा दिखाई पड़ रह है कि मीडिया मैनेज करने वाली शक्तियां अब शिवपाल के लिए काम कर रही हैं।

अब शिवपाल एक ऐसे ध्रुव बन गए हैं जिनके ज़रिए नैपथ्य में रहकर युद्ध संचालित करने में निपुण मायावी शक्तियां सपा में भारी तोड़फोड़ के लक्ष्य को अंजाम दे पा रहीं हैं। शिवपाल जब अखिलेश के चाणक्य प्रो. रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव के संसदीय क्षेत्र फिरोज़ाबाद पहुंचे तब उनका जलवा देखने लायक था। मीडिया के मुताबिक सैकड़ों गाड़ियों के साथ उन्होंने फिरोज़ाबाद में 6 किलोमीटर लंबा जबर्दस्त रोड शो किया। इससे सपा के अंदर अखिलेश का साथ निभाने में असहज महसूस कर रहे लोगों को निर्णय लेने का हौसला मिला है। इसकी झलक फिरोज़ाबाद के रोड शो में दिखी जहां सिरसागंज के विधायक हरिओम यादव के पुत्र और पूर्व ज़िला पंचायत अध्यक्ष विजय प्रताप उर्फ छोटू, शिवपाल के पाले में दिखाई पड़े।

खबरें तो यहां तक छपवा दी गई हैं कि सपा के मुस्लिम चेहरे आज़म खान ने भी पाला बदलने का मन बना लिया है। महागठबंधन को भी इन मोहरों से पलीता लगाने की उम्मीदें दिख रही है, क्योंकि मायावती का कोई भरोसा नहीं है। अर्जुन की तरह उनकी निगाह भी अपने वर्चस्व की मज़बूती के लक्ष्य पर रहती है। बुआ-भतीजे के रिश्ते को सपा की नाव डूबती नज़र आने पर वे कब झटक दें, इसका कोई अंदाज़ा नहीं है।

शिवपाल और उनकी पार्टी को अखिलेश यादव अभी नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। शिवपाल खेमें के उकसाने वाले बयान के बावजूद वे उनकी चर्चा करके उन्हें कोई भाव नहीं देना चाहते। उन्हें लगता है कि मतदाता समझदार हैं और इसलिए शिवपाल के लिए प्रायोजित करिश्मे से उन्हें किसी तरह का भुलावा होने वाला नहीं है।

सारे देश की तरह उत्तर प्रदेश में भी भाजपा के नाकाम होने के बाद लोग ऐसे विकल्प की तलाश में हैं जिसमें नयापन और ताज़गी हो। दिल्ली में ऐसे ही कारणों से अरविंद केजरीवाल प्रचंड समर्थन जुटाने में सफल हुए थे। यहां तक कि मोदी लहर के समय भी दिल्ली में केजरीवाल के सामने भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। अब तक यह समझा जा रहा था कि बात परंपरागत दलों से आगे नहीं बढ़ पाएगी लेकिन फिलहाल तो यह लग रहा है कि उत्तर प्रदेश की जनता जिस मसीहा की तलाश में थी वह पूरी हो गई है। ऐसा दिखाई पड़ रहा है कि लोगों ने शिवपाल को अपने उद्धारक के रूप में हाथों-हाथ लेने की उत्सुकता जताकर इसका आभास करा दिया है।

अगर सचमुच ऐसा है तो उत्तर प्रदेश की जनता को धन्य कहना पड़ेगा। सपा की बाहुबली और अपराधियों के राजनीतिकरण पर आधारित राजनीति को बदलकर विकास पर आधारित राजनीति की शुरुआत करने की वजह से अखिलेश का एक समय ज़बर्दस्त स्वागत हुआ था। अगर आज सचमुच सपा की अतीत की संस्कृति ही लोगों को सुहा रही है, तब इसे एक पहेली ही कहा जाएगा, क्योंकि समाज शास्त्र का स्थापित सूत्र तो यह है कि व्यक्तिगत तौर पर लोग भले ही भ्रष्ट, लालची और स्वार्थी बन जाएं लेकिन सामूहिक मानसिकता, स्वच्छ नैतिक व्यवस्था की पक्षधर होती है। शिवपाल के उभार के पीछे सिर्फ एक रची हुई मृग मरीचिका है, जिसकी वास्तविकता लोकसभा चुनाव के पहले तक सामने आ जानी है।

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