भाग दौड़ की ज़िन्दगी में हम दिव्यांगजन और उनकी ज़िन्दगी के बारे में सोचना टाल देते है, जो हमारे समुदाय का एक अभिन्न अंग हैं। अब कुछ समय बाद दिपावली आने वाली है लेकिन क्या कभी हमने यह सोचने की ज़हमत उठाई है कि दिव्यांगजन भाई और बहन भी दिवाली मनाने की उत्सुकता उतनी ही रखते हैं, जितना कि एक सक्षम इंसान रखता है। ये बात सच है कि मौजूदा पटाखे और उनका स्वरुप दिव्यांगजनों के लिए अनुकूल नहीं हैं, जिससे वे पटाखे फोड़ने से वंचित रह जाते है और पेपर पटाखों से ही काम चलाते है। हालाकि अब ऐसा नहीं होगा। दृष्टि-बाध्य और दिव्यांगजन भी जमकर दिवाली मना पाएंगे।
भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान मोहाली के प्राध्यापक डॉ. सम्राट घोष ने कई शोध कार्य प्रारंभ कर दिए हैं। उनके शोध से नए पटाखों का निर्माण हुआ है जो कि दृष्टि-बाध्य और दिव्यांगजन के लिए अनुकूल है। ये नए पटाखे निर्धूम, प्रदूषण रहित और पर्यावरण अनुकूल भी हैं। सबसे खास बात तो यह है कि ये नए पटाखे निर्धूम होने के साथ-साथ मुख्यतः फ्यूज़-फ्री भी हैं, जिससे दिव्यांगजन इसका इस्तेमाल सरलता से कर पाएंगे। इन निर्धूम पटाखों के फटने से आग बहुत सीमित और कम समय के लिए उपयोगकर्ता के दुसरे ओर रहता है, जिससे ये पटाखे और उपयोगकर्ता दोनों सुरक्षित रह पाएंगे।
इन निर्धूम पटाखों से उत्पादित ध्वनि बिल्कुल परंपरागत पटाखों जैसे ही होती है। इन नए पटाखों में आग लगाना और दूर भागने जैसे हालात अब नहीं होंगे। सक्षम इंसानों की भांति अब दिव्यांगजन भी खुद ये नए पटाखे फोड़ सकते है और इनसे उत्पादित ध्वनि, मंद प्रतिक्षेप का आनंद भी उठा सकेंगे। यहां तक कि इन पटाखों के फटने के बाद इनका मलबा कहीं उड़ता नहीं।
ये नए पर्वारण-अनुकूल पटाखे बूढ़े-बच्चे, पुरुष-स्त्री, सक्षम-अक्षम सभी फोड़ सकते हैं। डॉ. घोष ने अपने इन नए पटाखों का नाम ‘फायरफ्लाई’ एवं ‘बाज-बाज़ी’ रखा है। इन पटाखों को बनाने के लिए काफी मात्रा में कचरे के तौर पर उपलब्ध प्लास्टिक बोतलों का इस्तेमाल किया गया है।
अपने शोध कार्य के लिए डॉ. सम्राट घोष ने स्वयं तकरीबन दो सौ बोतलें इकट्टे की है। डॉ. घोष को यह बोतलें रास्ते में फेंके हुए मिले, जिन्हें उठाकर शोध के लिए इस्तेमाल किया। डॉ. घोष ने उच्चतर विज्ञान संस्थान में प्राध्यापक होने के बावजूद, एक कचरेवाले की तरह इन रद्दी बोतलों को समेटा है। डॉ. घोष की इस व्यवहार को देखकर आम लोगों, विद्यार्थियों के बीच एक सामजिक बर्ताव में परिवर्तन आया है, जो या तो अब प्लास्टिक फेंकते नहीं या फेंका हुआ प्लास्टिक उठाकर कूड़ेदान में डालते हैं।
डॉ. सम्राट घोष इन नए पटाखों का प्रारूप तैयार करने में पिछले दो सालों से प्रयासरत हैं। उनके द्वारा निर्मित नए पटाखे प्रयोग में लाने के लिए तैयार हैं। इसका प्रयोग फिलहाल मोहाली संस्थान के अंदर कई बार किया जा चुका है और इनका प्रयास भी सफल रहा है। डॉ. सम्राट ने इन पटाखों से युक्त विश्व में पहली बार नए खेल प्रतियोगिताओं की रचना भी की है, जो बेहद रोमांचक और शानदार है। इन खेलों में दिव्यांगजन भी भाग ले सकेंगे।