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हरियाणा में आम आदमी पार्टी के पास क्यों नहीं है कोई कद्दावर नेता?

नवीन जयहिंद

आम आदमी पार्टी के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष नवीन जयहिंद

2019 के चुनावों को लेकर हरियाणा में इन दिनों सियासी पारा उबाल पर है। जैसे-जैसे समय नज़दीक आ रहा है वैसे-वैसे हरियाणा की राजनैतिक पार्टियों की डफलियां तेज़ हो रही हैं। भले ही डफली बजाने वालों के चेहरे अलग-अलग हों लेकिन सभी एक ही राग आलाप रहे हैं और वह ‘कुर्सी राग’ है।

साल 2014 में कॉंग्रेस के शासन से तंग आकर लोगों ने राष्ट्रीय पटल पर उभरते भाजपा के नरेंद्र मोदी की बातों पर इस कदर विश्वास किया कि केन्द्र और हरियाणा दोनों जगह भाजपा सत्ता पर काबिज़ हो गई। पांच वर्ष पूरे होते-होते मतदाताओं का तो पता नहीं लेकिन हरियाणा के राजनेताओं को सपनों में भी अपने सिर पर ताज दिखाई देने लगा है। भाजपा की ही बात की जाये तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह लेने के लिए कद्दावर तो क्या कई बौने नेता भी उतावले हो रहे हैं। 2019 के विधानसभा चुनावों के लिए कुर्सी रेस में भाजपा के कई घोड़े बेलगाम हो रहे हैं  जिन्हें खट्टर सरकार के चाबुक की परवाह ही नहीं है। वे समय-समय पर पार्टी लाइन से हटकर बयानबाज़ी कर रहे हैं।

भाजपा के ये नेता छोटी-छोटी बातों पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए उतावले रहते हैं। मोदी को हरियाणा में बुलाने के लिए भी अलग-अलग तिथियों के कार्यक्रमों को अपने-अपने हिसाब से तय कर अपना आधिपत्य दिखाना चाहते हैं।

भाजपा की इसी कमज़ोरी का फायदा हरियाणा में अब कॉंग्रेस, अन्य प्रभावशाली दल और इंडियन नेशनल लोकदल जैसी पार्टियां उठाना चाह रही है। नए दल भी हरियाणा में अब ताजपोशी की कल्पना करने लगे हैं।

जहां आम आदमी पार्टी एक ओर जगह-जगह पर ‘हमारा परिवार- आम आदमी पार्टी के साथ’ के पोस्टर चिपकाकर लोगों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही है वहीं दूसरी ओर ग्रामीण स्तर पर कॉंग्रेस को युवाओं की हताशा साफ दिखाई देने लगी है। पांच अक्टूबर को जींद में एक प्रेस कॉन्फ्रेस के दौरान पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर ने कहा कि अब कॉंग्रेस युवाओं को अपने साथ जोड़ेगी। आगामी चुनाव में कॉंग्रेस का फोकस इसी यूथ पर रहेगा।

दिल्ली में प्रचण्ड बहुमत पाकर गद-गद हुई आम आदमी पार्टी को भी लगने लगा है कि यदि हरियाणा में भी खेत जोता जाये तब बम्पर फसल पाई जा सकती है। हरियाणा में आम आदमी पार्टी के पास ‘टोपीधारी’ सर्वेयर तो दिखाई दे रहे हैं लेकिन झाड़-झंखाड़ काटने वाले वर्कर तथा खेत जोतने वाला मुख्य ‘हाली’ नदारद लगते हैं। पार्टी के पास ग्रामीण क्षेत्र की नब्ज़ पहचानने वाले नेता का अभाव दिखाई पड़ रहा है। देहात में जातीय और गौत्रीय कारक वोट बैंक को प्रभावित करते हैं तथा ग्रामीण एवं किसान के मुद्दों की अनदेखी किसी भी पार्टी को गाँव के मतदाता से जुड़ने से रोकती है।

केजरीवाल द्वारा पंजाब के चुनाव के समय एसवाईएल नहर पर दिया गया बयान भी किसान के वोट लेने में बाधक रहेगा। उल्लेखनीय है कि पंजाब चुनाव में केजरीवाल ने एसवाईएल पर हरियाणा के हक को सिरे से नकार दिया था।

वर्तमान में आप पार्टी के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जो अपने पाले में वोट कर सके। ग्रामीण और प्रदेश स्तर पर भी कोई कद्दावर नेता ना होने की वजह से धरातल पर केवल पोस्टरबाज़ी ही दिखाई दे रही है। वोटरों का आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ाव ना होने के कारण पार्टी के कर्णधारों को भी मज़बूत शख्सियत की कमी खलने लगी है।

क्या  इसी हालात को देखते हुए प्रदेश पार्टी किसी बाहरी दमदार नेता को इम्पोर्ट करने की सोच रही है? अभी हाल ही में आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवीन जयहिन्द ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अपनी यह मंशा ज़ाहिर कर दी थी। उन्होंने इंडियन नेशनल लोकदल के मीडिया में उछाले गए तथाकथित चाचा-भतीजा विवाद पर टिप्पणी करते हुए दुष्यंत चौटाला को आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने की बात कही थी। हालांकि दुष्यंत चौटाला ने इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) में किसी प्रकार के मनमुटाव की बात से साफ इंकार करते हुए आम आदमी पार्टी के सपने को पहले ही तोड़ दिया।

राजनैतिक विचारकों की मानें तो खुद दुष्यंत चौटाला भी जानते हैं कि इनेलो के ब्रांड नेम से बाहर निकल कर उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं होगा। उदहारण के तौर पर उन्हें अपने ही परिवार की उस घटना क्रम को याद कर लेना चाहिए जब उनके दादा के छोटे भाई रणजीत सिंह इसी तरह के राजनैतिक उत्तराधिकार को लेकर चौधरी देवीलाल को छोड़कर कॉंग्रेस के दामन में जा विराजे थे। अभी तक गत तीस वर्षों से अधिक समय से अपनी पहचान के लिए हाथ पैर मार रहे हैं।

राजनैतिक विश्लेषकों का एक वर्ग मानता है कि आम आदमी पार्टी द्वारा दुष्यंत चौटाला को स्वच्छ छवि का नेता बताकर तारीफ करना आम आदमी पार्टी की एक गहरी सोची समझी चाल है। यह तो साफ है कि आम आदमी पार्टी ना तो भाजपा और ना ही कॉंग्रेस के साथ समझौता करने वाली है, क्योंकि इनमें से किसी के साथ उनकी नज़दीकियां उनके दिल्ली की गद्दी पर पानी फेर सकती है। इसे पार्टी की मजबूरी ही कह सकते हैं कि हरियाणा में वो अकेले अपने दम पर चुनाव नहीं जीत सकती। पार्टी का बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन का रास्ता इनेलो ने पहले ही रोक दिया है। अब पार्टी के सामने एक ही रास्ता बचा है कि किसी थर्ड फ्रंट के नाम पर इनेलो-बसपा गठबंधन में हिस्सेदारी कर ली जाये ताकि हरियाणा में भाजपा और कॉंग्रेस दोनों को सत्ता पर काबिज़ होने से रोका जाये।

नोट- यह आर्टिकल यूज़र द्वारा पहले Dailyhunt पर प्रकाशित किया जा चुका है।

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