Site icon Youth Ki Awaaz

“19 करोड़ भूखे लोगों के देश में 2989 करोड़ की प्रतिमा कितनी ज़रूरी है?”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नरेंद्र मोदी

“मेरी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक देश हो और इस देश में कोई भूखा ना हो अन्न के लिए आंसू बहाता हुआ”           –सरदार वल्लभभाई पटेल

सरदार पटेल के ये शब्द बताते हैं कि वो गरीबों और किसानों के दर्द को भली-भांति समझते थे। वो नहीं चाहते थे कि कोई भी भारतीय भूखे सोने को मजबूर हो लेकिन वर्तमान समय में हर रोज़ लाखों लोग भूखे सोने को विवश हैं।

मौजूदा दौर में भले ही इस बात को लेकर बहस चलती है कि नेहरू और सरदार पटेल में से किसने इस देश के लिए अहम योगदान दिया, लेकिन सच तो यही है कि दोनों नेताओं ने कभी भी देश के मुद्दों के सामने खुद के मतभेदों को ज़ाहिर नहीं होने दिया। एक दूसरे के लिए दोनों के मन में जो सम्मान का भाव था, उसे कम होने नहीं दिया। आजकल की राजनीति में शब्दों की मर्यादा तो खत्म ही होती जा रही है और इस कीचड़ में जबतक खुद के कपड़े दाग से ना रंग जाए, तब तक कोई खुद को नेता नहीं समझता। विरोधी दल के नेताओं पर कीचड़ उछालना तो आज के नेताओं के लिए बहता पानी हो गया है, जिसमें हर कोई नहाना चाहता है।

गुजरात के सरदार सरोवर बांध के पास भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 अक्टूबर को अनावरण किया। यह प्रतिमा 33 महीनों में बनकर तैयार हुई है जिसे बनाने में 2989 करोड़ का खर्चा आया है। सोचने वाली बात यह है कि अगर सरदार पटेल आज होते तो क्या वह इस प्रतिमा को बनाने के पक्ष में होते? वो ये कहते कि इन पैसों का इस्तेमाल उनके लिए करो जो लोग समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े हैं।

इसपर भी जवाब आता है कि गरीबी मिटाने के लिए तमाम तरह की योजनाएं तो चलाई ही जा रही है। कुछ लोग यह भी कहते दिखाई पड़ते हैं कि अगर सरकार योजनाएं चला रही है, तब लोग भूखे पेट सोने को मजबूर क्यों हैं? क्यों किसान आत्महत्या करने को बेबस हैं और सैनिक अपनी पेंशन के लिए क्यों जंतर-मंतर पर धरना देने को मजबूर हैं?

2014 की लोकसभा चुनाव के बाद गरीबों को घर देने और गरीबी मिटाने का संकल्प लिया गया था, जिसे 2022 तक के लिए छोड़ दिया गया और 33 महीनों में बेहिसाब खर्च कर प्रतिमा खड़ी कर दी गई। सरदार पटेल तो कहते थे कि मेरे सपनों का भारत ऐसा हो जहां किसी की आंखों में भूख की वजह से आंसू ना निकले लेकिन हालात ऐसे हो गए हैं कि आज़ाद भारत में अपनी मेहनत से किसानी करने वाला किसान खून के आंसू रोने को मजबूर है।

क्या इस दौर में राजनेता को तब ही याद किया जाएगा जब उनकी बड़ी सी प्रतिमा बनवा दी जाएगी? इतने पैसों से बनी प्रतिमा का भारत जैसे देश में क्या काम? भारत में गरीबों को आज भी दो वक्त की रोटी के जुगाड़ की फिक्र होती है।

मौजूदा वक्त में जहां एक तरफ देश का औसत गरीब आदमी संघर्ष के साथ जीवन यापन कर रहा है वहीं दूसरी ओर 2989 करोड़ की प्रतिमा बनवाकर पैसों की बर्बादी की जा रही है। ऊंची प्रतिमाओं से क्या इस देश के किसानों को अपनी मेहनत का फल मिल जाएगा या हम अपने जवानों के लिए बेहतर सुविधा दे पाएंगे? हमें यह भी सोचना आवश्यक है कि सरदार पटेल इन गरीबों के बारे में क्या राय रखते थे और आज यह सब देखकर वो क्या कहते!

Exit mobile version