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भाजपा से नाराज़ सवर्ण और मायावती की मनमानी से मज़ेदार हो गया है मध्यप्रदेश 2018 चुनाव

लोकतंत्र का पर्व आ चुका है, तारीख तय हो चुकी है, 28 नवंबर को मतदाता अपने मतों का प्रयोग कर सभी उम्मीदवारों की किस्मत कैद कर देंगे। 11 दिसंबर को वोटों की गिनती के बाद फैसला भी आ जाएगा। मध्यप्रदेश में कुल 52 ज़िले और 230 विधानसभा सीटें हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले 3 बार से मध्य प्रदेश के सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर अपना पताका लहरा रहे हैं। ऐसे में देखना ये  होगा कि इस बार क्या होता है? क्या एक बार फिर मध्य प्रदेश के मामा कहे जाने वाले शिवराज सिंह चौहान की वापसी होगी? या काँग्रेस के भी अच्छे दिन आएंगे?

साल 2013 के वोट प्रतिशत की बात करें, तो बीजेपी के पास 45.19% है वहीं काँग्रेस के पास 36.79% वोट प्रतिशत है, लेकिन यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि बहुजन समाज पार्टी के पास 6.42% वोट प्रतिशत हैं। इस हाल में इस बार के चुनाव के मुद्दों पर ध्यान दें तो बहुजन समाज पार्टी 2% और कांग्रेस भी मात्र 2 से 3% ही वोटों का इज़ाफा करें तो दोनों पार्टियां शिवराज सिंह चौहान को आसानी से पटखनी दे सकती हैं।

मौजूदा परिवेश मे चुनाव में मुख्य मुद्दों में से एक एससी-एसटी एक्ट पर सवर्णों में नाराज़गी है। बीते कुछ दिनों में मध्यप्रदेश में इसका खासा असर देखने को मिला है! यह तय है कि भाजपा खुद को सवर्ण के वोटों की हकदार मानती है, ऐसे में सवर्णों से नाराजगी का खामियाज़ा कहीं भाजपा को भारी न पड़ जाए! एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के संशोधन को नकारने के बाद भी दलित समाज भाजपा के साथ आएगा यह असंभव ही लगता है!

बात 6.57 प्रतिशत मुस्लिमों की भी करें तो, हिंदुत्ववादी छवि के कारण भाजपा के साथ ना के बराबर ही जाएंगे, ऐसे में भाजपा की मुश्किलें बढ़ेंगी यह तय है! लेकिन जिस तरह मायावती ने काँग्रेस के महागठबंधन के साथ ना आने का फैसला लिया है, इससे भाजपा के चुनाव तक के रास्ते तो थोड़े सुगम हैं लेकिन चुनाव बाद परिणाम यह तय करेंगे कि क्या मायावती किंग मेकर बनेंगी या अधर में फंसी रहेंगी। अब देखना यह होगा कि क्या मध्य प्रदेश की जनता, एक सशक्त चेहरे के बिना काँग्रेस पर भरोसा करेगी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साफ छवि पर भाजपा को पुनः एक बार सत्ता की चाबी सौंपेगी।

यह सवाल इसलिए खड़ा होता है कि आज प्रदेश की जनता काँग्रेस को लेकर असमंजस में पड़ी है कि आखिर तीन बार की करारी शिकस्त के बाद भी, कमलनाथ ही होंगे मध्य प्रदेश कांग्रेस के अगुआ? या फिर युवा चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया भरेंगे काँग्रेस में नई जान? साथ ही साथ सवाल भाजपा के साथ भी खड़ा होता है कि मंदसौर घटना, व्यापम घोटाला, एससी-एसटी एक्ट में विरोध झेलने वाली भाजपा क्या इस बार मध्य प्रदेश में विकास का कार्य करेगी या ऐसे आरोपों पर चुप्पी साधे रहेगी, देखते हैं किसकी होगी शह किसकी होगी मात।

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