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भारत के मन में बिहार के लिए इतना स्टीरियोटाइप क्यों है?

क्या बिहारी होना अभिशाप है? क्या बिहार की भूमि पर जन्म लेना ही पाप है? क्या एक पहचान की कीमत भेदभाव, सामाजिक बहिष्कार , व्यापक तिरस्कार, हीन दृष्टि से देखे जाना है? अगर ये बातें बेबुनियाद हैं तो क्यों एक राज्य के निवासी को अपनी क्षेत्रीय पहचान के आधार पर हर रोज़, देश के हर दूसरे राज्य में, हर चौराहे पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है? अपने ही देश मे क्यों हमे दोयम दर्ज़े का नागरिक महसूस करवाया जाता है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत को “राज्यों का संघ” कहा गया है। हमारे वतन के संघीय ढांचे के अनुसार सभी राज्यों को समान स्वायत्तता मिली हुई है, जहां वो स्टेट लिस्ट के तहत अपना कानून बना सकते हैं। सिर्फ जम्मू और कश्मीर के संवेदनशील मसले के चलते राज्य को अनुच्छेद 370 के तहत विशेष स्थिति प्रदान की गई है ।

तो जब सभी राज्यों को जो अनुछेद 370 से विरक्त हैं, उन्हें भारत के संविधान के संघीय ढांचे के अनुसार समानता प्रदान की गई है, तब इस पक्षपात के क्या मायने हैं? हर राज्य के सभी नागरिक स्वतंत्र हैं किसी भी राज्य में जाकर अच्छी शिक्षा और बेहतर रोज़गार के अवसर तलाशने को, जिससे वो अपने सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकें, ऐसे में आप खास राज्यों के लोगों के साथ भेदभाव कर क्या जताना चाहते हैं? यह कि ये देश उनका उतना नहीं जितना बाकी राज्यों के नागरिकों का है। आप गैर संवैधानिक तरीकों से किसी की हद तय करना चाहते हैं कि तुम्हारा वजूद सिर्फ अपने राज्य तक महदूद और महफूज़ है, उसके बाहर आए तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहो!

आपके मन मे हमेशा एक बिहारी स्टीरियोटाइप दौड़ता है, बिहारी को देखते ही कुछ इस प्रकार के शब्द चित्र मन के कैनवास पे उभर आते हैं। देहाती, अनपढ़, पान खाकर थूकने वाला, रोड पर पेशाब करने वाला, समाज मे गंदगी फैलाने वाला और पता नहीं क्या-क्या! लेकिन क्या वो दिल पर हाथ रख के निष्पक्ष हो कह सकते हैं कि उनका राज्य सभी तरह की बुराइयों और पिछड़ेपन से मुक्त है?

कौन नहीं जानता पंजाब के ड्रग्स की समस्या को लेकिन क्या दूसरे राज्य ड्रग्स मुक्त हो गए हैं और क्या इसी समस्या की वजह से सभी पंजाबियों को नशेड़ी कहना उचित होगा? हरियाणा में महिला उत्पीड़न एक विकट समस्या है पर इस समस्या की वजह से सभी को एक चश्मे से देख कर मोलेस्टर तो घोषित नहीं किया जा सकता। जब आप बाकियों को उचित दृष्टि से देखकर उन राज्यों की व्यथा को समझ सकते हैं, तो फिर सिर्फ बिहार को क्यों अनुचित नज़रिए से देखते हैं?

मैं बिहार की गौरवशाली इतिहास की स्वर्णिम गाथा सुनाकर आपको बोर करना बिल्कुल नहीं चाहता। नालंदा एवं विक्रमशीला विश्वविद्यालय, वैशाली गणराज्य, मौर्य वंश, सम्राट अशोक, गौतम बुद्ध ये सब अब अतीत हो चुके हैं। जिसका आज के बिहार के जन जीवन से एक गौरवगान के अतिरिक्त कोई जन सरोकार नहीं है। परन्तु जो राज्य बिहार को हीन दृष्टि से देखते हैं, क्या उन्होंने जाना कि किन वजहों से बिहार गौरव के अर्श से पिछड़ेपन के गर्क में पहुंच गया? क्यों बिहारी लोग भविष्य की तलाश में अन्य राज्यों की ओर पलायन को मजबूर हुएं? ये जाने बिना कोई भी नज़रिया स्थापित करना ही अन्याय है, अपने ही हमवतनों के साथ।

बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है परंतु हर साल कोसी नदी में आने वाली बाढ़ से लाखों किसानों की फसल और आजीविका नष्ट हो जाती है। घर-बार, आम जन-जीवन सभी भयंकर रूप से प्रभावित होते हैं। विडंबना यह है कि 70 साल से नारे लगाने वालों और सत्तर साल तक राज्य और केंद्र में काबिज़ मुख्तलिफ सरकारों को आज तक इस विकट परिस्थिति ने अपनी ओर आकर्षित नहीं किया। ये बात समझने लायक है कि यह सिर्फ बाढ़ है, कोई धर्म या जाति नहीं जो वोट बैंक बने। हमारे देश मे जो वोट बैंक नहीं होते वो मुद्दे नहीं होते, ना तो ये संचार तंत्र में जगह बना पाते हैं, ना ही किसी पार्टी के चुनावी मेनिफेस्टो में।

आज़ादी के बाद से और 1990 के पहले बिहार में अधिकतम समय तक अस्थिर सरकारें रहीं जिसकी वजह से बिहार का औद्योगीकरण और विकास दूसरे राज्यों के मुकाबले बिल्कुल नहीं हुआ। 1990 से अब तक बिहार में जिन जातीय पार्टियों का वर्चस्व रहा और आज भी जिन्हें सत्ता मयस्सर है, उन्होंने बिहार की शिक्षा व्यवस्था खोखली कर डाली, जिसका नमूना हर साल सुर्खियां बटोरता है। उन्होंने ही राज्य में अपराध को सामान्य बना दिया और जंगल राज्य की स्थापना की, जो अब तक कायम है। ओछी राजनीति और प्रकृति की दोहरी मार झेल रही त्रस्त जनता आखिर क्या करे। क्या वो अपने भूख की ज़द में आकर दम तोड़ दे या फिर अपने लिए कहीं और अच्छे अवसर तलाशे? क्या उनका अवसरों की तलाश दूसरे राज्यों के नागरिकों की रोज़गारो पर अधिग्रहण है? क्या बिहार के लोगों को एक अच्छी शिक्षा का अधिकार नहीं जो वहां की सरकार उसे उपलब्ध कराने में पूर्णतः असफल रही है?

बिहार के मुख्यमंत्री अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने से पूर्व, जनता की बदहाली की भी आवाज़ें सुनकर बिहार के लिए विषेश राज्य की मांग करते थे। अब उनके अचानक हुए हृदय परिवर्तन ने उनकी मांग की ध्वनि पिछले दो वर्षों में मंद कर दी। बिहार को ज़रूरत है विशेष राज्य के दर्ज़े की, अपनी अर्थव्यवस्था और विकास काे आगे ले जाने के लिए। कोई भी मनुष्य अपने घर-बार से लगाव और जुड़ाव को छोड़कर नहीं जाना चाहता, परंतु बदहाली उसे मजबूर कर देती है पलायन के लिए, जिसकी व्यथा सिर्फ वो ही जानता है।

जिस खूबसूरत महानगरों में रहने का आप दम्भ भरते हैं, जिन बड़ी-बड़ी इमारतों और फ्लाईओवर को देखकर आप फूले नहीं समाते, वो सब जिन मेहनतकश मज़दूरों के परिश्रम के खून पसीने से आते हैं, आप उन्हें ही नहीं अपनाते। ट्रेन के ट्रेन मज़दूरों की भीड़ बिहार से महानगरों को स्वप्नों की नगरी बनाने निकलती है, स्वयं झुग्गियों में रहकर हज़ारों महल रोज़ बनाते हैं। बदले में उन्हें क्या मिलता है गालियां, धिक्कार, अपमान।

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