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“अंग्रेज़ी नहीं बोल पाने वालों को मज़ाक का पात्र क्यों समझा जाता है?”

हंसते हुए लड़के एवं लड़की

हंसते हुए लड़के एवं लड़की

मुझे बड़ी खुशी है कि सोशल मीडिया के प्रयोग में हिन्दी बेहतर माध्यम बनकर सामने आई है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस देश में हिन्दी के संदर्भ में एक क्रांति आई है, तभी तो सोशल मीडिया पर अब लोग हिन्दी में लिखने लगे हैं। इन सबके बीच मैंने अपने निजी अनुभव से पाया कि अच्छे लोगों की भी वर्तनी में बहुत खामियां हैं, जिन्हें दूर करना आवश्यक है। बहुत अफसोस होता है जब कोई अपनी मातृभाषा में गलतियां करता है, क्योंकि हिन्दी भाषा हमारी संभ्यता और संस्कृति के साथ जुड़ी हुई है।

सोशल मीडिया पर भले ही हिन्दी का प्रचलन बढ़ा है लेकिन विदेशी भाषा सीखने में लोग अधिक ध्यान देते हैं। उन्हें लगता है कि विदेशी भाषा से ना सिर्फ रोज़गार प्राप्त किया जा सकता है, बल्कि समाज में इज्ज़त भी बढ़ती है। इन सबके बीच अगर हिन्दी का दायरा धीरे-धीरे बढ़ रहा है तो वाकई में यह एक शुभ संकेत है।

जिस भारत देश में बच्चे पढ़ाई की शुरुआत ABCD से करते हैं, जहां के न्यायालय में कानूनी प्रक्रिया के दौरान विदेशी भाषा बोली जाती है, जहां आपस में बहस गैर-भारतीय भाषा में होती है, वहां अपनी भाषा को जीवित रखना सराहनीय कदम है।

हमें उन गैर भारतीयों से सीखने की ज़रुरत है जो भारत में आकर हिन्दी और संस्कृत का ज्ञान अर्जित करने में दिलचस्पी दिखाते हैं और एक हम हैं जो हिन्दी को उतनी अहमियत नहीं देते हैं। आजकल लोग आम बोलचाल में भी हिन्दी का उपयोग करने से बचते हैं। हमारे समाज के अंदर एक और चीज़ बुरी है कि लोग अगर अधिक शुद्ध हिन्दी या संस्कृत बोलने लग जाते हैं, तो उन्हें पंडित की संज्ञा दी जाती है। कहा जाने लगता है कि ज़्यादा पंडित बनने की कोशिश मत करो। कमाल की विडंबना है, मतलब भारत में केवल पंडित ही हिन्दी या संस्कृत बोलेंगे? सिर्फ पण्डित ही भारतीय हैं क्या?

हम सभी भारतीयों को ये समझना होगा कि हिन्दी को अगर समृद्ध बनाना है, तो हमारी सरकारों को हिन्दी के हित मे ठोस कदम उठाना पड़ेगा। हिन्दी जगत में रोज़गार देना पड़ेगा, जिससे युवाओं के अंदर हिन्दी को लेकर दिलचस्पी बढ़े। हमारे शिक्षित समाज को यह समझना होगा कि हिन्दी बोलने वाला आदमी गंवार नहीं होता। यदि हिन्दी के दायरे को बढ़ाना है तब हिन्दी बोलने वालों के प्रति आदर की भावना प्रकट करनी होगी। ऐसा करने से हिन्दी बोलने वाले व्यक्ति में समानता का भाव उत्पन्न हो होगा। मैं दावे के साथ कहता हूं कि ऐसा करने से पूरे देश मे हिन्दी भाषा का कोई सानी नहीं होगा और हमारी आने वाली पीढ़ी भारतीयता से दूर नहीं हो पायेगी।

कहते हैं किसी भी संस्कृति को समाप्त करना हो तो उसकी भाषा बदल दो, संस्कृति स्वयं समाप्त हो जाएगी। अगर अपनी संस्कृति को बचाना है, तो पहले हमें अपनी भाषा अर्थात माध्यम को बचाना होगा। ऐसा करने से हम सब एक ऐसी डोर मे बंध जाएंगे जिसका हम सम्मान करते हैं।

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