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“मुझे उस समाज से नफरत है जो महिलाओं को पीरियड्स के समय मंदिर जाने से रोकता है”

Sabrimala Temple

Sabrimala Temple, Kerala

बीते शुक्रवार को जब सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तब यह सोचकर मैं काफी हैरान हुआ कि अंधा कहे जाने वाले कानून को भी महिलाओं के अधिकार का अंदाज़ा था। लेकिन इस देश के पुरुषों की आंखें खुली होने के बावजूद भी उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि समाज की मज़बूती और हमारी जननी के तौर पर उनकी कितनी महत्ता है। वैसे भी एक माँ के बिना इस संसार की रचना नामुमकिन है।

दूसरी ओऱ असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर में माँ के योनी रूपी मूर्ति की पूजा होती है। वहां तीन दिनों तक माता के मासिक धर्म के समय माँ का कपाट बंद रहता है औऱ बाहर उनकी आराधना चलती रहती है। केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल तक के उम्र की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश को लेकर जैसी बंदिशें लगाई गई थीं, उससे यह साबित होता है कि हम किस हद तक गिर चुके हैं। इस उम्र की महिलाओं को महीने में एक बार मासिक धर्म से गुजरना ही पड़ता है और सभ्य समाज इस चीज़ को अशुद्ध मानने लग जाता है।

यह कैसी विडंबना है कि हम उसी खून को अशुद्ध मानने लग जाते हैं जिस खून से इस संसार का जन्म हुआ है। मैं तो यह सोच कर हैरान हो जाता हूं कि इस समाज में सारे नियम-कानून महिलाओं के लिए ही क्यों होते हैं। पुरुषों के लिए क्यों कोई बंदिशें नहीं होती हैं। पुरुष हस्तमैथुन या संभोग करने के बाद भी हवन जैसी पवित्र जगह पर जाकर बैठ सकता है, फिर महिलाओं को मंदिर में जाने से क्यों रोका जाता है। आखिर औरत अपनी पवित्रता साबित करने के लिए बार-बार क्यों अग्निपरीक्षा दें।

अभी कुछ ही रोज़ में नवरात्रे शुरू होने वाले हैं जहां नवमी पूजा के दिन हमलोग नौ कन्याओं को भोजन खिलाते हैं, जिनमें सभी की उम्र 10 वर्ष से कम होती है। या यूं कह लें कि अब तक जिनका मासिक धर्म आरंभ ना हुआ हो उन्हें ही नवमी के रोज़ भोजन कराया जाता है। ऐसे में हम समाज से बस एक सवाल पूछना चाहते हैं कि मासिक धर्म आने के बाद आखिर महिलाओं के साथ ऐसा क्यों किया जाता है।

इतना ही नहीं, मासिक धर्म के दौरान औरतों को हम रसोई घर में जाकर अचार छूने तक की इजाज़त नहीं देते। इस दौरान एक पुराने कपड़े के सहारे उसे वक्त काटने को हम विवश कर देते हैं। यहीं वजह है कि मुझे पुरुष जाति से नफरत है, क्योंकि वे भूल जाते हैं कि वह भी किसी के बेटे और उनकी माँ भी एक औरत है। यहां तक कि उनका भी जन्म उस पवित्र योनी के रास्ते से ही हुआ है। ऐसे में इस समाज को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक कदम और आगे बढ़कर औरत जाति के कंधों से इस तरह के बोझ को समाप्त करना होगा। समाज को आगे बढ़ने के लिए पुरुष और स्त्री दोनों का साथ चाहिए।

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