इंसान प्रकृति की एकमात्र कृति है जो शब्दों के माध्यम से अपनी सोच, भावनाएं और अनुभव अभिव्यक्त कर सकता है। यह अभिव्यक्ति की सामर्थ्य का आधार मानव जीवन के ज्ञान का भी आधार है। इंसान का ज्ञान एक तो उसकी अनुभूति और दूसरी अभिव्यक्ति के माध्यम से आगे बढ़ता है।
अनुभूति के माध्यम से एक व्यक्ति निजी तौर पर चीज़ों को जानता-समझता है मगर अभिव्यक्ति के माध्यम से अपनी बात को एक या एक से अधिक लोगों तक पहुंचा सकता है। अभिव्यक्ति के कई माध्यम हो सकते हैं लेकिन भाषा अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त और वैज्ञानिक माध्यम है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी को हम सरहदों में भी सीमित नहीं कर सकते। ज्ञान चाहे दार्शनिक, वैज्ञानिक या व्यक्तिगत अनुभव हो, मगर वह समस्त मानव जाति की निधि है। इसलिए हर किसी को अभिव्यक्ति की आज़ादी मानने की सुविधा और अधिकार होनी चाहिए।
अभिव्यक्ति की आज़ादी किसी भी लोकतंत्र के जीवित रहने की प्राथमिक शर्त है। जिस देश में व्यक्ति अपने विचार, अनुभव, सरकार और संस्थाओं के बारे में अपनी राय नहीं रख सकता, उसे लोकतांत्रिक देश कहना मेरे हिसाब से बेमानी होगी।
हमारा देश भारत भी एक लोकतंत्र है और इसलिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की आज़ादी को मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान किया गया है। इसमें कुछ अपवाद भी हैं, जैसे- हम ऐसी बातें ना बोलें जो किसी व्यक्ति की मानहानि अथवा उस देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा हो।
ऐसे मौके बहुत आए हैं जब सत्ता, संस्थान और सरकारें अभिव्यक्ति की आज़ादी का दमन करते दिखाई पड़े हैं। लेकिन जनता अपने संघर्षों के बल पर अभिव्यक्ति की आज़ादी को कायम रखती है।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को संविधान में कहीं भी अलग से नहीं वर्णित किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत जिस वाक एंव अभिव्यक्ति की आज़ादी का प्रयोग एक आम आदमी करता है, मीडिया के लिए भी वही अधिकार है। किसी लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां की मीडिया को कितनी स्वतंत्रता दी गई है।
विश्व में अभिव्यक्ति की आज़ादी की स्थिति क्या है उसे हम ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स’ के माध्यम से भी देख सकते हैं। इस रिपोर्ट में 180 देशों की स्थिति को बताया गया है, जहां साल 2018 में भारत को 138वां स्थान प्राप्त हुआ है। 2017 की तुलना में भारत उस रिपोर्ट में दो अंक नीचे आया है। यह भारत जैसे लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है।
चाहे सरकार के कार्यों की आलोचना करनी हो या फिर किसी मुद्दे पर अपनी राय देनी हो, इन दिनों धीरे-धीरे लोगों को अपनी बात रखने के अधिकार को खत्म किया जा रहा है। यह किसी भी राष्ट्र या लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं हो सकती है।
अंग्रेज़ों के काल में एक कानून था जिसे रौलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है। इसके तहत देशद्रोह के अभियुक्त को बिना मुकद्दमें के जेल में डालने का प्रावधान था। भारत में अंग्रेज़ों ने इसके अतिरिक्त भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124A के अंतर्गत अभिव्यक्ति की आज़ादी का दमन करने का प्रयास किया था और इसे देशद्रोह का अपराध माना था।
इसके अंतर्गत सबसे पहले बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गाँधी को अपराधी घोषित किया गया था। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि देशद्रोह का वह प्रावधान स्वतंत्र भारत में आज भी कायम है जिसे ब्रिटिश सरकार ने भारतीय लोगों पर शासन करने के लिए बनाया था।
यह कोई नई बात नहीं है जब अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला हुआ हो। इसका सबसे व्यापक उदहारण हम इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल से समझ सकते हैं जब उन्हें कुर्सी से हाथ धोना पड़ा था लेकिन ऐसी परिस्थियां तो आज भी दिखाई पड़ती है।
झारखण्ड में सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा फेसबुक पर पत्थलगड़ी और आदिवासी अधिकारों के समर्थन में बात करने के लिए 20 लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज़ किया गया।
भारतीय संविधान ने नागरिकों के अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट जैसी शक्तिशाली संवैधानिक निकाय का गठन किया है। क्या मौजूदा दौर के राजनेता भारत के संविधान से भी सर्वोपरि हैं?
अभिव्यक्ति की आज़ादी सभी प्रकार की स्वतंत्रता की जननी है। इससे इंसान को ना सर्फ अपनी बात रखने की आज़ादी मिलती है बल्कि वह अपने अधिकारों की सुरक्षा भी कर सकता है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी के महत्व को रेखांकित करते हुए चार बिन्दुओं के साथ मैं अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा।
- सत्य तथा ज्ञान की खोज और उसके प्रसार के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी अत्यंत आवश्यक है।
- अभिव्यक्ति की आज़ादी इंसान को आत्म-विकास से लबरेज़ और सम्मानजनक महसूस करने के लिए ज़रूरी है।
- अभिव्यक्ति की आज़ादी इंसान को अपनी सोच के अलावा राजनीतिक, धार्मिक तथा सामाजिक नज़रिया रखने का अवसर प्रदान करती है, जिससे देश और समाज का विकास होता है। यह व्यक्ति को लोकतंत्र में भागीदारी लेने का अवसर भी उपलब्ध कराती है।
- अभिव्यक्ति की आज़ादी लोकतंत्र की बुनियादी शर्त है, जो सरकार को उनकी नीतियों, योजनाओं आदि की आलोचना के माध्यम से सुधार का अवसर प्रदान करती है।
मैं गारंटी के साथ कह सकता हूं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के माध्यम से आप बिना डरे अपनी बात रख सकते हैं। इसके लिए आपको कोई मना नहीं कर सकता लेकिन हां, ध्यान रहे कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के माध्यम से किसी कानून का उल्लंघन ना हो।