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“कैंसर ने पत्नी के रूप में मेरा सब कुछ छीन लिया”

मेरा नाम राजू मुर्मू है। मैं Youth Ki Awaaz के ‘सिटीज़न जर्नलिज़्म फोरम’ के लिए लगभग दो वर्षों से लिख रहा हूं। मैं अपने जीवन के कुछ अनुभव आप सभी पाठकों के साथ साझा कर रहा हूं। शायद यह आपके जीवन लिए सहायक सिद्ध हो।

‘मृत्यु’ एक ऐसा शब्द है जिससे कोई नहीं बच सकता। मृत्यु, जीवन से अलग करने वाली वह क्रिया है जिसे कोई पसंद नही करता। यह जीवों  की उत्पत्ति के साथ-साथ करोड़ों वर्षो से पीछा करता आ रहा है। मानव जगत उससे बचने के लिए कई उपाय करता आ रहा है लेकिन इस मृत्यु से आज तक कोई नहीं बच पाया है। मृत्यु आपके दिल अजीज़ लोगों से आपको हमेशा के लिए अलग कर देती है जिसे आप सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं।

07 नवम्बर को ‘राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस’ के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की चपेट में आज पूरा विश्व है। इस बीमारी ने किसी को नहीं छोड़ा अतः मुझे इस विषय पर लिखना मेरी नैतिक ज़िम्मेदारी लगती है। इस बीमारी की चपेट मे खुद मेरी पत्नी भी आ गई थी और वह 29 जुलाई 2018 को अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर सदा के लिए इस दुनिया से चली गई। मैं उससे बेहद प्यार करता था लेकिन आज मेरे पास, सिवाय उसकी यादों के कुछ नहीं बचा।

आज से डेढ़ वर्ष पहले कैंसर ने उसके शरीर में दस्तक दी। एक छोटी सी गांठ ने उसका जीवन छीन लिया। दिल्ली के ‘लेडी हार्डिंग अस्पताल’ में उसकी बीमारी का पता चला। बायप्सी के दौरान पता चला कि उसकी बीमारी चौथे चरण में थी। मेरी तो जैसे पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी। कैंसर के समुचित इलाज के लिए दिल्ली में कई अस्पताल हैं।

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उचित इलाज के लिए ‘गुरु तेजबहादुर कैंसर इन्स्टिच्यूट’ में उन्हें एडमिट किया गया। मैंने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी कि कैंसर का इलाज इतना कष्टकारी होगा। अस्पताल परिसर में पेशेंट को देखकर मेरा हृदय दर्द और वेदना से भर जाता था। घंटों प्रतीक्षा के बाद जब इलाज के लिए नंबर आता था तो मैं मानसिक रूप से टूट जाता था। कीमोथेरेपी, रेडियो थेरेपी और फ्लूड टेपिंग जैसे कष्टकारी इलाज करवाते हुए कई बार रात के 9-10 बज जाते थे।

निढाल पत्नी को जब घर लेकर आता था तो वह मेरे चेहरे की तरफ देखती थी, मेरी बेचारगी को देखते हुए अपनी तकलीफ को छुपाते हुए थोड़ा सा मुस्कुराने की कोशिश करती और तसल्ली देती – सुनो जी सब ठीक हो जाएगा आप चिंता मत करो। मैं कहता “मैं तुम्हें इतनी आसानी से जाने नहीं दूंगा।”

उसी दौरान मेरे एक गुजरात के भईया ने मुझे गुजरात आने का निमंत्रण दिया और कहा की हमारे यहां एक वैध ट्राइबल मेडिसीन देते हैं। उससे उनको फायदा होगा। हमने गुजरात से जड़ी-बूटी की दवाइयां भी ली। फायदा भी हुआ लेकिन लंग मे फ्लूड की वजह से उसकी परेशानी बढ़ती जा रही थी। महीने मे दो बार टेपिंग होती थी, मैं अनुभवी डॉक्टर की टीम की सलाह को ध्यान से सुनता था।

पत्नी की बीमारी, नौकरी, बच्चों का स्कूल और उनकी देखभाल करने के बीच मैं सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रहा था। इस कारण मैं मानसिक तनाव में भी रहने लगा। कई बार लंबी छुट्टी भी लेनी पड़ती थी।

25 जुलाई का वह दिन मेरे लिए बहुत ही दर्दनाक था जब  उसे सांस लेने मे तकलीफ होने लगी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब इसके आगे क्या करूं। पास के एक डॉक्टर को बुलाया, उन्होंने नेबोलाइज़ और ऑक्सीजन आदि के इंतजाम के लिए कहा। घर में ही सब इंतज़ाम किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अतः रात को ही कैंसर अस्पताल ले गया। तीन दिन-तीन रात ऑब्ज़रवेशन में उनको रखा गया। डॉक्टर से पूछा कि मरीज़ का क्या हाल है तो उन्होंने कहा की लंग 75% काम नहीं कर रहा है। अगर मरीज़ सर्वाइव करती हैं तो रिकवर हो सकती  हैं।

मैं अंदर से डर हुआ था और बदहवास भी था। जिस बात का मुझे डर था वही हुआ, अगली सुबह रविवार की थी। जब मैं इमरजेंसी रूम में गया तो डॉक्टर उनका पल्स देख रहे थे। उन्होंने सभी तरह के एग्ज़ामिनेशन के बाद क्लियर किया कि वह अब इस दुनिया में नहीं रही। मेरी तो दुनिया ही लुट चुकी थी।

25 अक्टूबर 2018 को हमारे विवाह के दस वर्ष पूरे होने थे। कितना खुश था मैं अपने एक छोटे से परिवार के साथ। दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ मैं अपने जीवन मे तन्हा और अकेला हो गया, इस कैंसर ने मेरा सब कुछ छीन लिया।

आज दुनिया के सभी देशों में इलाज की तमाम सुविधाओं के बावजूद इस बीमारी पर लगाम नहीं लगाई जा सकी है। इस बीमारी के इलाज का महंगा होना भी एक बड़ी समस्या है। कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी, बायोलॉजिकल थेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से कैंसर का इलाज होता है लेकिन रोगी को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। अपने देश में गरीब मरीज़ यह कीमत अदा नहीं कर सकते हैं। इसके लिए सरकार रोगियों को कम कीमत पर सुविधाएं मुहैया कराकर उनकी मदद करती है। इसके अलावा वैकल्पिक चिकित्सा की कुछ पद्धतियों को बढ़ावा देकर भी कैंसर रोगियों की जान बचाई जा सकती है।

मुझे आप सभी पाठकों से यही कहना है कि कैंसर से बचने का केवल एक ही उपाय है संतुलित खानपान, नियमित व्यायाम, कैंसर के लिए जागरूकता,  धूम्रपान, मदिरापान, तंबाकू, गुटखा आदि से दूर रहें। जीवनशैली में बदलाव, तनावपूर्ण जीवन से मुक्त रहें तभी आप इस अमूल्य जीवन का आनंद उठा पाएंगे। मेरे जीवन का एक मकसद भी बन गया कि जब तक मैं जीवित हूं लोगों को इस दर्द भरी बीमारी से बचने के लिए जागरूक करता रहूंगा। आप भी प्रण लें कि इस बीमारी से लोगों को निजात देने के लिए उचित मार्गदर्शन करेंगे।

07 नवम्बर ‘राष्ट्रीय कैंसर अवेयरनेस डे’ के साथ-साथ दीपावली का भी पर्व है। इस प्रकाश के पावन पर्व में किसी के अंधियारे जीवन में एक प्रकाश बने। प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए सभी को प्रोत्साहित करें। ध्वनि उत्पन्न करने वाले एवं ज़हरीले बारूद के कणों से बचे, केवल दीप जलाएं यही तो दीपावली का सार है।

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