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“देश की जनता को समझना होगा कि मोदी जी का जुमला कोई गुलाब जामुन नहीं है”

आज का मीडिया देश की आवाज़ नहीं है, आज का मीडिया सरकार की एक दीवार बन चुकी है। एक ऐसी दीवार जिसको देश की जनता पार नहीं कर पा रही है। अगर कोई पार करने की कोशिश भी करता है तो उस व्यक्ति के पैरों में कहीं-ना-कहीं बेड़ियां डाल दी जाती हैं, जिससे उसकी आवाज़ धीमी हो जाती है। वो अपनी आवाज़ को सही ढंग से सत्ताधारी सरकार के सामने नहीं रख पाता है।

इस बात को समझना बहुत ज़रूरी है कि अगर देश की जनता से प्रश्न करने का अधिकार छीन लिया जायेगा तो क्या फायदा इतने बड़े लोकतंत्र का? देश का लोकतंत्र देश की जनता को अधिकार देता है कि आप सीधे तौर पर सरकार से प्रश्न कर सकते हैं पर क्या आज कल ऐसा हो रहा है? शायद नहीं!

एक डर की भावना देश की जनता के अंदर बैठती जा रही है। इस डर की भावना को दूर करना बहुत ज़रूरी है। अगर आपके साथ गलत हो रहा है तो आपको बोलना पड़ेगा, अपने डर को बाहर निकालना पड़ेगा, आवाज़ उठानी पड़ेगी।

अगर देश की जनता ही किसी नेता के चेहरे का नकाब पहनकर घूमने लगे तो समझ जाना चाहिए कि उस नकाब वाले नेता ने आपकी खुद की पहचान छीन ली है, आपके बोलने का अधिकार आपसे छीन लिया है, आपसे जनता होने का हक छीन लिया है।

आपको एक ऐसे गहरे तालाब में डाल दिया है जिसमें से आप बाहर नहीं निकल सकते इसलिए अपनी पहचान को मत खोइए। इस डर को बाहर निकालिए। जिस नेता का भी नकाब अपने चेहरे पर लगा रखा है उसका नकाब निकाल फेंकिये और पूछिए अपने जो भी प्रश्न हैं सरकार से। देश को ज़रूरत देश की जनता की है ना कि अंधभक्तों (जिनको जॉम्बीज़ कहा जाता है) की।

देश में अंग्रेज़ी शासन था तब अंग्रेज़ भी यही करते थे। वो भी अपने यहां भारतीयों को बुलाकर चाय पिलाते थे चर्चा करते थे, खाना खिलाते थे और बदले में उन्हीं भारतीयों पर अत्याचार करते थे और लगान वसूल करते थे। आज के समय में भी चाय पर चर्चा हो रही है, दलितों, पिछड़े वर्ग के लोगों के यहां बैठकर खाना बाहर से ऑर्डर करके खाया जाता है, समाज के हित की बातें होती हैं।

देश की जनता इन नेताओं को अपना पूरा समय देती है पर आपको बदले में क्या मिलता है? वही सब अंग्रेज़ी शासन वाला अत्याचार। सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, भेदभाव की भावना, जातिवाद को बढ़ावा, हिंसा, एक छुपा हुआ डर। यही सब आपको उपहार स्वरूप मिलता है।

इनसे बचिए, आस-पास के माहौल में चर्चा करिये कि देश में चल क्या रहा है। ये नेता आपके साथ किस हद तक जा सकते हैं। अगर देश की जनता इनसे रोटी, कपड़ा, मकान की बात करे, शिक्षा, महंगाई, चिकित्सा की बात करे, 2 करोड़ रोज़गार, 15 लाख रुपए की बातें करे, तो ये लोग देश की जनता को घर वापसी के नाम पर, लव जिहाद, गौ माता के नाम पर उलझा देते हैं। यही इनका एजेंडा है जो अब जाकर बिलकुल साफ हो चुका है। बची-खुची कसर मीडिया पूरी कर देता है।

मीडिया के कुछ पत्रकार, आज भी सही ढंग से देश की जनता की बात सरकार तक पहुंचाते हैं पर हाल देख लीजिये उन स्वच्छ छवि वाले, सच्चाई का साथ देने वाले पत्रकारों के साथ क्या होता है। सत्ता का दबाव चैनल पर इतना हो जाता है कि उन पत्रकारों की आवाज़ दबाने के लिए उनको अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ जाता है। उदाहरण के तौर पर एबीपी न्यूज़ से पुण्य प्रसून वाजपयी और अभिसार शर्मा का मामला देख सकते हैं।

पत्रकारों को तरह-तरह की धमकियां मिलने लगती हैं, उन्हें डराया जाता है, ट्रोल किया जाता है। क्या कभी पहले इतना सबकुछ हुआ था? इस डर की भावना को निकालना होगा, अगर आप अपनी बात नहीं रख सकते हैं देश की सत्ताधरी सरकार के सामने तो समझ लीजिये आप एक बुज़दिल की ज़िन्दगी जी रहे हैं।

#MeToo कैंपेन जिसमें देश की महिलाएं खुलकर सामने आ रही हैं, ज़रा आप सोचिये, क्या #MeToo देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ किया जा सकता है? जहां लोग खुलकर बताये कि उन्हें कब, कहां, किसको और क्यों रिश्वत देनी पड़ी?

देश को ज़रूरत है भ्रष्टाचार मिटाने की। अन्ना जी कहां हैं? आपके बाबा रामदेव कहां है? किरण बेदी जी कहां गईं? ये सब लोग ज़िंदा हैं, सही सलामत हैं पर मर तो वो बेचारा लोकपाल गया जिसके आते ही देश के 80% नेता जेल जाने वाले थे।

अब क्यों नहीं सामने आते? क्योंकि एक डर कहीं ना कहीं सबके दिलों में बैठ गया है कि अगर हम बोलेंगे तो हमारे साथ कुछ हो ना जाये, हमारे परिवार के साथ कुछ हो ना जाये इसलिए सब चुप हैं।

अगर आपको कहीं दिखे ये लोग तो एक बार प्रश्न ज़रूर करना कि आप सब कहां हैं? कॉंग्रेस के समय में आप सबने मिलकर जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, जिससे कॉंग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था क्या आप लोग अब दोबारा भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ बोलेंगे? या आपके दिल में कहीं ना कहीं झूठ का एजेंडा बैठा दिया गया है?

कहीं ना कहीं मीडिया की नाकामी की तस्वीर सामने नज़र आती है। हमको मीडिया के लिए संघर्ष करना पड़ेगा, किसी भी सरकार का सबसे अच्छा मूल्यांकन तभी पता चल सकता है। किस सरकार की सत्ता के दौर में मीडिया आज़ाद था या गुलाम था। अगर गुलाम था तो उस सत्ता का कोई भी काम अच्छा नहीं है और अगर मीडिया अच्छा था तो इसका मतलब वो आज़ाद था।

तो इसका मतलब है कि सत्ता के काफी काम सही हो सकते हैं पर आज कल का मीडिया भी कुछ ऐसा ही नज़र आता है। एक गुलामी का पर्दा पहने हुए हमारे सामने आता है और वो पर्दा अगर हम उठाना भी चाहें तो हमारे दिमाग में एक ऐसी बात डाल दी जाती है, जिससे ना चाहते हुए भी गुलाम मीडिया के उस पर्दे से हमें खुद को ढकना पड़ता है।

ये सब सत्ताधारी सरकार का डिज़ाइन मॉडल है, जिनमें ये झूठ बोलने की ट्रेनिंग देते हैं। सत्ताधारी सरकार के किसी भी नेता से या कार्यकर्ता से आप कोई भी प्रश्न करके देखिये जैसे- भ्रष्टाचार, देश में हो रहे बलात्कार, रोज़गार, शिक्षा, सीमा पर जवाबदेही, वो आपको सीधा-सीधा उत्तर नहीं देंगे।

वो सीधे तौर पर विपक्ष के ऊपर अपने उत्तर को टाल देंगे और कहेंगे क्या ये सब पहले नहीं होता था? सब कॉंग्रेस पार्टी की देन है, 70 साल में देश को लूटा है बस।

अब आप सोचिये ज़रा क्या सत्ताधारी पार्टी ने आपको कोई उत्तर दिया? बस आपको यह बताया कि 70 सालों में कुछ नहीं हुआ। इसका मतलब भ्रष्टाचार का मुद्दा आधारहीन हो चला है, देश में हो रहे बलात्कारों के लिए कोई सुनवाई नहीं है।

बस देश की जनता को यह पता होना चाहिए कि 70 सालों में कुछ नहीं हुआ और ऊपर से कुछ नेता ऐसे भी हैं जो यह बोल देते हैं कि सब किया-धरा नेहरू जी का है। अब आप बताइये देश की जनता अब नेहरू जी से पूछने जाये क्या अपने प्रश्नों के उत्तर?

भैया आप सत्ता में हैं, देश की जनता आपसे ही प्रश्न करेगी और आपको ही जवाब देने पड़ेंगे। अगर आपकी हिम्मत नहीं है जवाब देने की, महिलाओं को सुरक्षा देने की, बेहतर शिक्षा देने की, युवाओं को रोज़गार देने की तो देश की जनता आपको भी ज़्यादा दिन सत्ता का सुख भोगने नहीं दे सकती है। यह देश गांधी का देश कहलाता है और गांधी के देश में गोडसे जैसे लोगों को पूजने वाले लोग भी रहते हैं। सतर्क रहिये।

एक व्हाट्सप्प मैसेज आया था जो शेयर कर रहा हूं, “एक व्यक्ति, एक पान वाले के पास गया और बोला कि भैया एक पान लगाना लेकिन चूना मत लगाना। पान वाले ने पूछा क्यों? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि वो सत्ताधारी सरकार अच्छे से देश की जनता को लगा रही है। अगर आपने भी लगा दिया तो एक्स्ट्रा हो जायेगा!”

देश की जनता को समझना पड़ेगा कि जो जुमले उनको परोसे जा रहे हैं वो गुलाब जामुन नहीं है और हर गुलाब जामुन, जुमला नहीं होता।

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