Site icon Youth Ki Awaaz

क्या सरदार पटेल कभी अपनी प्रतिमा पर करोड़ों खर्च करने की इजाज़त देते?

हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिन के अवसर पर उनकी 182 मीटर ऊंची प्रतिमा को देश को समर्पित किया। लगभग 2989 करोड़ रुपये की लागत से बनी यह प्रतिमा विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है। यह प्रतिमा सचमुच में देश का गौरव है पर क्या इस देश को इसकी आवश्यकता है?

19 करोड़ से ज़्यादा भूखों के देश भारत में इसकी क्या अहमियत है? इस प्रतिमा के रखरखाव पर लगभग 12 लाख रुपये प्रतिदिन के हिसाब से खर्च आएगा। क्या यह फिज़ूलखर्ची नहीं है?

समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक सरकार की बहुत ही कम योजनाएं पहुंच पाती हैं, अगर इस मूर्ति पर लगाए गए पैसे का उपयोग स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, अनाथालय आदि बनाने में होता तो क्या बेहतर नहीं होता? मैं सरकार की आलोचना नहीं कर रहा बल्कि यह मेरा अपना विचार है।

अमेरिकी मीडिया ने भी कहा है कि यह सरकार की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है तथा यह प्रतिमा राजनीतिक लाभ लेने के लिए बनाई गई है।

इस प्रतिमा को देखने के लिए आम जनता को बहुत सारे पैसे खर्च करने होंगे। इस मूर्ति को देखने के लिए जो टिकट दर रखी गई है वो दुनिया के सात आश्चर्य में शामिल ताजमहल से भी बहुत ज़्यादा है।

हम होटलों में अपने परिवार के साथ खाना खाने जाते हैं, अपने मित्रों के साथ अच्छा समय व्यतीत करने के लिए जाते हैं। हम खाना खूब मज़े लेकर खाते हैं पर जब बैरे को टिप देने की बारी आती है तो हम कंजूसी करने लगते हैं। जितने पैसे में हम घर पर हफ्ते भर खाना खा सकते हैं उतना हम एक दिन में एक वक्त के खाने में खर्च कर देते हैं पर बैरे को टिप देते वक्त अपने मेहनत के पैसों को निकालने में बहुत तकलीफ होती है।

हम पिज्ज़ा, बर्गर या कोई भी खाने का सामान बाहर से ऑर्डर करके घर पर मंगाते हैं पर उसे लेकर आने वाले को पानी तक के लिए नहीं पूछते हैं। कहने का मतलब कुछ अमीरों के शौक के लिए, उनके पर्यटन के लिए या पिकनिक के लिए इतना खर्च करना कहां तक उचित है जबकि कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें दो वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता।

किसी महापुरुष को सच्ची श्रद्धांजलि देने के और भी तरीके हो सकते हैं। उनके नाम पर बहुत सारी संस्थाओं का निर्माण करके जो गरीबों के लिए, अनाथों के लिए काम करे। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल आदि का निमार्ण महापुरुषों के नाम पर करके उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की जा सकती है।

लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति ज़रूरी है ना कि फिज़ूलखर्ची। क्या अभी वो महापुरुष रहते तो इस फिज़ूलखर्ची की इजाज़त देते, शायद कभी नहीं।

अब आप बताइए क्या आप मेरे पोस्ट से सहमत हैं या नहीं?

Exit mobile version