आज के समय में दिल्ली मे भारी प्रदूषण की बात करें तो यह कोई नई बात नहीं होगी ठंडी का मौसम आते ही दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, आसमानों में जहरीली हवाओं की चादर मोटी हो जाती है, यह समस्या कई वजह से होती है, मसलन हरियाणा और पंजाब में पराली के जलाए जाना, दिल्ली में गाड़ियों की अनियंत्रित मात्रा और उससे निकलने वाले अनियंत्रित धूए इसके अलावा दिल्ली में उत्सर्जित कूड़े का उचित प्रबंधन ना हो पाना भी एक कारण है|
दिवाली के अगले दिन यह प्रदूषण की मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि इसमें सांस लेने का मतलब 30 से 35 सिगरेट पीने के बराबर होता है कोई भी मां बाप नहीं चाहेगा क्यों दिवाली का तोहफा अपने बच्चों को इस जहरीली हवा के रूप में दें, मीडिया खबरों के मुताबिक दिल्ली में ऐसे बहुत से परिवार है जो दिवाली मनाने के लिए अपने घरो को छोड़कर दिल्ली से दूर दूसरे राज्य, दूसरे शहर में पलायन कर जाते हैं और वहां पर दिवाली मनाते हैं हैं|
देश के लिए दिल्ली एक आदर्श शहर एक ऐसा शहर जिस के पग चिह्नों पर पर दूसरे शहर चलना चाहते हैं, दिल्ली ना सिर्फ देश की राजधानी है बल्कि वह राजनीतिक, आर्थिक, और विचारों की राजधानी भी है | दिल्ली में बैठकर जनप्रतिनिधि देश के लिए नए कानून और विकास का पथ तैयार करते हैं| लेकिन मेरी समझ से यह बिल्कुल परे है की इन जनप्रतिनिधियों का ध्यान दिल्ली के हवा पर क्यों नहीं जाता है|
विकास की दौड़ में हमने पेड़ काटकर सड़के बना दी, बड़ी बड़ी बिल्डिंग बना दी, बच्चों के लिए स्कूल कॉलेज बना दिए लेकिन इस विकास की दौड़ में हमने अपने बच्चों से साफ-सुथरी हवा में सांस लेने का अधिकार छीन लिया, अगर विकास का मतलब प्रकृति का नुकसान पहुंचाना ही है, तो मै ऐसे विकास से दूर रहना ही पसंद करूंगा|
हमारे समाज में जब भी कोई बड़े सपने देखता है तो लोग उसे कहते हैं कि “दिल्ली अभी दूर है” लेकिन आज की दिल्ली की हवा और पानी को देख कर मैं खुद को दिल्ली से दूर रखने ही पसंद करूंगा| मुझे कोई शौक नहीं है कि इस तथाकथित विकास के पद पर चल कर जहरीली हवा में सांस लू |