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“शिक्षा तो लेते रहेंगे, हमें पहले मंदिर चाहिए”

2011 की जनगणना के हिसाब से भारत की साक्षरता दर 74.04% है। जिसमें केरल 100% साक्षरता वाला प्रदेश है, वहीं बिहार, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान इत्यादि ऐसे प्रदेश हैं, जहां साक्षरता दर क्रमश: 61.80%, 65.38%, 67.68%, 66.11% है।

अगर हम उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों की बात करें, तो उनके हालात दिन रात बिगड़ते ही जा रहे हैं। स्कूलों में छात्र मौजूद हैं परन्तु उन्हें पढ़ाने के लिए अध्यापक मौजूद नहीं होते हैं। अगर गलती से कोई अध्यपाक मौजूद भी हैं तो अकसर देखा जाता है कि वो अपने ही काम में व्यस्त रहते हैं। जैसे-मोबाइल में गेम खेलना, व्हाट्सऐप, फेसबुक जैसी सोशल मीडिया पर व्यस्त रहना। वहीं अकसर शिक्षिकाएं भी सिलाई, बुनाई के कामों में लगी रहती हैं।

फोटो प्रतीकात्मक है।

वहां मौजूद बच्चे इधर-उधर खेलते रहते हैं। उन सरकारी स्कूलों के चपरासी का काम भी वहां के बच्चे करते हैं, जैसे-चाय लाना, गैस सिलिंडर लाना, अध्यापक के खाने-पीने का सामान लाना, झाड़ू लगाना इत्यादि। यह सब वहां के प्रधानाचार्य की नाक तले होता है। वो कभी ऐसा करने से बच्चों को रोकते हैं।

उस स्कूल के टीचर अपने बच्चे को तो प्राइवेट स्कूल में डालते हैं, जहां उनका बच्चा बचपन से ही अंग्रेज़ी बोलना सीख जाता है परन्तु कई सरकारी स्कूलों की 8वीं क्लास के बच्चे को यह नहीं मालूम होता है कि प्रधानमंत्री को ही प्राइम मिनिस्टर कहते हैं।

यह हालत हैं उन सरकारी स्कूलों के और आज की सरकार व्यस्त है कि वहां मंदिर कैसे बनाया जाएं। किसी ने IIT , AIMS , ISRO दिया और कोई मंदिर-मस्जिद पर अटक गया है।

राम मंदिर के लिए अयोद्धा में इकट्ठा भीड़। फोटो सोर्स- Getty

बीजेपी के तो शपथपत्र में सबसे पहला मुद्दा मंदिर बनाना ही होता है, जबकि सरकार का काम मंदिर बनाना नहीं बल्कि देश का भविष्य बनाना होता है। जिस प्रकार बीजेपी, वीएचपी, आरएसएस, शिव सेना मंदिर बनाने के लिए इतनी बड़ी तादाद में इकट्ठी हो रही है, कभी वे पार्टियां पढ़ाई के लिए आगे आईं? कभी नौकरियों के लिए इन सबमें से किसी एक ने भी आवाज़ उठाई?

बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले लोग सिर्फ सरकार ही नहीं हैं, बल्कि हम (जनता) भी हैं क्योंकि, हम लोग वोट देते हैं, जाति के आधार पर, धर्म के आधार पर और सिर्फ वोट देने को हम अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझते हैं। सिर्फ वोट देना ही सब कुछ नहीं है बल्कि सरकार से जवाब तलब करना भी हमारा ही कर्तव्य है।

हम इस कर्तव्य से अपने आप को दूर रखते हैं, यह सोचते हुए कि कौन सा ऐसा हमारे साथ या हमारे घर वालों के साथ हो रहा है। कौन सा हमारे घर से कोई सरकारी स्कूल में पढ़ने जा रहा है। हम यह सोचते हैं कि यह हमारा काम नहीं है बल्कि सरकार का है। सिर्फ सरकार ही इसके लिए ज़िम्मेदार है।

नहीं सिर्फ सरकार उसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है, हम उसके लिए ज़िम्मेदार हैं जो ऐसा होने पर भी चुपचाप सबकुछ देखते रहते हैं। उसके लिए आवाज़ तक नहीं उठाते हैं और सरकारी स्कूलों में बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता रहता है। क्या उन्हें पढ़ने का हक नहीं है? यहां सरकार को सिर्फ मंदिर दिख रहा है क्योंकि 2019 करीब है। जनता मूर्ख बनकर उसके पीछे-पीछे चल रही है।

अगर वाकई में सरकार चाहती है, “सबका साथ सबका विकास” तब वो पढ़ाई पर ध्यान देती ना कि मंदिर-मस्जिद पर। देश के ज़िम्मेदार नागरिक बनो और अपने अधिकार को समझो और उन गरीब बच्चों की आवाज़ बनो। “सबका साथ बीजेपी का विकास” यही नीतियां रह गई हैं सरकार की। सरकार भोली-भाली जनता का बहुत अच्छे से प्रयोग करके अपनी सीट बचा रही है और जनता बगैर कुछ सोचे समझे उसके पीछे भेड़ की तरह चल रही है।

 

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