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“इस दिवाली एक दीपक बाबरी मस्जिद ध्वस्त से आहत हुए मुसलमानों के नाम”

बाबरी मस्जिद

बाबरी मस्जिद

देशभर में रौशनी का त्यौहार दीपावली मनाया जा रहा है। यह त्योहार राम के 14 साल का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। इस बार अयोध्या में सरयू नदी के किनारे राम की पैड़ी पर 3 लाख 1 हज़ार 52 दीपक भी जलाए गए। योगी आदित्यनाथ ने इस बारे में पहले ही संकेत दे दिए थे।

दीपावली के आते ही अयोध्या में राम मंदिर को लेकर चर्चा का बाज़ार गर्म हो जाता है लेकिन एक सनातनी हिन्दू होने के नाते मुझे लगता है कि इस बार दीपावली में हिन्दुओं को एक दीपक उन मुसलमानों से माफी मांगने के लिए जलाना चाहिए था जिनकी भावनाएं 6 दिसंबर 1992 को आहत हुई थी।

हमारे सामने जो सर्वे और रिसर्च आए हैं, उनको देखकर लगता है कि अयोध्या में राम मंदिर था, जिसके बदले 16वीं सदी में बाबर के नाम पर ‘मीर बाकी’ ने मस्जिद का निर्माण किया। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि राम जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर होना चाहिए लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अयोध्या में प्रभू राम की पूजा नहीं हो रही है।

हमें यह भी मानना होगा कि 6 दिसंबर 1992 से पहले वहां पर एक ढांचा था, जिसे भीड़ ने गिरा दिया। ढांचा गिराने से पहले वहां पर कोई मुसलमान नमाज़ पढ़ने के लिए जाते थे या नहीं, इस बात की मुझे जानकारी नहीं है लेकिन इतना तो कह ही सकता हूं कि अगर वहां वाकई में मुसलमान नमाज़ पढ़ने जाते थे, तब वो ढांचा गिरने से उन्हें ज़रूर ठेस पहुंची होगी।

अगर औरंगज़ेब और बाबर ने मंदिरों को गिराकर मस्जिदों का निर्माण किया तो इसका मतलब यह तो नहीं कि हम मस्जिदों को तोड़कर मंदिर निर्माण करने लगेंगे। बाबरी मस्जिद ढांचा गिराने की साजिश में भाजपा के नेताओं पर मुकदमें चल रहे हैं लेकिन इस घटना का असर केवल भारत में नहीं, बल्कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी हुआ जहां हिन्दुओं के साथ अत्याचार किया गया और मंदिरों पर अटैक किए गए।

वैसे तो हिन्दू ग्रन्थ और कुरान दोनों ही अमन और शांति का पैगाम देते हैं लेकिन 6 दिसंबर 1992 को जो कुछ भी हुआ उसने माहौल बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाई जिसका एक सनातनी हिन्दू होने के नाते मुझे खेद है।

मेरा धर्म शांति का पैगाम देने के साथ-साथ दानी बनने की भी सीख देता है। मेरा धर्म दूसरों की मान्यताओं को सम्मान देने की बात करता है।यह सच है कि अयोध्या में राम मंदिर था और उसे तोड़कर मस्जिद बनाना भी गलत है लेकिन मस्जिद के ढांचे को गिराकर हमने सनातनी हिन्दू होने के कर्तव्य को भी नहीं निभाया है इसलिए क्यों ना इस दीपावली में एक माफी का दीपक उन सबके नाम जलाएं, जिनकी भावनाएं 6 दिसबंर 1992 को आहत हुई थी और यकीन मानिए भावनाएं आहत होने वालों में केवल मुस्लिम नहीं, बल्कि वे हिन्दू भी हैं जो मस्जिद को गिराने के पक्ष में नहीं थे।

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