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चलो हिन्दू-मुस्लिम की जंग छोड़, ‘हिंदुस्तानी’ बन जाते हैं

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क्या हरे-भगवे की जंग में,

कुछ सफेद रंग बाकी है?

क्या हिन्दू-मुस्लिम की जंग में,

कोई हिंदुस्तानी बाकी है? अगर हां,

तो आज आज़ाद हूं मैं।

 

स्कूल में जन गण मन से लेकर वन्दे मातरम तक,

सारे जहां से अच्छा से लेकर विजयी विश्व तिरंगा तक,

हर देशभक्ति के गानों में,

साथ में सुर से सुर मिलाते हम।

 

भारत की मैच में जीत से लेकर कारगिल के युद्ध तक,

26/11 में आतंकवादियों के ऊपर विजय से लेकर भारत की हर विजय तक,

साथ में विजय गाथा गाते हम।

क्या दूसरों के दिल में हमारे लिए मोहब्बत बाकी है?

अगर हां,

तो आज आज़ाद हूं मैं।

 

हां एक मुसलमान हूं मैं,

आरएसएस के लिए पाकिस्तान का नागरिक हूं मैं।

फिर भी जन गण मन पर

गर्व से सीना चौड़ा करके सबसे पहले खड़ा होता हूं मैं।

क्या इस देश में मुझे देशभक्ति का सर्टिफिकेट लेना बाकी है?

अगर नहीं,

तो आज आज़ाद हूं मैं।

 

अशफाकुल्ला हो या अब्दुल कलाम,

अब्दुल हफ़ीज़ हो या अबुल कलाम।

इस देश के लिए हमने क्या कुछ नहीं किया,

फिर भी आज हम ही देश विरोधी कहलाते हैं,

हम आज भी उनकी नज़रों में,

एक आतंकवादी की नज़र से देखे जाते हैं।

क्या ये नफरतें अब भी बाकी हैं?

अगर नहीं,

तो आज आज़ाद हूं मैं।

 

चलो सियासतदारों के मुंह पर तमाचा मारते हैं,

हमको नफरत में घोलने वालों के ऊपर तमाचा मारते हैं।

चलो हिन्दू मुस्लिम की जंग छोड़,

आओ हिंदुस्तानी बन जाते हैं।

एक दिन ऐसा भी आए कि अब हम सब साथ में गर्व से कहें,

आज आज़ाद हूं मैं।

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