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जानिए संसद का घेराव करने दिल्ली क्यों आ रहे हैं देशभर के किसान

kisan mukti march

दिल्ली का रामलीला मैदान अपने ऐतिहासिक आंदोलनों के कारण प्रख्यात है। बहुत सारे ऐसे आंदोलन यहां से शुरू हुए हैं जिन्होंने देश की दिशा और दशा को बदला है। ऐसा ही एक और आंदोलन 29 नवंबर को इसी मैदान से होने जा रहा है।

“किसान मुक्ति मार्च” नामक इस रैली के संयोजक वीएम सिंह हैं जो मशहूर किसान नेता हैं। वह इस रैली की योजना बहुत लंबे समय (जून 2017) से बना रहे थे। मार्च 2018 तक 170 किसान संगठन AIKSCC (अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति) से जुड़ चुके हैं। AIKSCC 208 किसान तथा कृषि कर्मचारियों का संगठन है। इस रैली में नेशन फॉर फार्मर्स (Nation for Farmers) भी शामिल है, जो “दिल्ली चलो” मुहिम चला रहा है और किसान मुक्ति मार्च में सहायता प्रदान कर रहा है।

इस रैली का व्यापक स्तर पर प्रचार और प्रसार किया जा रहा है ताकि देश के किसान भाइयों की स्थिति बेहतर हो सके।  इस मार्च को सशक्त बनाने के लिए दो विशेष ट्रेनों की भी सुविधा मुहैया करवाई जाएगी। एक महाराष्ट्र से और दूसरी कर्नाटक से। इसके अलावा देशभर से किसान साथी अपने-अपने संसाधनों से यहां पहुंच रहे हैं। एक लाख से ज़्यादा प्रदर्शनकारियों का इस रैली में आने का अनुमान लगाया जा रहा है।

इसके अलावा कॉंग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और केरल के मुख्यमंत्रियों समेत तमाम बड़े विपक्षी नेताओं को विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का निमंत्रण भी भेजा गया है।

इस रैली के आयोजन के पीछे का कारण किसानों की आर्थिक दशा में सुधार लाना है। उनकी बदहाली को खुशहाली में तब्दील करना इस रैली की प्राथमिकता है। “किसान मुक्ति मार्च” की सिर्फ दो मांगे हैं। पहला- किसानों  के कर्ज़ माफ किये जाए। दूसरा-कृषि उत्पाद लागत का डेढ़ गुना दाम सुनिश्चित किया जाए।

नेशन फॉर फार्मर्स ने एक पिटिशन तैयार कर लोगों को इसमें शामिल होने की गुहार की है। पिटिशन ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को साइन करने की अपील की गई है ताकि किसानों की इस समस्या से निपटने के लिए संसद में एक विशेष सत्र का आयोजन हो सके। इस रैली का मुख्य उद्देश्य संसद में दो प्राइवेट मेंबर बिलों को पास करके कानून की शक्ल दिलवाना है।

AIKSCC के सचिव अविक साहा कहते हैं

विशेष सत्र बुलाना हमारी मांग का हिस्सा नहीं है। हम सिर्फ यह चाहते हैं कि ये दोनों बिल पारित हो और कर्ज़ माफी तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) से संबंधित कानून बनाए जाए। अब इस मांग को कैसे पूरा करना है यह सरकार की ज़िम्मेदारी है। वह शीतकालीन सत्र में ही इसे पूरा करे या विशेष सत्र बुलाकर, यह सरकार को देखना है। विशेष सत्र बुलाना हमारा उद्देश्य नहीं है।

मशहूर पत्रकार पी साईनाथ कहते हैं,

अगर पार्लियामेंट का स्पेशल सेशन होता है तो वही किसानों के लिए बड़ी जीत होगी। कभी भी इतिहास में कृषि के ऊपर स्पेशल पार्लियामेंट सेशन नहीं हुआ है।

29 नवंबर को दिल्ली के अलग-अलग इलाकों बिजवासन, मजनू का टीला, निज़ामुद्दीन और आनंद विहार से रामलीला मैदान तक “किसान मुक्ति मार्च” निकाला जाएगा। मार्च के पहले दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम “एक शाम किसानों के नाम” का भी आयोजन किया जाएगा, जिसमें जाने माने गायक और कवि हिस्सा लेंगे। 30 नवंबर को किसान रामलीला मैदान से संसद की ओर मार्च शुरू करेंगे।

“किसान मुक्ति मार्च” बाकी तमाम रैलियों से इसलिए अलग है क्योंकि इसका उद्देश्य बहुत साफ है। अधिकतर ऐसा होता है कि किसान 40-50 मांग लेकर पहुंचते हैं और फिर सरकार उनमें से आधी मांगे स्वीकार कर लेती है। AISKCC के सचिव अविक साह ने एक बयान में इसे स्पष्ट किया है।

पी साईनाथ शहरी मध्यम वर्ग, युवाओं और छात्रों को इससे जोड़ने के लिए कई कॉलेजों और संस्थानों में लगातार जा रहे हैं तो दूसरी तरफ किसान नेता विएम सिंह और स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव अलग-अलग राज्यों के गांव-गांव जाकर लोगों से बात कर रहे हैं।

Dillichalo.in नाम से एक वेबसाइट भी बनाई गई है, जहां आप पिटिशन साइन कर सकते हैं और इस रैली के साथ-साथ कई और चीज़ों के बारे में जानकारी एकत्र कर सकते हैं। इस पिटिशन में राष्ट्रपति से विशेष सत्र के लिए अपील की गई है।

2011 की जनगणना यह दिखाती है कि 1991 के मुकाबले किसानों की संख्या में लगभग 15 मिलियन की कमी आयी है। पिछले 20 सालों में करीब तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की है। कृषि संकट अन्ततः सभी को प्रभावित करती है। किसान दिन रात एक करके अपनी ज़मीन पर फसल उगाते हैं पर उन्हें बदले में उस फसल की वास्तविक कीमत मिल नहीं पाती है। अन्नदाता कहे जाने वाले किसान अपनी ही पेट की भूख मिटाने में सामर्थ नहीं हो पाते और खुदकुशी पर मजबूर हो जाते हैं।

किसानों की बढ़ती बदहाली एक भयावह समस्या है जिससे पूरे देश के किसान जूझ रहे हैं। उनकी स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है। ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए पूरे देश की जनता को एकजुट हो जाना चाहिए ताकि किसान भाइयों का कुछ भला हो सके।

हमारे देश के किसान दशकों से ऐसी मुसीबतों का सामना करते आ रहे हैं। कनाडा, अमेरिका, मेक्सिको जैसे अन्य देशों के किसान का नाम आते ही हमारी ज़हन में एक विशेष तरह के चित्र उभरकर आते हैं, जिनमें RC  हेलीकॉप्टरों, एयरक्राफ्टों से खाद, यूरिया का वितरण खेतों में किया जाता है। आधुनिक मशीनों और तकनीकों का प्रयोग फसल उगाने के दौरान इस्तेमाल किया जाता है।

वहीं भारत में खुरपी, कुदाल, फाबरा, हंसुआ जैसे यंत्र और ज़्यादा से ज़्यादा ट्रैक्टर का इस्तेमाल होता रहा है। सदियों से वही पुराने ढांचे पर हमारी कृषि व्यवस्था आज भी जारी है जिसमें कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला है।

आशा की राह देख-देखकर किसान भाइयों की आंखे बूढ़ी हो गयी हैं। उन्हें सिर्फ “जय जवान जय किसान” जैसे नारों तक ही सीमित करके रख दिया गया है। किसानों के हित की बात तो हर नेता अपने चुनावी घोषणा पत्रों में करता है लेकिन वह सिर्फ जुमला बनकर ही रह जाता है। यह सब ठीक उसी मेढ़क की तरह होते हैं, जो बरसात के दिनों में खूब टरटराते हैं।

2019 का लोकसभा चुनाव नज़दीक है। ऐसे समय में किसानों के हित में आयोजित यह रैली उनके लिए अहम स्थान रखती है। देखना यह होगा कि 29 और 30 नवंबर को आयोजित होने वाली यह रैली कितनी सार्थक हो पाती है और इससे किसानों की दशा में कितना परिवर्तन आएगा।

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