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“क्या हमने यमन की इस बच्ची को भूख से रोते हुए नहीं देखा?”

        अमल हुसैन, यमन में भुखमरी की शिकार एक बच्ची जिसने दम तोड़ दिया

आर्थिक उन्नति और तकनीकी विकास के दौर में हम भूल ही गए थे कि एक मौत ऐसी भी होती है,

जहां जिस्म को चीरती हड्डियां इंसान को जीते जी कंकाल में बदल देती हैं।

 

क्या हमने उसे भूख से रोते हुए नहीं देखा?

क्योंकि हमारी आंखों में काला चश्मा है, जो गरीबी और मौत की इस सच्चाई से हमें अंधा कर देती है।

 

धर्म और राजनीति की लड़ाई ने हमें कमज़ोर बना दिया है।

हमारी अन्तःचेतना को लाश बनाकर शहर के चौराहों पर टांगा जा चुका है।

 

सब खामोश हैं।

हादसा बन जाना ही अब इंसान की फितरत हो गयी है।

“खामोशी बरकरार रखें”

एक आवाज़ चौराहे में गूंज गयी,

अमल की लाश किनारे रखी है।

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