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“वीसी साहब! जेएनयू को बर्बाद करने की आपकी कोशिश कभी कामयाब नहीं होगी”

आदरणीय वी.सी. साहब,

उम्मीद है जेएनयू प्रशासनिक भवन के एसी चैम्बर में बैठकर आपको बहुत खुशी महसूस हो रही होगी। हाँ, ठीक भी है क्योंकि यह तो वही विश्वविद्यालय है न जिसे देखकर हमेशा आपके मन में टीस उठती रहती होगी। आपकी आंखों में खटकती होगी यह जगह कि कैसे यहा रातभर छात्राएं बेधड़क घूमती हैं, कैसे यहां के छात्र पत्थरों पर बैठकर देश-दुनिया की चर्चा करते हैं, कैसे यहां के शिक्षक और छात्र सत्ता को चुनौती देने का माद्दा रखते हैं?

हम समझ सकते हैं आपकी परेशानी, अब आप कर भी क्या सकते हैं, जो आपको नागपुर से सिखाकर भेजा गया है आप तो बस उसी का पालन कर रहे हैं और बखूबी कर रहे हैं| जेएनयू को आपसे ज्यादा नुकसान भला कोई और पहुंचा सकता है? आपको इसके लिए अपने आकाओं द्वारा बड़े पुरस्कारों से नवाज़ा जाएगा| लेकिन सोचिए तो साहब की आपके आकाओं को इस प्यारी और खूबसूरत सी जगह से इतना डर क्यों है की उन्होंने आपके जैसा एक ‘full time सिपाही’ यहां तैनात कर दिया जो रक्षा कम करता है और विध्वंस ज्यादा।

जब से आप आए हैं आपने एक पल भी रुके बिना इस विश्वविद्यालय में लगातार मन माफिक बदलाव करने शुरू कर दिए।  पहले यहां के छात्रों को देशद्रोही बना दिया, फिर टैंक लगवाने लगे, फिर सब पर जबरन कंपल्सरी अटेंडेंस थोपी, फिर GSCASH को तहस-नहस कर दिया, फिर भी बात नहीं बनी तो शिक्षकों पर बायोमेट्रिक अटेंडेंस थोप दिया, फिर लाइब्रेरी से किताबें छीन लीं और अब साहब आपको छोटे-छोटे ढाबों से भी तकलीफ है?? लेकिन ये IIT नहीं है वी.सी. साहेब जहां आप CAFE COFFEE DAY जैसे प्रतिष्ठान खोलकर छात्रों को हाईटेक बना देंगें, हमें जेएनयू ही रहने दीजिए। हम खुश हैं गंगा ढाबा के पत्थरों पैर बैठकर, हम खुश हैं 24-7 का खाने से , हमें साबरमती की चाय पसंद है, हमें ‘झोलाछाप’ सामाजिक विज्ञान पढ़ने वाले मामूली छात्र ही रहने दीजिए। हमें नहीं बनना आपकी तरह हाईटेक।

जेएनयू का गंगा ढाबा

समझ आता है, आपका डर हमारे जैसे समाज विज्ञान पढ़ने वालों से। हमें अपनी पढ़ाई के लिए किसी लैब की ज़रुरत नहीं| यह समाज ही हमारी प्रयोगशाला है। हम हर पल, हर जगह कुछ सीखते हैं। हम सीखते हैं वाद-विवाद से, संवाद से और करते हैं सवाल। हम समझते हैं समाज में व्याप्त जातिगत गैरबराबरी को और पूछते हैं सवाल, हम करते हैं सवाल धर्म की आड़ में हो रहे शोषण पर, हम करते हैं सवाल उस पितृसत्ता से जो महिलाओं को जीने का हक नहीं देती, हम करते हैं सवाल पूंजीवाद से जो दूसरों का हक मारता है।

हम यहीं नहीं रुकते, हम आवाज़ उठाते हैं इस देश-दुनिया के मज़दूरों, किसानों, दलितों, आदिवासियों, छात्रों और तमाम शोषित- पीड़ित वर्गों के लिए और यह आवाज़ न आपसे और न ही आपके आकाओं से बर्दाश्त होती है। ये आवाजें बहुत तीखी सी होती हैं जो शायद आपको सोने नहीं देतीं। तभी तो आप हर संभव कोशिश करते हैं इस देश के समाजिक विज्ञान क्षेत्र के सिरमौर संस्थान को तबाह करने की।

ठीक ही तो है, न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी, न रहेगा ढाबा, न रहेगी चाय, न ही चर्चा, न जेएनयू और फिर कोई सवाल नहीं करेगा। क्या सच में वीसी साहब आपको सच में लगता है की ऐसा ही होगा? अगर आप ऐसा सोचते हैं तो माफ कीजिए, बड़ी भूल कर रहे हैं। यह IIT नहीं है जो आप हमारा मुंह बंद कर देंगे। यह जेएनयू है और यहां की तो दीवारें भी सवाल करती हैं।

आप चाहे कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें इस कैंपस को तबाह करने की, आपकी हर कोशिश जेएनयू को और बड़ा और मजबूत बनाती है। याद नहीं, आप ही ने तो जेएनयू को देशद्रोही कहा था और देखिए पूरा देश जेएनयू को जानने लगा, और अब तो शायद समझने भी लगा है। हमारी सवाल करने की आदत जाने वाली नहीं है, आप ढाबे बंद करें या लाइब्रेरी, कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि जेएनयू का छात्र तो हर जगह पढ़ सकता है और जेएनयू का शिक्षक हर जगह पढ़ा सकता है। आप अपनी हरकतों से अपने आकाओं को खुश करते जाइए लेकिन याद रखिए जेएनयू के इतिहास में आपका नाम काले अक्षरों में लिखा जाएगा और यह विश्वविद्यालय आपको आपके कर्मों की माफी कभी नहीं देगा।

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