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“क्या किताबी ज्ञान हमें तार्किक अधिक और प्रैक्टिकल कम बना रहे हैं?”

किताब पढ़ते छात्र

लाइब्रेरी में किताब पढ़ते छात्र

आज हमारे चारों तरफ इलेक्ट्रॉनिक साधनों की उपलब्धता से ज्ञान प्राप्त करने के माध्यमों की भरमार है। हम पल भर में मनचाही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। संसार के किसी भी कोने में होने वाली घटना को वर्तमान तथा भविष्य में देखा, सुना और पढ़ा जा सकता है।

हम अपने पलंग पर लेटकर सारी जानकारियां अपने मोबाइल फोन के माध्यम से प्राप्त कर लेते हैं। इन माध्यमों का असर कुछ ऐसा होता है कि हम पल भर में खुशी से दुखी हो जाते हैं। जानकारियां हासिल करने के लिए हमें दूसरों पर निर्भर रहना नहीं पड़ता है।

व्यक्ति का व्यक्तित्व प्राय: समय के साथ बदलता रहता है। उसके व्यक्तित्व को दो तरह के विचार प्रभावित करते हैं, पहला- मौलिक विचार और दूसरा बाहरी विचार। मौलिक विचार को हम अनुभव जन्य विचार कह सकते हैं जिसके माध्यम से व्यक्ति के आचरण पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है लेकिन बाहरी विचार से व्यक्ति के आचरण पर ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता है। बहुत कम लोग होते हैं जो बाहरी ज्ञान के अनुरूप खुद को ढाल  पाते है।

इन किताबी और इलेक्ट्रॉनिक ज्ञान के कारण हमारे पास विचारों की भरमार होती है और प्राय: लोग उन्हीं विचारों को प्रकट करते हैं। इस तरह के विचार सुनने में अच्छे और नैतिक लगते हैं और इस वजह से व्यक्ति पर भरोसा करने का मन बन जाता है। जब उन नैतिक बातों को अमल करने की बारी आती है तब हम पीछे हट जाते हैं।

यही कारण है कि हमें रायचंद (मुफ्त में ज्ञान बांटने वाले) जगह-जगह मिल जाते हैं। आपको कोई भी समस्या हो रायचंद मिल जाएंगे। आपको चाय बनाने वाला भी जानकारी दे सकता है कि किसी समस्या से निज़ाद कैसे पाना है, चाहे उसे चाय ठीक से बनानी आती हो या नहीं।

वर्तमान में ज़्यादातर लोग तमाम तरह के रिश्तों के साथ-साथ पति-पत्नी के बीच सामाजिक संबंधों के बारे में भी टीवी सीरियलों को देखकर और किताबों में पढ़कर समझ लेते हैं। सामाजिक नातों और रिश्तेदारियों को टीवी सीरियलों और किताबों के मुताबिक तौलने की कोशिश करने लगते हैं।

टीवी में दिखाए जाने वाले किसी सीरियल या फिर किसी किताब की कहानी में यदि कुछ गलत चीज़ों का ज़िक्र होता है, तब हम आसानी से पकड़ लेते हैं कि यहां गलत है लेकिन हम अपने निजी जीवन में उतने ही उलझे हुए रहते हैं।

कथनी और करनी में अंतर हमें राजनीति में भी दिखाई पड़ता है। राजनीति से जुड़े ज़्यादातर लोग मंच से बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन जब बारी काम करने की आती है, तब फिसड्डी हो जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकांश राजनेता धरातल पर कार्य नहीं करते हैं। उनके पास सिर्फ किताबी या इलेक्टॉनिक ज्ञान ही होता है, जिन्हें बेचकर सत्ता पर काबिज़ हो जाते हैं।

ज्ञान की इस इलेक्टॉनिक उपलब्धता से लोग नैतिक और लुभावनी बातें करते हैं लेकिन धरातल पर वे उतने ही फिसड्डी साबित होते हैं।आज हमारे पास ज्ञान संचय के माध्यमों के कारण काफी ज्ञान उपलब्ध हैं मगर हम निजी जीवन में उसका पालन नहीं कर पाते।

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