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“ठंड से दम तोड़ते लोगों के देश में शहरों के नाम बदलने से क्या होगा?”

ठंड में तड़पते लोग

ठंड में सोते लोग

सत्ता कोई भोग विलास की वस्तु नहीं बल्कि जनता की सेवा के लिए होती है। कोई भी राजनेता यदि स्वार्थ या क्रोध की भावना से सत्ता पर काबिज़ होता है तब कुर्सी की कोई अहमियत नहीं रह जाती। आजकल तो कुर्सी की आड़ में घोटाले हो रहे हैं। खैर, सबसे बड़ा घोटाला मनुष्य के चरित्र में होता है, जिसकी चर्चा कोई नहीं करना चाहता। मनुष्य का चरित्र ही तो है तो तरह-तरह के घोटालों को जन्म देता है।

दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूचि में 9 शहर हमारे भारत देश में हैं। यह भी एक तरह का घोटाला ही है जो देश के अन्य घोटालों से अधिक विनाशकारी है। इसकी चर्चा ना किसी न्यूज़ डिबेट में मिलती है और ना ही कोई नेता अपने भाषणों में इसका ज़िक्र करता है।

हमारे देश के औसत नेताओं की प्राथमिकता आज भी मंदिर और मस्जिद तक ही सीमित है। हमारे यहां मंदिर और मस्जिद के मुद्दों पर सरकारें बनती और गिरती हैं। ऐसा इसलिए हो पाता है क्योंकि जनता की पसंद के हिसाब से नेता मुद्दों को उछालते हैं।

यह अपने आप में एक विडंबना ही है कि विकास-विकास चिल्लाने वाली जनता धर्म के नाम पर वोट देती है। इसे हम मानसिक घोटाला या दिवालियापन का नाम दे सकते हैं। आप मेरे लेख से असहमत होने से पहले अपने शहर की नदियों की हालत ही देख लीजिए। जिस भारत देश में नदियों को मॉं का दर्जा दिया जा सकता है और जहां पेड़ों की पूजा होती है ,उसी मुल्क में हम नदियों को दूषित और पेड़ों की धड़ल्ले से कटाई करते हैं। विदेशों में नदियों को सिर्फ नदी समझा जाता है लेकिन वहां की नदियां हमारे यहां की नदियों से कहीं अच्छी हैं।

इस तरह की चीज़ें बताती हैं कि हम अपनी प्राथमिकताएं भूल चुके हैं। हम धर्म से ज़्यादा धार्मिक आडंबरों की जाल में फंस चुके हैं। जिस देश में ठंड में सड़कों पर सोते हुए गरीब लोग कई दफा दम तोड़ देते हैं और बच्चे जहां हिन्दू-मुस्लिम का भेद समझने से पहले बिना ऑक्सीजन के बेमौत मारे जाते हैं, उसी मुल्क में राजनेता ‘शहरों’ और ‘रेलवे स्टेशनों’ के नाम बदलकर संतुष्ट हो जाते हैं।

आलम तो यह है कि अगर आप सरकार के इन कदमों की आलोचना कर देते हैं तब आपको ‘एंटी नेशनल’ कहा जाता है। बहरहाल, इस नाम बदलते प्रकरण के बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने विरोधियों को जवाब देते हुए कहा है कि नाम बदलने का विरोध करने वाले अपने बच्चों का नाम ‘रावण’ और ‘दुर्योधन’ क्यों नहीं रख देते हैं।

बयान देते समय योगी जी शायद भूल गए थे कि दुर्योधन ने जिस स्त्री को जुए में जीता था उसे किसी ने जुए में दाव पर लगाया था। आज जहां उन्हीं के विधायक रेप के इल्ज़ामों में जेल में बंद मिलते हैं, जहां आए दिन बालात्कार की खबरें सुनने को मिलती हैं, वहां हमें रावण जैसे आचरण की ही ज़रूरत है।

योगी आदित्यनाथ शायद यह भूल चुके हैं कि सीता को अपने नियंत्रण में रखने वाले रावण ने भी कभी उनके मान-मर्यादा को कलंकित नहीं किया। आज हम द्वेष और घृणा से भरे उस समाज में जी रहे हैं, जहां हमें रावण से भी प्रेरणा लेने की ज़रूरत है। वैसे भी राजनीति में बने रहने के लिए चर्चा ज़रूरी है, काम से तो कोई मतलब ही नहीं है।

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