मैं एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार से हूं लेकिन बचपन से हम एक मुसलमान बाहुल्य इलाके में रहे हैं। हमें ना तो किसी की जाति से फर्क पड़ता था और ना ही किसी के मज़हब से कोई वास्ता था। फर्क बस हमारे खानपान में था। वे जानते थे कि हम शुद्ध शाकाहारी हैं और उन लोगों ने कभी इस चीज़ को लेकर शिकायत का मौका नहीं दिया।
हम जिनके घर किराए में रहते थे वहां सबसे बुज़ुर्ग व्यक्ति सफेद पोषाक में चार वक्त नमाज़ पढ़ते थे और बेहद ही सरल दिखते थे। ईद के दौरान उनके घर एक बकरा आता था। परिवार में सबसे बुज़ुर्ग होने के नाते सभी की मेज़बानी वो खुद ही करते थे। जो लोग हिन्दू-मुसलमान में भेदभाव करते हैं, उन्हें मैं बताना चाहूंगी कि उनके घर में कभी भी हमें मटन या कुछ मांसाहार की गंध तक नहीं आई।
हम तीनों भाई-बहन सबसे छुपकर उस बकरे के पास जाते थे लेकिन हमें पता नहीं होता था कि उस बकरे के साथ आखिर क्या होने वाला है। वे लोग कभी भी अपने मज़हब को लेकर कोई ऐसी बात नहीं करते थे जिससे हमें दु:ख हो। हिन्दू और मुस्लिम को लेकर इस देश में तरह-तरह की बातें फैलाई गई हैं जिस कारण दंगे होते हैं। अगर आप करीब से देखेंगे तब दोनों मज़हब के लोगों के बीच प्यार भी है। दंगे तो बस राजनेता कराते हैं।
एक बार करगिल युद्ध के दौरान हमारे किसी रिश्तेदार ने कहा, ‘ये मुसलमान हिंदुस्तान में क्यों रहते हैं? इन्हें पाकिस्तान में रहना चाहिए क्योंकि हिंदुस्तान हिन्दुओं का है।’
उस वक्त पाकिस्तान और हिन्दुस्तान को लेकर मेरे ज़हन में कोई खास विचार नहीं थे। मेरे नाना ने मुझे बताया कि जिन्हें पाकिस्तानियों का तमगा दिया जाता है, वे पहले हिन्दुस्तान में ही तो रहते थे। फिर पाकिस्तानी कैसे हुए? खैर, मेरी उम्र उतनी नहीं थी कि इस बात का अर्थ मैं समझ पाती और ना ही वो रिश्तेदार मौजूद थे जिन्हें मैं जवाब दे पाती।
आज अतीत के पन्नों को पलटने पर मुझे उनके शब्दों का अर्थ मिला। मुझे याद आया कि हर दिवाली, होली, जन्मदिन और ईद के मौके पर वो हमें पैसे दिया करते थे। हमें उनसे ये पैसे लेने में कभी कोई हिचक नहीं हुई लेकिन आशीर्वाद के तौर पर दिए गए दो रुपयों में ना कोई हिन्दू था और ना ही कोई मुसलमान।