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“आयरलैंड कोर्ट ने सर्वाइवर की कसी हुई पैंटी के आधार पर रेप आरोपी को रिहा कैसे कर दिया?”

आयरलैंड कोर्ट

आयरलैंड कोर्ट

हिन्दुस्तान से लेकर सभी देशों में सरकारों के खिलाफ आंदोलन और प्रदर्शन चलते रहे हैं। बस फर्क इतना है कि जैसे-जैसे देश, स्थान और भाषा बदलती है वैसे-वैसे प्रदर्शनों के तरीके भी बदल जाते हैं। अगर कुछ नहीं बदलती है तो वह है महिलाओं के प्रति लोगों की सोच। चाहे आप सरहद पार कहीं भी क्यों ना चले जाएं, प्रदर्शन का तौर तरीका बदल जाएगा लेकिन महिलाओं के संदर्भ में लोगों की सोच नहीं बदलेगी।

एक तो अभी हाल ही में स्कूली छात्रों के लिए चीन में सेक्स एजुकेशन की जानकारी देने वाली एक किताब को लेकर विवाद शुरू हुआ है। इस किताब में लिखा है कि विवाह से पहले शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाली लड़कियां आवारा और घटिया होती हैं। इस पुस्तक को लेकर वहां लोगों का गुस्सा उबाल पर है। लोगों का आक्रोश इसलिए भी जायज़ है क्योंकि इस पुस्तक का लेखक यदि विवाह पूर्व एक वर्जिन समाज चाहता है, तब उसे केवल लड़कियां ही क्यों दिखाई पड़ी। किताब में लड़कियों के बारे में जिस प्रकार से आवारा और घटिया जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है, वही शब्द शादी से पहले सेक्स करने वाले लड़कों के लिए भी प्रयोग किया जा सकता था।

यहां सारा मामला सिर्फ और सिर्फ विचारों का है। हमारे यहां खाप पंचायतों में भी तो सुधार के सौ फरमान लड़कियों के लिए हैं लेकिन लड़कों की बारी आते ही सबकी बोलती बंद हो जाती है। इसी वजह से मैंने पहले ही कह दिया कि सरहद भले ही बदल जाए लेकिन सोच बदलती नहीं दिखती।

खैर, दूसरा मामला आयरलैंड का है। यहां बड़े पैमाने पर महिलाएं सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रही हैं। ये प्रदर्शनकारी महिलाएं हाथ में महिलाओं की अंडरवियर लेकर विरोध कर रही हैं। यह पूरा प्रदर्शन यहां बलात्कार के एक फैसले के बाद से उपजा है। नाबालिग लड़की से बलात्कार के एक मामले में कोर्ट ने लड़की के अंडरवियर को सबूत मानते हुए लड़की के खिलाफ ही फैसला सुना दिया। यही नहीं, फैसले के आधार पर आरोपी लड़के को भी बरी कर दिया गया।

अदालत के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करती महिलाएं। Photo Source: Twitter

अदालत का मानना था कि रेप के दौरान लड़की ने ऐसा अंडरवियर पहना था जिसमें स्ट्रिप्स लगे हुए थे। उन्हें काफी कसकर बांधा गया था और रेप के दौरान स्ट्रिप्स को खोलना काफी मुश्किल था। यदि आयरलैंड के जज इस फैसले से इतरा रहे हैं तब मैं बताना चाहूंगा कि हमारे यहां तो गॉंवों के पंचायतों में ऐसे फैसले कोई भी सुनाकर चल देता है।

समाज का एक बड़ा तबका यही सोच लिए बैठा है कि बलात्कार का कारण पुरुष की वासना नहीं बल्कि स्त्री के वस्त्र ज़्यादा हैं। यह केवल आयरिश अदालत के फैसले की बात नहीं  है बल्कि हमारे देश में भी कई ऐसे फैसले हुए हैं जिन्हें सुनकर कोई भी माथा पीट ले। राजस्थान के चर्चित भंवरी देवी रेप में दोषियों को बरी करते हुए अदालत ने कहा था कि गाँव का प्रधान रेप नहीं कर सकता और अलग-अलग जाति के कई लोग एक साथ रेप नहीं कर सकते।

क्या ऐसा हो सकता है कि वास्तव में लड़की का अंडरवियर बलात्कार करने को निमंत्रण दे रहा था? कम कपड़े देखकर विचलित होने वाले लोगों को कोर्ट का यह फैसला सही लग सकता है। हिन्दुस्तान में कई लोग तो कहते ही हैं कि लड़की अगर पूरे कपड़े पहने और संस्कारी हो तब बलात्कार जैसी घटानाएं नहीं होंगी।

हिन्दुस्तान में कई बड़े नेताओं के अलावा बड़ी संख्या में लोगों का भी मानना है कि महिलाओं के अश्लील और उत्तेजक कपड़े रेप के लिए ज़िम्मेदार हैं।

मेरा एक और सवाल यह है कि इंसानों की सभ्यता तो मरे हुए जानवरों की खाल पहनने से शुरू हुई थी। बदलते जीवन शैली के साथ कपड़ों के ढंग भी बदले हैं। एक समय ऐसा था जब पुरुष सिर्फ लंगोटी पहनते थे और स्त्री वक्ष और जांघ तक शरीर को ढकती थीं। तब शायद बलात्कार करने के ज़ुमले नहीं गढ़े गए होंगे। आज जब अपनी पसंद के अनुरूप कपड़े पहने जा रहे हैं तब यह सोच खड़ी कर दी गई कि हम अपराध करके भी मासूम और तुम सहकर भी दोषी।

चलो एक पल के लिए इस धारणा को पल्लवित-पोषित करते समाज के बड़े तबके की बात मान भी ली जाए। मैं उनसे यह पूछना चाहूंगा कि साल 2015 में गाज़ियाबाद के भोजपुर गॉंव में कब्र से निकालकर 22 साल की एक लड़की की लाश के साथ बलात्कार क्यों किया गया? क्या कोई कम वस्त्र समर्थक बता सकता है कि इसका कारण उसकी लाश पर कफन छोटा था या बलात्कार करने वालों की सोच?

नोट: कवर इमेज ProductiehuisEU नामक YouTube चैनल से ली गई है।

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