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“यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के खिलाफ अच्छी पहल है कैलाश सत्यार्थी की भारत यात्रा”

कैलाश सत्यार्थी

कैलाश सत्यार्थी की भारत यात्रा

दिन और तारीख तो ठीक से याद नहीं है लेकिन इतना याद है कि यह वाकया पिछले साल फरवरी या मार्च के शुरुआती दिनों का है। साल 2017 की सर्दियां अपना बोरिया-बिस्तर बांध रही थी और गुलाबी ठंड अपने शबाब पर पहुंच कर सूरज की तपिश की तरफ बढ़ने लगी थी, तभी एक दिन नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी पहली मंज़िल के अपने कमरे से बेसमेंट में हम लोगों के बीच आए। उनके चेहरे पर तो हमेशा की तरह शांति थी लेकिन आंखों में गुस्सा था। आमतौर पर वे अपने सहयोगियों से हंसी-मजाक के लहज़े में बात करते हैं लेकिन उस दिन वे कुछ ज़्यादा गंभीर दिख रहे थे। उनके गुस्से और गंभीर दिखने की वजह यह थी कि उस दिन भी फिर किसी मासूम बेटी के साथ दरिंदों ने बलात्कार किया था।

पिछले कुछ सालों से मासूम बेटियों के साथ बलात्कार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इसे लेकर कैलाश सत्यार्थी जी चिंतित हैं और उनके द्वारा स्थापित ‘कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन‘ इस दिशा में काम भी कर रहा हैं। कैलाश जी, आमतौर पर सहयोगियों से समस्याओं और उनके समाधान के बारे में बात करते रहते हैं। उस दिन भी उन्होंने बात शुरू करते हुए कहा कि बेटियों के साथ हैवानियत थमने की बजाए बढ़ती ही जा रही है, ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? लोगों ने तरह-तरह के सुझाव दिए। तभी उन्होंने कहा कि हमें बच्चों के यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के खिलाफ एक देशव्यापी जन-जागरुकता अभियान चलाना चाहिए।

इस तरह से ‘भारत यात्रा’ के रूप में एक आंदोलन की नींव पड़ गई। भारत यात्रा के अक्टूबर में एक साल पूरे हो गए। 35 दिनों तक चली इस देशव्यापी यात्रा ने मासूमों की अनसूनी आवाज़ को देश के कोने-कोने तक पहुंचा दिया। 

लिहाज़ा यह एक जन-आंदोलन बन गया। “बलात्कारियों भारत छोड़ो…”  की गूंज सत्ता के गलियारों से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों के चेंबरों तक सुनाई देने लगी। बच्चों के बलात्कार और यौन शोषण के खिलाफ जो कानून बन रहे हैं या इनमें बदलाव हो रहे हैं, वह ‘भारत यात्रा’ के सुखद परिणाम हैं। एक साल में ही ‘भारत यात्रा’ ना केवल अपने मकसद में कामयाब हुई, बल्कि बच्चों के हक में कई उपलब्धियां भी हांसिल कर ली है। भारत यात्रा का मकसद बच्चों की ट्रैफिकिंग और यौन शोषण के खिलाफ सख्त कानून बनवाने के साथ-साथ सरकारी तंत्र को इस मसले पर संवेदनशील और सक्रिय बनाना था। इसमें कामयाबी मिल गई है।

11 सितंबर, 2017 को बाल यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के खिलाफ लोगों को जागरुक करने के लिए दक्षिण के कन्याकुमारी से भारत यात्रा की शुरुआत हुई। 22 राज्यों से गुज़रते हुए 16 अक्टूबर, 2017 को राष्ट्रपति भवन में महामहिम रामनाथ कोविंद की उपस्थिति में यह यात्रा समाप्त हुई।

यात्रा के दौरान करीब 12 लाख लोगों ने सड़कों पर उतर कर बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की। बच्चों के यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के सवाल पर यह दुनिया का सबसे बड़ा आंदोलन था। इस लिहाज़ से भारत यात्रा ऐतिहासिक थी। इस यात्रा के बाद देश में बच्चों के यौन शोषण और बलात्कार के खिलाफ एक ज़बरदस्त माहौल बना। इसके बाद कठुआ, उन्नाव और सासाराम आदि की घटनाओं ने जनता के आक्रोश को सड़क पर ला दिया, जिसकी वजह से सरकार दबाव में आई और बच्चों के बलात्कार खिलाफ कठोर दंड के लिए आईपीसी यानी भारतीय दंड संहिता में बदलाव हुआ।

लाखों लोगों के सड़क पर उतरने का ही परिणाम है ‘प्रस्तावित ट्रैफिकिंग बिल‘ और हाल ही में संसद में पास हुआ ‘क्रिमनल लॉ अमेंडमेंट बिल‘, जिसमें 12 साल तक की बच्चियों के बलात्कारियों को कठोर सज़ा देने की बात कही गई है। यात्रा के दौरान अक्टूबर, 2017 में ही कैलाश सत्यार्थी की उपस्थिति में दिल्ली के एक कार्यक्रम में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने नया ट्रैफिकिंग बिल बनाने का एलान किया था। इसे कैबिनेट की मंजूरी के बाद संसद में पेश किया जा चुका है। लोकसभा में यह बिल पास हो चुका है। उम्मीद है कि संसद के शीतकालीन सत्र में यह राज्यसभा में पास होकर कानून की शक्ल अख्तियार कर लेगा।

भारत यात्रा से बच्चों के प्रति अदालतों का रवैया भी बदला है और उनके मामलों में न्यायिक सक्रियता भी बढ़ी है। नतीजन, सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में निर्देश दिया है कि पॉक्सो के तहत लंबित मामलों को जल्द से जल्द निपटाया जाए।

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